प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO) द्वारा मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) को भेजे गए एक पत्र पर विवाद हो गया था. अब इस पर कानून मंत्रालय (Law Ministry) की सफाई आई है.
दरअसल इस पत्र में मुख्य चुनाव आयुक्त को PMO की एक बैठक में आने के लिए कहा गया था. वहीं चुनाव आयोग का कहना था कि मुख्य चुनाव आयुक्त को इस तरीके से सरकारी अधिकारी समन नहीं कर सकते. चुनाव आयुक्तों ने फिर इस बैठक में हिस्सा नहीं लिया था.
कानून और न्याय मंत्रालय ने शनिवार को एक बयान जारी कर कहा कि यह "साफ" है कि बातचीत को लेकर लिखा गया पत्र "चुनाव आयोग के सचिव या बैठक के विषय (चुनाव सुधार-इलेक्टोरल रोल) के जानकार किसी प्रतिनिधि" के लिए था. ना कि इसमें चुनाव आयुक्तों को बैठक में हिस्सा लेने के लिए कहने की मंशा थी.
बाद में हुई अनौपचारिक बैठक
बता दें मुख्य चुनाव आयुक्त नाराजगी जताते हुए पीएमओ की बैठक में हिस्सा नहीं लिया था. बाद में 16 नवंबर को चुनाव सुधार के मुद्दे पर पीएमओ और चुनाव आयुक्तों के बीच एक बैठक हुई थी, जिसे अनौपचारिक बातचीत का नाम दिया गया था.
कानून मंत्रालय ने आगे कहा कि उसने चुनाव आयोग के प्रतिनिधियों को पीएमओ की बैठक में आमंत्रित करने के लिए इसलिए पत्र भेजा था, क्योंकि आयोग के पास मतदाता सूची (इलेक्टोरल रोल) के संबंध में जरूरी विशेषज्ञता है.
मूल पत्र में क्या था?
हालांकि इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक मूल पत्र में स्पष्ट लिखा है कि “प्रधानमंत्री के प्रधान सचिव वीडियो-कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से शाम 4 बजे आम मतदाता सूची पर एक बैठक की अध्यक्षता करेंगे और सीईसी से उम्मीद करते हैं कि सम्मेलन के दौरान उपस्थित रहें."
इंडियन एक्सप्रेस ने कम से कम पांच पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्तों (सीईसी) से बातचीत कर लिखा कि चुनाव आयोग को कानून मंत्रालय द्वारा मिला पत्र "अस्वीकार्य" है और चुनाव आयोग और पीएमओ के बीच बाद में हुई अनौपचारिक चर्चा चुनाव आयोग की स्वतंत्रता की छवि को खराब कर सकती है.
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