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मां-बाप ने लिया लोन, उनकी मौत के बाद बच्चे चुकाने के लिए हैं बाध्य?

Bhopal की वनिशा के माता-पिता की मौत कोविड से हुई, अब LIC 17 साल की वनिशा से 29 लाख का होम लोन वसूलना चाहती है.

Published
भारत
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भारतीय जीवन बीमा निगम (LIC) ने 17 साल की वनिशा पाठक को 29 लाख रुपए के लोन रीपेमेंट का जो नोटिस भेजा है, उससे हंगामा मच गया है. यह लोन उसके पिता ने लिया था जो अब इस दुनिया में नहीं हैं.

2021 के मई महीने में कोविड 19 (Covid-19), की दूसरी भयावह लहर के दौरान वनिशा के माता-पिता, दोनों की मौत इस महामारी से हो गई थी. फिलहाल बहुत से लोग उसके साथ खड़े हैं जिनमें से एक वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण भी हैं. उन्होंने वित्तीय सेवा विभाग और एलआईसी से कहा है कि वे इस मामले पर गौर करें.

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अब एलआईसी के अधिकारी कह रहे हैं कि वनिशा ने 18 वर्ष का होने के बाद लोन चुकाने का अनुरोध किया है और निगम इस पर राजी हो गया है. उसने इसके बारे में उसके परिवार को सूचित कर दिया गया है (हालांकि परिवार ने इस संवाद से इनकार किया है). लेकिन यहां अहम सवाल यह है कि एक बच्चे को उसके माता-पिता का लोन चुकाने को क्यों कहा जा रहा है?

यहां हम बता रहे हैं कि एलआईसी क्या मांग सकती है, और बोर्ड-टॉपर वनिशा और उसका भाई विवान अपने माता-पिता की देनदारियों के लिए किस हद तक जिम्मेदार हैं?

क्या बच्चे माता-पिता की देनदारियों के लिए सीधे तौर से जिम्मेदार ठहराए जा सकते हैं?

इसका सीधा सा जवाब यह है कि बच्चों को माता-पिता का लोन चुकाने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता. एक समय था, जब ऐसा होता था. जैसे जिन जगहों पर बेगारी कराने का चलन था. लेकिन मौजूदा कानूनी प्रणाली इस बात की इजाज़त नहीं देती कि देनदार के बच्चों पर देनदारी चुकाने की जिम्मेदारी थोप दी जाए.

हालांकि एक बच्चे से सीधे यह नहीं कहा जा सकता कि वह अपने मृत माता-पिता का लोन चुकाए, लेकिन लेनदार को यह अधिकार जरूर है कि वह मृतक के ऐस्टेट (यानी मृत्यु से पहले उसके स्वामित्व वाली संपत्ति) से रीपमेंट की कोशिश कर सकता है.

मृतक के बच्चे (या अन्य कानूनी वारिस) मृतक की संपत्ति को उत्तराधिकार के रूप में हासिल करने के हकदार हो सकते हैं, लेकिन ऐस्टेट का शुद्ध मूल्य (जहां से उत्तराधिकार मिला है) मृतक की देनदारियों से कम हो जाएगा. इंग्लैंड में, यह प्रक्रिया कुछ यूं है कि मृतक के ऐस्टेट से उसके कानूनी वारिसों को तब तक कुछ नहीं मिलेगा, जब तक ऐस्टेट की देनदारियों और दावों का निपटान नहीं हो जाता.

भारत में कई बार ऐसा होता है कि वारिस को मृतक की संपत्ति (चाहे दौलत हो या संपत्ति) पहले मिल सकती है और इसके बाद देनदारियां और दावों का निपटान होता है. इसके लिए लेनदार को बकाये के रीपमेंट के लिए उस वारिस तक पहुंचना पड़ता है.

लेनदार एक दावा और कर सकता है और उसका असर मृतक देनदार के बच्चों पर पड़ता है. अगर लोन किसी किस्म के कोलेट्रल या दूसरे चार्ज के जरिए सुरक्षित किया गया है तो लोन न चुकाने की स्थिति में लेनदार उस कोलेट्रल या चार्ज पर अपने अधिकारों का इस्तेमाल कर सकता है.

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उदाहरण के लिए, होम लोन की स्थिति में लोन के जरिए खरीदी गई प्रॉपर्टी पर बैंक/ऋणदाता का दावा हो सकता है, अगर लोन चुकाने से पहले देनदार की मृत्यु हो जाती है. वनिशा के मामले में एलआईसी 29 लाख रुपए के रीपेमेंट की मांग कर रही है जोकि उसके मृत माता-पिता ने होम लोन के तौर पर एलआईसी से लिए थे. जाहिर सी बात है, वनिशा और उसका भाई उसे तब तक नहीं चुका सकते, जब तक उनके माता-पिता उनके लिए इतना पैसा छोड़ गए हों.

तकनीकी रूप से लोन की राशि न चुका पाने की स्थिति में ऋणदाता को यह अधिकार है कि वह संपत्ति को टेक ओवर कर ले, चूंकि यह लोन की सिक्योरिटी/कोलेट्रल है. बेशक, यह संगदिली होगी, लेकिन सामान्य परिस्थितियों मे ऋणदाता के लिए ऐसा करना गैर कानूनी नहीं है

इस मामले में हाल के घटनाक्रमों से यह उम्मीद जगती है कि बच्चों को उनके घर से बेघर नहीं किया जाएगा. वनिशा-विवान और कोविड में अपने माता-पिता को खोने वाले दूसरे बच्चों को सुप्रीम कोर्ट के उस आदेश पर भरोसा करना चाहिए कि इन बच्चों के माता-पिता की संपत्तियां सुरक्षित रहेंगी.

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कोविड में माता-पिता को गंवाने वाले बच्चों के लिए विशेष संरक्षण

महामारी के कारण पैदा हुए खास हालात में केंद्र और राज्य सरकारों ने ऐसे बच्चों के लिए राहत योजनाओं की घोषणा की थी जिन्होंने एक या दोनों माता-पिता को कोविड के कारण खोया है. केंद्र की योजना के तहत जिन बच्चों ने अपने दोनों माता-पिता या अपने मुख्य ‘केयरगिवर’ को कोविड के कारण गंवाया है, उन्हें मुफ्त शिक्षा, 18 से 23 वर्ष के बीच स्टाइपेंड और 23 साल का होने पर एकमुश्त 10 लाख रुपए मिलेंगे.

हालांकि, इन योजनाओं में बच्चों को उनके मृत माता-पिता के लेनदारों, जैसे वनिशा के मामले में एलआईसी, से संरक्षण नहीं दिया गया है. खुशकिस्मती से सुप्रीम कोर्ट ने एक स्वतः संज्ञान मामले में इस मुद्दे पर विचार किया था.

एमिकस क्यूरी गौरव अग्रवाल और राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) ने मार्च में अदालत के यह मामला रखा था. उनका कहना था कि कोविड में अपने माता-पिता को गंवाने वाले बच्चों पर इस बात का खतरा मंडरा सकता है कि बैंक/लेनदार उन्हें लोन रीपेमेंट का नोटिस भेज दें. इसके जवाब में अदालत ने 4 अप्रैल, 2022 को आदेश दिया जिसमें कहा गया था कि

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“जिला बाल संरक्षण अधिकारियों और संबंधित जिलाधिकारियों को यह सुनिश्चित करने के लिए जिला कानूनी सेवा प्राधिकारियों की सहायता लेने का निर्देश दिया जाता है कि बच्चों के मृत माता-पिता की संपत्तियों की रक्षा की जाए और बच्चों को उनकी संपत्ति से वंचित न किया जाए.”

इसलिए जिला स्तर के अधिकारियों को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया गया है कि उनके क्षेत्रों में कोविड के कारण अपने माता-पिता को खोने वाले बच्चे अपने घर या माता-पिता की वित्तीय संपत्ति से वंचित नहीं किए गए हैं.

स्थानीय अधिकारियों को यह भी सुनिश्चित करने के लिए कहा गया है कि वे केंद्र सरकार के बाल स्वराज कोविड केयर प्लेटफॉर्म पर ऐसे बच्चों के डीटेल्स को अपलोड करें. इन डीटेल्स में माता-पिता की ऐसी देनदारियां शामिल होंगी, जिनका असर उनके बच्चों पर पड़ सकता है.

अगर कोई ऋणदाता, इन बच्चों पर लोन चुकाने का दबाव बनाता है तो उसे अदालत की अवमानना का नतीजा भुगतना पड़ सकता है. ये बच्चे अनुपालन सुनिश्चित करने और संरक्षण की मांग के साथ कानूनी सहायता सेवाओं और अदालतों से संपर्क कर सकते हैं.

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