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लिव-इन रिलेशनशिप नैतिक, सामाजिक रूप से ठीक नहीं:पंजाब-हरियाणा HC

सुप्रीम कोर्ट ने पहले ही लिव-इन रिलेशनशिप को सहमति दी हुई है

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भारत
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पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने कहा है कि लिव-इन रिलेशनशिप नैतिक और सामाजिक रूप से स्वीकार्य नहीं है. लिव-इन कपल को सुरक्षा देने से इनकार करते हुए एक आदेश में पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने लिव-इन कपल की याचिका खारिज कर दी है. कपल ने अदालत से सुरक्षा दिए जाने की मांग करते हुए कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था.

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कपल का कहना था कि उनके रिश्ते का विरोध किया जा रहा है. इसी पर सुनवाई करते हुए जस्टिस एचएस मदान ने अपने आदेश में कहा कि इस कपल ने सिर्फ इसलिए अदालत का दरवाजा खटखटाया है ताकि उनके उस संबंध पर स्वीकृति की मुहर लग सके जो ''नैतिक और सामाजिक रूप से स्वीकार्य नहीं'' है.

क्या है पूरा मामला?

दरअसल, पंजाब के तरनतारन जिले से घर छोड़कर अलग रह रहे एक कपल ने अपनी जीवन और स्वतंत्रता की सुरक्षा की मांग वाली याचिका लगाई थी. जिसे खारिज करते हुए जस्टिस एचएस मदान ने ये आदेश पारित किया है.

जस्टिस मदान ने पिछले हफ्ते अपने आदेश में लिखा था,

इस याचिका की आड़ में याचिकाकर्ता वर्तमान में अपने लिव-इन-रिलेशनशिप पर अप्रूल की मुहर की मांग कर रहे हैं, जो नैतिक और सामाजिक रूप से स्वीकार्य नहीं है और याचिका में कोई सुरक्षा आदेश पारित नहीं किया जा सकता है. इसलिए याचिका खारिज कर दी जाती है

याचिकाकर्ता दंपति गुलजा कुमारी और गुरविंदर सिंह ने यह कहते हुए याचिका दायर की थी कि वे एक साथ रह रहे हैं और जल्द ही शादी करना चाहते हैं. उन्होंने याचिका में लिखा था कि उन्हें लड़की के माता-पिता से जान खा खतरा है.

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याचिकाकर्ता के वकील जे एस ठाकुर ने कहा कि लड़की की उम्र 19 साल और लड़के की उम्र 22 साल थी और दोनों एक दूसरे से शादी करना चाहते थे. आधार कार्ड जैसे कुछ दस्तावेज लड़की के परिवार के पास होने के कारण दंपति की शादी नहीं हो सकी.

वकील जे एस ठाकुर ने कहा, “जैसा कि सुप्रीम कोर्ट ने पहले ही लिव-इन रिलेशनशिप को सहमति दी हुई है, हमने हाईकोर्ट से संपर्क किया था कि वे शादी होने तक उनके जीवन और स्वतंत्रता की रक्षा का निर्देश दें. अब तक, वे लड़की के परिवार के गुस्से से बचने के लिए लिव-इन रिलेशनशिप में थे, जो उनके रिश्ते के खिलाफ थे.” हालांकि वकील जे एस ठाकुर ने हाईकोर्ट के फैसले पर कमेंट नहीं किया है.

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