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लालू को जिस चारा घोटाले में सजा मिली उसमें क्या हुआ था?स्कूटर पर ले गए 400 सांड

इस स्टोरी में लालू यादव के पशुपालन घोटाले के बारे में पढ़िए सबकुछ डिटेल में.

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यदि आपसे कहा जाए कि दो-तीन क्विंटल वजनी 400 सांड व भैंसों को हरियाणा से रांची तक की 1500 किमी की दूरी तक स्कूटर और मोपेड पर ढोकर लाया गया, तो क्या आप विश्वास करेंगे. लालू प्रसाद यादव (Lalu Prasad Yadav) के कार्यकाल में कुछ ऐसा ही हुआ था. 21 फरवरी लालू को 950 करोड़ रुपए के बेहद चर्चित पशुपालन व चारा घोटाला केस के अंतर्गत गबन के सबसे बड़े मामले यानी डोरंडा ट्रेजरी केस में CBI की विशेष अदालत ने सजा सुनाई है, उस घोटाले में कुछ ऐसे ही कारनामे किए गए थे.

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बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और राष्ट्रीय जनता दल के प्रमुख लालू प्रसाद यादव को डोरंडा ट्रेजरी से 139.35 करोड़ रुपए की अवैध निकासी के मामले में 5 साल की सजा सुना दी गई है.

लालू से जुड़े इस घोटाले के बारे में हम अक्सर सुनते रहते हैं. कहीं इसे चारा घोटाला, कहीं पशुपालन घोटाला तो कहीं ट्रेजरी घोटाला कहा जाता है. आज हम आपको अपनी इस स्टोरी में पूरे घोटाले के बारे में सिलसिलेवार और डिटेल में सबकुछ बताते हैं.

क्या है पशुपालन घोटाला?

सबसे पहले तो यह जान लीजिए कि इसे चारा घोटाला जैसे नाम तो मीडिया के नवाजे हुए हैं, यह असल में बिहार के पशुपालन विभाग का एक घोटाला है, तो हम इसे पशुपालन घोटाला ही लिखेंगे. यह पूरा खेल 1990 से 1996 के बीच किया गया जब बिहार और झारखंड दो अलग राज्य नहीं थे, बल्कि संयुक्त बिहार ही अस्तित्व में था. 10 मार्च 1990 को सत्ता में आए लालू प्रसाद यादव ने 1995 तक मुख्यमंत्री की कुर्सी का सुख लिया. मार्च 1995 में बिहार विधानसभा के चुनाव हुए और एंटी इनकंबेसी फैक्टर के बावजूद लालू यादव तत्कालीन 324 सीटों में से 167 सीटें जीत कर सूबे के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर फिर से बैठ गए.

कैसे हुआ पशुपालन घोटाले का खुलासा

उनके कार्यकाल को अभी 8 महीने का ही समय हुआ था कि बिहार के कुछ सचेत व जागरुक अफसरों की ओर से सभी डीएम से सरकारी खजाने से निकलने वाली धनराशि की डिटेल मंगाई जाने लगी. यही वह चिंगारी थी जिसने इस महाघोटाले के बम की बत्ती में आग लगाई थी.

उस समय संयुक्त बिहार की चाईबासा डिस्ट्रिक्ट के कमिश्नर थे आईएएस अमित खरे. उनके हाथ कुछ कागजात लगे जिससे उन्हें पशुपालन विभाग में चारा आपूर्ति के नाम पर बोगस कंपनियों को बिल भुगतान का पता चला.

उन्होंने तत्काल मामले की परतें उधेड़ने के लिए विभाग के दफ्तरों पर छापे मारे. वहां उन्हें फाइलें जलाने, 10 लाख से कम के फर्जी बिलों के भुगतान, और फर्जी कंपनियों के नाम पर करोड़ों के हेर-फेर के ठोस सबूत मिले.

उन्होंने अपने उच्च अधिकारियों से सूचना दी तो फिर रांची, पटना, डोरंडा, गुमला आदि जिलों के अधिकारियों के आगे पशुपालन विभाग के फर्जी बिलों के भांडे फूट-फूटकर आने लगे. मुकदमा दर्ज हुआ, पशुपालन विभाग के एक सैंकड़ा अफसर सलाखों के पीछे पहुंचाए गए.

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असली करामात तो जांच में उजागर हुई

यहां तक तो हमने आपको इस घोटाले के फूटने के मामले के बारे बता दिया, पर इसके घोटालेबाजों के काले कारनामे तो इसके बाद हुई CBI जांच में सामने आए. जांच एजेंसी ने पाया कि अफसरों और नेताओं ने बिना दिमाग लगाए सिर्फ पैसा बटोरने में ध्यान लगाया. उन्होंने फाइलों में दिखाया कि बिहार में अच्छी नस्ल की गाय और भैंसों को पैदा करने के लिए 400 सांड़ और भैंसे हरियाणा और दिल्ली से रांची लाए गए. उन्हें लाने के लिए कई करोड़ के भुगतान ढोने वाले वाहनों को किए गए.

जब पशुओं को लाने वाले वाहनों के रजिस्टर में दर्शाए नंबरों की जांच की गई तो वो स्कूटर और मोपेड के निकले. सीबीआई दंग रह गई कि दो-तीन क्विंटल वजनी 400 सांड़ व भैंसों को हरियाणा से रांची तक की 1500 किमी की दूरी तक स्कूटर और मोपेड पर ढोकर लाया गया.

स्पष्ट है कि इन पशुओं को भी कभी नहीं खरीदा गया होगा और उनके नाम पर करोड़ों के बिल ट्रेजरी से निकलवाए गए. इसके अलावा इन अधिकारियों ने लाखों टन भूसा, पुआल, पीली मकई, बदाम खली जैसे पशुओं के उस चारे को भी स्कूटर, बाइक और मोपेड पर ढोना दर्शाया, जो कभी खरीदा ही नहीं गया. इसी अदृश्य चारे की वजह से पशुपालन विभाग के इस घोटाले को बाद में चारा घोटाला का नाम मिला.

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कहां से आया लालू का नाम

अभी तक की कहानी पढ़कर आप सोच रहे होंगे कि ये तो अफसरों की करामात थी, इसमें लालू कहां से आ गए, तो हम आपको बताते हैं कि लालू इसमें कैसे फंसे. सीबीआई ने साल 1997 में बिहार सरकार के पांच बड़े अधिकारियों के अरुमुगन, महेश प्रसाद, मूलचंद, बेग जुलियस और राम राज की गर्दन नापना शुरू किया. इन्होंने लालू के इस कमाई में हिस्सा लेने की बातें उजागर करना शुरू की.

चारा घोटाले में शामिल सभी बड़ी मछलियों के लालू की पार्टी और अन्य बड़े नेताओं के संपर्क के सबूत सीबीआई को मिलने लगे.

जब उनके पास पुख्ता प्रूफ इकट्ठा हो गए कि अवैध कमाई का बहुत हिस्सा लालू की पार्टी के नेताओं की झोली में गया और मुख्यमंत्री लालू यादव को पूरे मामले की जानकारी थी, तो 23 जून 1997 को पहला आरोप पत्र दायर कर दिया गया. लालू समेत 55 लोगों को इसमें आरोपी बनाया गया. सीबीआई का दावा था कि घोटाला किए जाने के दौरान कई साल तक राज्य के वित्त मंत्री का जिम्मा खुद लालू के पास था. उनके शामिल होने के बिना तो इतना बड़ा खेल हो ही नहीं सकता था.

इसके छींटे जब लालू के राजनैतिक जीवन पर पड़ने लगे तो उन्होंने 5 जुलाई 1997 को आरजेडी नाम की नई पार्टी बना ली.

खुद मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दिया और अपनी पत्नी राबड़ी देवी को बिहार का सीएम बनवा दिया. 30 जुलाई 1997 को इस केस में उनकी पहली गिरफ्तारी हुई. इसके बाद उन पर इस घोटाले के केस काफी लंबे समय तक चलते रहे.

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कितने रुपए का हेरफेर

पूरा घोटाला करीब 950 करोड़ रुपये का है. इस पूरे घोटाले में लालू यादव पर चाईबासा ट्रेजरी से 37.70 करोड़ रुपये , दुमका ट्रेजरी से 3.31 करोड़, देवघर ट्रेजरी से 84.54 लाख रुपये, चाईबासा की एक अन्य ट्रेजरी से 33.61 करोड़ रुपये और डोरंडा ट्रेजरी से 139.39 करोड़ को अवैध तरीके से निकालने का मामला है. पूरे मामले में कुल 53 केस दर्ज किए गए हैं.

इन 5 केस में लालू को हुई है सजा

  • चाईबासा ट्रेजरी से 37.7 करोड़ की निकासी मामले में 5 साल की सजा और 25 लाख रुपये जुर्माना

  • देवघर ट्रेजरी से 84.53 लाख की अवैध निकासी के लिए 3.5 साल सजा और 5 लाख जुर्माना

  • चाईबासा की एक अन्य ट्रेजरी से 33.67 करोड़ की निकासी के लिए 5 साल सजा और 10 लाख जुर्माना

  • दुमका ट्रेजरी से 3.13 करोड़ की निकासी के लिए 7-7 साल की सजा और 60 लाख जुर्माना

  • डोरंडा ट्रेजरी से 139.35 करोड़ के हेरफेर के लिए 5 साल सजा और 60 लाख जुर्माना (21 फरवरी को सुनाई सजा)

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कानूनी दांवपेंच से बचाने की काफी हुईं कोशिश

मामले में दोषियों को सजा दिलवाने में काफी दिक्कतें आईं. पहले तो कानूनी दांवपेंच इसी पर फंसा लिए गए कि मामले की सुनवाई पटना हाईकोर्ट में होगी या रांची हाईकोर्ट में. क्योंकि उस समय बिहार संयुक्त राज्य था. जब अक्टूबर 2001 में झारखंड नया राज्य बना तो सुप्रीम कोर्ट ने केस को झारखंड ट्रांसफर कर दिया. एक बार तो झारखंड के रांची हाईकोर्ट ने लालू के खिलाफ इस घोटाले में आपराधिक साजिश की जांच ही खत्म कर दी थी. 2014 में CBI ने सुप्रीम कोर्ट में इस फैसले के खिलाफ अपील की. मई 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने रांची हाईकोर्ट के फैसले को पलटते हुए लालू के खिलाफ जांच जारी रखने के आदेश दिए थे.

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