भारत में मार्च में जब लॉकडाउन लागू हुआ था, तब देश में 500 से कुछ ज्यादा कोरोना वायरस के मामले और करीब 10 मौतें हुई थीं. केंद्र सरकार ने कड़ा लॉकडाउन किया और रेल, रोड ट्रांसपोर्ट, हवाई यात्रा से लेकर सभी इंडस्ट्री समेत सभी आर्थिक गतिविधियां बंद हो गई. असंगठित क्षेत्र के लोगों पर तुरंत इसका असर दिखा और वो बेरोजगार हो गए. दो महीने से ज्यादा समय के बाद जब लॉकडाउन खोला गया तो कोरोना के मामलों की संख्या लाखों में चली गई थी और इकनॉमी गर्त में.
हर दिन कोरोना मामलों के नए रिकॉर्ड
देश में इस समय कोरोना वायरस के कुल मामलों की तादाद 5 लाख से ऊपर जा चुकी है. हालत ये हो गई है कि भारत दुनिया के सबसे ज्यादा प्रभावित देशों की सूची में चौथे नंबर पर पहुंच गया है. रोजाना 15-16 हजार नए केस रिकॉर्ड हो रहे हैं.
500 मामलों पर लॉकडाउन लागू करने के दौरान सरकार की सोच शायद ‘इलाज से बचाव बेहतर’ वाली रही होगी. लेकिन लाख से पार कोरोना मामलों पर लॉकडाउन में छूट देने के दौरान सरकार ने क्या सोचा होगा, ये पता नहीं चल पा रहा है. अर्थव्यवस्था को ध्यान में रखकर अगर लॉकडाउन खोला गया है तब भी इसका फायदा जमीनी स्तर पर होता दिखाई नहीं दे रहा है.
पीएम मोदी ने MSME के लिए 3 लाख करोड़ से ज्यादा का पैकेज जारी किया था. हालांकि सरकार के ही आंकड़े बताते हैं कि इसमें सिर्फ 80 हजार करोड़ सैंक्शन हुए और डिस्बर्सल महज 40 हजार करोड़. इससे ये अंदाजा लगाया जा सकता है कि इकनॉमी की मौजूदा हालत में लोग कर्ज लेने से कतरा रहे हैं.
लॉकडाउन में गरीब और गरीब हुए
लॉकडाउन का दुष्प्रभाव सबसे पहले असंगठित क्षेत्र के लोगों पर देखने को मिला था. अप्रैल की शुरुआत में इंटरनेशनल लेबर ऑर्गेनाइजेशन (ILO) ने अपनी एक रिपोर्ट में बताया था कि भारत के 40 करोड़ असंगठित क्षेत्र के कामगार गरीबी में और ज्यादा धंस सकते हैं.
ये रिपोर्ट लॉकडाउन लागू होने के कुछ ही हफ्तों बाद के हालात को ध्यान में रखते हुए जारी की गई थी. लॉकडाउन पूरे अप्रैल और मई जारी रहा था और इस दौरान हालत बद से बदतर ही हुई होगी. असंगठित क्षेत्र में देश की 90% वर्कफोर्स काम करती है और यही लोग लॉकडाउन में अपने घरों को वापस चले गए हैं. कुछ पैदल तो कुछ महीनों परेशान होने के बाद स्पेशल ट्रेनों से.
12 करोड़ से ज्यादा बेरोजगारों का क्या होगा?
सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकनॉमी (CMIE) की रिपोर्ट कहती है कि अप्रैल में 12 करोड़ से ज्यादा भारतीयों ने अपनी नौकरी गंवा दी. इनमें छोटे व्यापारी और दिहाड़ी मजदूर भी शामिल हैं. सैलरी क्लास लोगों ने भी बड़ी तादाद में नौकरी खोई.
केंद्र सरकार की तरफ से जारी हुए रिलीफ पैकेज में अलग-अलग क्षेत्रों के लिए ऐलान किए गए. लेकिन करोड़ों बेरोजगारों की आजीविका का इंतजाम किस तरह होगा, ये अभी तक नहीं बताया गया है. मनरेगा जैसी योजनाओं से फौरी राहत मिल सकती है लेकिन ये स्थाई उपाय नहीं हो सकता. बिजनेस, फैक्ट्रियां और इंडस्ट्रीज ठप होने की वजह से दोबारा काम मिलने में भी लोगों को काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा.
मई के पहले हफ्ते में भारत की बेरोजगारी दर 27.1% पहुंच गई थी.
छोटे बिजनेस, स्टार्टअप्स भी बुरी तरह 'संक्रमित'
लॉकडाउन में करीब 74 फीसदी छोटे बिजनेस और स्टार्टअप्स बंद होने की कगार पर आ गए.
कम्युनिटी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म LocalCircles के एक सर्वे में ये खुलासा हुआ. सर्वे में शामिल हुए 47 फीसदी प्रतियोगियों ने बताया कि उनके पास सिर्फ एक महीने तक बिजनेस जारी रखने का कैश बचा है.
ऑल इंडिया मैन्युफैक्चर्स एसोसिएशन (AIMO) के एक सर्वे में पता चला था कि हर तीन छोटे बिजनेस में से एक बंद हो सकता है. सरकार के लॉकडाउन खोलने और MSME के लिए पैकेज जारी करने के बावजूद सुधार आने की कोई गुंजाइश नजर नहीं आ रही है.
सरकार के खजाने पर भी 'चोट'
कोरोना वायरस लॉकडाउन ने सरकारी खजाने में भी 'सेंध' लगाई है. 15 जून तक के भारत के ग्रॉस टैक्स कलेक्शन में 31% की कमी आई. ये गिरकर 1,37,825 करोड़ हो गया है. वहीं जून तिमाही में एडवांस टैक्स मॉप अप में 76% की गिरावट देखने को मिल रही है. इस साल के बजट में ग्रॉस टैक्स कलेक्शन में 12% की बढ़ोतरी का अनुमान लगाया गया था. लेकिन बढ़ोतरी तो छोड़िए, उल्टा टैक्स कलेक्शन भयानक रूप से गिर रहा है.
इससे पहले केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी कह चुके थे कि भारत को 10 लाख करोड़ के रेवेन्यू का घाटा होने का अनुमान है. गडकरी ने कहा था कि हालत इतनी खराब है कि कुछ राज्य अगले महीने की सैलरी नहीं दे पाएंगे.
अर्थव्यवस्था के चरमराने से GDP गिरना स्वाभाविक तो था ही, लेकिन RBI का अनुमान है कि साल 2020-21 में GDP निगेटिव में जा सकती है.
विडंबना देखिए कि हमने कोरोना से लड़ने के लिए लॉकडाउन किया और लॉकडाउन ने माली हालत ऐसी बिगाड़ी कि आज जब कोरोना रोज नए रिकॉर्ड बना रहा है तो भी हम लॉकडाउन में ढील देने को मजबूर हैं.
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