संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (UNFPA) के मुताबिक, भारत एक युवा राष्ट्र है, जिसकी 50 प्रतिशत आबादी 25 साल से कम उम्र की है. ऐसे में यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि 2024 के आम चुनावों (Lok Sabha Election 2024) में युवा बड़ा प्रभाव डाल सकते हैं. लेकिन, ये तभी संभव हो पाएगा, जब युवा वोटिंग का फैसला करें या वास्तव में अपने मताधिकार का प्रयोग करने के इच्छुक हों.
2024 चुनाव के लिए 40 प्रतिशत से कम रजिस्ट्रेशन
भारतीय चुनाव आयोग (ECI) ने डेटा जारी कर बताया कि पूरे भारत में 2024 के चुनावों के लिए 18 से 19 साल के 40 प्रतिशत से कम मतदाताओं ने रजिस्ट्रेशन कराया है. नामांकन की सबसे कम दर दिल्ली, बिहार और उत्तर प्रदेश में है.
यह कई लोगों के लिए खतरे की घंटी है, खासकर तब जब युवा पीढ़ी जनसांख्यिकीय का एक बड़ा हिस्सा पिछले दो लोकसभा चुनावों में केंद्रीय भूमिका निभा चुका है.
विभा अत्री की एक स्टोरी के मुताबिक, 2019 के आम चुनावों के दौरान युवा मतदाताओं के बीच बीजेपी की हिस्सेदारी 41 प्रतिशत थी, जो 2014 के लोकसभा चुनावों की तुलना में 7 प्रतिशत अधिक थी. इससे साफ है कि मतदाताओं के इस वर्ग ने बीजेपी की जीत में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी.
इससे अधिक और क्या होगा? बीजेपी न केवल युवा वोट बरकरार रखने में कामयाब रही, बल्कि 2019 में युवाओं के बीच अपना समर्थन 4 प्रतिशत तक बढ़ा लिया.
डेक्कन हेराल्ड की एक रिपोर्ट के अनुसार, ECI ने कहा कि विशेषकर शहरी क्षेत्रों के युवा चुनाव में कम दिलचस्पी रखते हैं. आंतरिक प्रवासन (Internal migration) यानी युवाओं का अपने शहर से बाहर जाना, मतदान में कमी का एक बड़ा कारण माना गया है.
वोटिंग को लेकर युवाओं ने क्या कहा?
द क्विंट ने 18 से 27 साल के उम्र के कुछ पंजीकृत और गैर-पंजीकृत युवा मतदाताओं से वोटिंग के प्रति उनकी उदासीनता को लेकर बात की. कई युवा मतदाताओं ने आंतरिक प्रवासन को एक प्रमुख कारण बताया. वहीं इस साल के लोकसभा चुनावों में प्रमुख राजनीतिक दलों के प्रति असंतोष भी सामने आया है.
लॉ स्कूल की 19 वर्षीय छात्रा सुहृता कहती हैं कि उन्हें मतदान में कोई दिलचस्पी नहीं है क्योंकि वह शासन प्रणाली से पूरी तरह से निराश हो चुकी हैं.
राजनीतिक दलों के बीच जवाबदेही की कमी भी एक कारण है, जिसकी वजह से युवा वोटिंग को लेकर कम उत्साहित हैं. 20 साल की चंद्रिमा चुनाव के दौरान राजनीतिक दलों की ओर से किए जाने वाले महत्वाकांक्षी वादों और चुनाव के बाद उसकी वास्तविकता के बारे में बात करती हैं
वे कहती हैं कि राजनीतिक दलों द्वारा चुनावों के दौरान किए गए महत्वाकांक्षी वादों और चुनाव के बाद के अनुभवों की वास्तविकता के बीच असमानता के बारे में बात करती हैं.
हालांकि, युवा मतदाता उन लोगों का समर्थन करना चाहते हैं, जिन्होंने ठोस बदलाव लाया है. 23 वर्षीय अन्वेषा कहती हैं कि ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने अच्छा काम किया है और उन्हें उनके लिए वोट करने में कोई आपत्ति नहीं है. इसके साथ ही, वो कहती हैं कि उन्होंने अपने परिवार में वोट देने की संस्कृति नहीं देखी है, इसलिए उन्हें वोट देने की इच्छा नहीं होती.
वहीं 21 साल के मयंक को लगता है कि चाहे कोई भी पार्टी सत्ता में आए, लेकिन कोई भी आम आदमी की मदद नहीं करता है. खासकर जब एजुकेशन सिस्टम की बात आती है तो वह ऐसा महसूस करते हैं. पुणे में इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहे मयंक को लगता है कि इंजीनियरिंग जैसे कोर्स का सिलेबस पुराना हो चुका है.
वो आगे कहते हैं, "जिन नेताओं को हमारी मदद करनी चाहिए, हमारे कौशल विकास के लिए काम करना चाहिए, वो केवल अपनी जेब भरने में लग जाते हैं और देश का सही से विकास नहीं हो पाता है."
दूसरी ओर 23 साल की दृष्टि ने देखा है कि कैसे सत्ता में बैठे लोगों द्वारा पैसे की पेशकश करते ही ग्रामीण इलाकों के लोग उनके बहकावे में आ जाते हैं. उन्हें लगता है कि जब पैसों के दम पर खुलेआम बहुमत के साथ खिलवाड़ होता तो ऐसे में वोट करने का कोई मतलब नहीं है.
अपना निर्वाचन क्षेत्र बदलने के बारे में जानकारी की कमी, वोटिंग में भाग नहीं लेने का एक प्रमुख कारण हो सकता है.
वर्तमान में महाराष्ट्र में रहने वाली असम की 18 वर्षीय रितिका का कहना है कि वह अपने निर्वाचन क्षेत्र को दूसरे राज्य में नहीं बदलना चाहती क्योंकि वह महाराष्ट्र में अपने अस्थायी निवास की तुलना में असम के बारे में अधिक जानती हैं.
21 साल की अदित, जो एक इंजीनियरिंग कॉलेज का छात्र है, उसके पास रजिस्ट्रेशन करने और मतदान करने का समय नहीं है.
22 साल की शानू को लगता है कि चुनावों में युवा प्रतिनिधित्व की कमी वोट नहीं देने का उनका प्राथमिक कारण है. वह इस बात पर जोर देती हैं कि अगर सरकार युवा पीढ़ी की समस्याओं को समझती है, खासकर पढ़ाई के दवाब की वजह से सुसाइड जैसे मुद्दे को, तो वह सक्रिय रूप से राजनीति में भाग लेंगी और मतदान करेंगी. राजनीति में बुजुर्ग नेताओं का होना उनके वोट न देने का प्रमुख कारण है.
कश्मीर की रहने वाली 27 साल की अतरूबा, जो फिलहाल दिल्ली में रह रही हैं, उनके मन में सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों के लिए असंतोष है. वे बताती हैं, "सत्तारूढ़ दल का दावा है कि उनकी सबसे बड़ी उपलब्धियों में से एक यह है कि धारा 370 हटने के बाद से कश्मीर में लोग अब डर के साये में नहीं हैं और वो स्वतंत्रता दिवस आदि समारोह में भाग ले रहे हैं. लेकिन मैं जानती हूं कि ये सब कैसे हो रहा है."
वो आगे कहती हैं, "कश्मीर में रैलियों से लग सकता है कि सत्तारूढ़ दल को समर्थन मिल रहा है, लेकिन मैंने देखा है कि लोगों को नौकरी से निकालने की धमकी देकर रैलियों में शामिल होने के लिए मजबूर किया जाता है. वहीं विपक्ष में क्षमता की कमी दिखती है."
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