मध्य प्रदेश में 2 जुलाई को कैबिनेट का विस्तार किया गया. मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ कांग्रेस छोड़कर आए कई विधायकों को कैबिनेट में जगह दी. कैबिनेट विस्तार के बाद चौहान को अब पोर्टफोलियो आवंटन से जूझना होगा लेकिन उससे पहले ही उनके अपने विधायकों ने इस विस्तार पर 'आपत्ति' जता दी है.
राज्य में बीजेपी के वरिष्ठ नेता और पूर्व मंत्री अजय विश्नोई ने सीएम शिवराज को एक खत लिखकर उनसे जबलपुर और रीवा जिलों के इंचार्ज बनने का निवेदन किया. विश्नोई ने खत में कहा कि ‘कैबिनेट विस्तार पर जनता के बीच असंतोष की भावना’ को दूर करने के लिए चौहान यहां के इंचार्ज बनें.
जबलपुर जिले की पाटन विधानसभा क्षेत्र से विधायक विश्नोई ने कहा, "मैं आपकी मजबूरी समझ सकता हूं लेकिन आम लोग नहीं. कृपया आइए और जबलपुर और रीवा का चार्ज लेकर उन्हें बेहतर महसूस कराइए. कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह जब सीएम थे तो जबलपुर जिले के इंचार्ज थे. मुझे विश्वास है कि आप मेरा निवेदन स्वीकार करेंगे."
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कैबिनेट के पहले विस्तार में 20 विधायकों को कैबिनेट मंत्री, जबकि 8 को राज्य मंत्री के तौर पर शामिल किया.
अगर इन 28 विधायकों को खेमों के मुताबिक देखें तो,
- 16 बीजेपी के
- 9 ज्योतिरादित्य खेमे के
- 3 कांग्रेस से बीजेपी में आए विधायक शामिल हैं.
सिंधिया ने बिगाड़ा संतुलन?
मध्य प्रदेश की राजनीति पर करीबी नजर रखने वालों के मुताबिक, सिंधिया के बीजेपी में आने के बाद से बीजेपी की अंदरूनी राजनीति का संतुलन बिगड़ गया है. 29 दिन तक शिवराज ने अकेले ही सरकार चलाई. 21 अप्रैल को पांच सदस्यीय मंत्रिपरिषद का गठन हुआ, जिसमें ज्योतिरादित्य सिंधिया खेमे के दो मंत्री तुलसी सिलावट और गोविंद सिंह राजपूत शामिल थे.
इसके बाद मंत्रिमंडल विस्तार को लेकर मंथन चलता रहा. राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि शिवराज चाहते थे टीम में उनके खेमे के लोग शामिल हों. लेकिन सिंधिया जिस 'सौदेबाजी' के साथ बीजेपी में आए थे, आलाकमान को उसे भी पूरा करना था.
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