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जल में जातिवाद: सदियां बीत गईं, लेकिन इस तालाब के घाटों से नहीं धुला जाति का दाग

क्विंट की टीम ने गांव जाकर इस व्यवस्था की पड़ताल करने का कोशिश की.

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मध्यप्रदेश (Madhya pradesh) के दमोह जिला मुख्यालय से महज 8 किलोमीटर दूर हिनौती गांव, जातिवाद में जकड़ा हुआ. सुनने में पुरानी बॉलीवुड की मूवी की कहानी की तरह लगेगी लेकिन कहानी सच है. गांव में चार भागों में बंटी जातियां, हर जाति के तालाबों पर अलग-अलग घाट, लेकिन सदियों पुरानी व्यवस्था पर किसी को आपत्ति नहीं है या आपत्ति दिखती नहीं है.

इसलिए क्विंट की टीम ने गांव जाकर इस व्यवस्था की पड़ताल करने का कोशिश की. गांव पहुंचे तो लोगों ने बताया कि हां उनके गांव का यह तालाब है, जिस पर अलग-अलग घाट बने हुए हैं. 4 घाटों पर जातियों को विभाजित किया गया है, जिसमें उन जाति के लोग ही जाकर पानी का उपयोग करते हैं, कपड़े धोते हैं और नहाते हैं. इस बात पर गांव के किसी भी व्यक्ति को कोई आपत्ति नहीं है, लेकिन एक मर्यादा भी बनी है कि कोई भी जाति का व्यक्ति दूसरी जाति के घाट का उपयोग नहीं करता है. 

क्विंट की टीम ने गांव जाकर इस व्यवस्था की पड़ताल करने का कोशिश की.

घाट पर कपड़े धोती महिला

(फोटो- क्विंट हिंदी)

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किसने बनाई ऐसी व्यवस्था? गांव के बुजुर्ग बताते हैं कि सदियों पहले व्यवस्था बनी थी. वह बड़े हो गए और बुजुर्ग हो गए, व्यवस्था आज भी जारी है. कोई भी व्यक्ति दूसरे घाट जाति के घाट पर तालाब में नहीं जाता है. जब उनसे पूछा कि अगर कोई दूसरे घाट पर चला जाएगा, तो क्या होगा? इस पर उन्होंने कहा कि लोग डांटते हैं, लेकिन ऐसा होता नहीं है. लोग अपने घाट के अलावा दूसरे के घाट पर नहीं जाते हैं. यह बात जरूर है कि बड़ी जाति के लोग दूसरी जाति के घाटों पर जाकर उपयोग कर लेते हैं, तो उन्हें कोई आपत्ति नहीं लेता है.

क्विंट की टीम ने गांव जाकर इस व्यवस्था की पड़ताल करने का कोशिश की.

हिनौती गांव

(फोटो- क्विंट हिंदी)

हिनौती गांव की आबादी 2 हजार है. गांव से सटा निस्तारी तालाब, जो ढाई हेक्टेयर में फैला है. सरपंच नीता अहिरवार ने बताया, “पुरानी परंपरा है, पहले के लोगों ने कोई पहल नहीं की, इसलिए आज भी ऐसी स्थिति बनी हुई है.”

समाजों ने बांटे घाट और उनकी आबादी

1. ठाकुर, 1200

2. बंसल, 200

3. प्रजापति, 25

4. चौधरी, 450

चार हैंडपंप बंद, चारों बंद

गांव में जो पानी की टंकी बनी थी, उसमें दरारें आ गई हैं. चार हैंडपंप लगाए गए थे, उनमें पानी नहीं निकला. ऐसे में निस्तारित तालाब और लंबरदार का कुआं पानी के लिए रह जाता है, जिसके सहारे पूरा गांव रहता है. रूप सिंह ने बताया कि तालाब का उपयोग नहाने, धोने के लिए होता है. पीने का पानी भरने गांव से 600 मीटर दूर कुएं पर जाते हैं, वहां पर जिस समाज के लोग पहले पहुंचते हैं, वह पहले पानी भर लेते हैं, उसके बाद दूसरी समाज के लोग पानी भरते हैं.

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पुलिस को नहीं जानकारी..

जब हमने दमोह जनपद के सीईओ विनोद जैन से बात की तो उन्होंने कहा कि मुझे आपके माध्यम से जानकारी मिली है, मैं गांव जाकर देखूंगा. अगर गांव में जबरदस्ती ऐसा किया जा रहा है और लोग शिकायत करते हैं, तो प्रतिवेदन तैयार करके कलेक्टर को भेजेंगे ताकि ये कुप्रथा समाप्त हो सके.

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