मद्रास हाई कोर्ट ने मोबाइल ऐप TikTok पर बैन लगाने का फैसला दिया है. लेकिन कोर्ट के अंतरिम फैसले पर सवाल उठने लगे हैं. इंटरनेट फ्रीडम फाउंडेशन ने कहा है कि किसी भी ऐप या किसी प्लेटफॉर्म को डाउनलोड पर बैन को अदालत में चुनौती दी जानी चाहिए. चाहे वो TikTok जैसा ऐप ही क्यों न हो. बैन कोई इलाज नहीं है.
इंटरनेट फ्रीडम फाउंडेशन ने कहा, बैन करना इलाज नहीं
इस बीच, इंटरनेट फ्रीडम फाउंडेशन ने मद्रास हाई कोर्ट के इस फैसले पर एतराज जताया है. फाउंडेशन का कहना है कि किसी भी ऐप या किसी प्लेटफॉर्म को डाउनलोड पर बैन को अदालत में चुनौती दी जानी चाहिए. चाहे वो TikTok जैसा ऐप ही क्यों न हो. आईएफएफ ने कहा कि पर्याप्त कानूनी वजहों के बगैर ही इसे बैन करने का आदेश दिया गया है.
आईएफएफ ने कहा
TikTok एक सोशल नेटवर्किंग ऐप है जिससे वीडियो बनाया और शेयर किया जा सकता है. वीडियो औसतन 10 से 60 सेकेंड के होते हैं. ऐसे वीडियो फॉर्मेट की आलोचना होती रही है, लेकिन मद्रास हाई कोर्ट ने जो तीन कड़े निर्देश दिए हैं उन्हें चुनौती दी जानी चाहिए.
हालांकि आईएफएफ ने यह भी कहा है कि इसका मतलब यह नहीं है कि यह बच्चों को नुकसान पहुंचाने वाले कंटेंट को प्रमोट करने वाले प्लेटफॉर्म का समर्थन करता है. बच्चों की प्राइवेसी ऐसी कंपनियों की सर्वोच्च प्राथमिकता होनी चाहिए. और बगैर कानूनी प्रावधानों के यह संभव नहीं है. हमारा मानना है कि बच्चों की प्राइवेसी की रक्षा के लिए तुरंत कानून बनना चाहिए.
मद्रास हाई कोर्ट ने TikTok पर बैन का दिया था अंतरिम आदेश
मद्रास हाई कोर्ट ने बुधवार को मोबाइल ऐप TikTok पर बैन लगाने का फैसला दिया था. हाई कोर्ट ने केंद्र सरकार को निर्देश दिया था कि वह TikTok को डाउनलोड करना पर प्रतिबंध लगाए क्योंकि इसमें पोर्नोग्राफिक और दूसरे घटिया कंटेंट होते हैं, और इसकी एक्सेस बच्चों तक भी है.
जस्टिस एन किरुबाकरन और जस्टिस एस एस सिंदुर ने एक अंतरिम आदेश जारी कर इस ऐप का इस्तेमाल कर बनाए गए वीडियो का टेलीकास्ट रोकने को कहा था. अदालत ने सरकार को यह भी निर्देश देकर पूछा कि क्या अमेरिका के चिल्ड्रेन्स ऑनलाइन प्राइवेसी प्रोटेक्शन एक्ट जैसा कोई कानून भारत में लागू किया जा सकता है.
अदालत ने अपने अंतरिम आदेश में कहा था
TikTok या ऐसे ही ऐप या साइबर गेम्स बच्चों का भविष्य बरबाद कर रहे हैं. इससे बच्चों का दिमाग प्रदूषित हो रहा है.
Tik Tok मोबाइल ऐप पर कल्चर खराब करने का आरोप
अदालत ने यह फैसला उस याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया जिसमें कहा गया था कि Tik Tok मोबाइल ऐप हमारे कल्चर को नीचे गिरा रहा है. यह पोर्नोग्राफी को बढ़ावा दे रहा है. इसमें ऐसे आपत्तिजनक कंटेंट होते हैं जिनसे सामाजिक बदनामी हो सकती है और किशोरों के हेल्थ को नुकसान पहुंच सकता है. कोर्ट ने कहा कि किशोर उम्र के बच्चे इसके जरिये वीडियो बना कर अजनबियों से शेयर करते हैं. ऐसा करने से ये बच्चे यौन अपराध के शिकार हो सकते हैं.
पिछले महीने तमिलनाडु के आईटी मिनिस्टर एम मणिकंदन ने कहा था कि राज्य सरकार केंद्र को TikTok को बंद करने की सिफारिश करेगी. एस ऐप की शिकायत नागापट्टनम के विधाय तमिमम अंसारी ने की थी. उनका कहना था बच्चों के इस ऐप के इस्तेमाल से परिवार में झगड़े हो रहे हैं.
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