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“समाज को बदलाव की जरूरत है, LGBTQIA+ कपल्स को नहीं” - मद्रास HC

कोर्ट ने माना कि LGBTQIA+ कपल्स के हितों की रक्षा के लिए एक विशेष कानून का अभाव है.

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मद्रास हाईकोर्ट ने 7 जून को अहम निर्देश में कहा कि LGBTQIA+ समुदाय के लोगों को परिवार और समाज की नफरत से बचाना राज्य की जिम्मेदारी है. जस्टिस आनंद वेंकटेश ने समुदाय के प्रति समाज को संवेदनशील बनाने को लेकर कई निर्देश भी जारी किए. जस्टिस वेंकटेश ने कहा कि परिवार द्वारा समलैंगिक कपल्स की गुमशुदगी की शिकायत पर पुलिस उन्हें परेशान नहीं कर सकती.

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एक लेस्बियन कपल ने अपने रिश्तेदारों से सुरक्षा की मांग करते हुए याचिका दाखिल की थी, जिसपर फैसला सुनाते हुए जस्टिस वेंकटेश ने ये निर्देश दिए.

कोर्ट ने माना कि LGBTQIA+ कपल्स के हितों की रक्षा के लिए एक विशेष कानून का अभाव है. कोर्ट ने कहा कि हालांकि, ये संवैधानिक अदालतों की जिम्मेदारी है कि वो इस कमी को जरूरी दिशा-निर्देशों से भरें, ताकि ऐसे कपल्स को उत्पीड़न से बचाया जा सके.

“जब तक सरकार कानून तैयार नहीं करती, तब तक LGBTQIA+ समुदाय को ऐसे संवेदनशील माहौल में नहीं छोड़ा जा सकता है, जहां उनकी सुरक्षा की कोई गारंटी नहीं है,”
मद्रास हाईकोर्ट

ये आदेश एक लेस्बियन कपल की याचिका पर आया है, जो अपने रिश्ते के प्रति नफरत के कारण अपने घरों से भाग गई थीं. उन्हें पुलिस द्वारा उत्पीड़न का सामना करना पड़ा, क्योंकि उनके परिवारों ने ‘गुमशुदगी’ की शिकायत दर्ज की थी.

समाज को बदलने की जरूरत

कोर्ट ने सीधा-सीधा कहा कि समस्या LGBTQIA+कपल्स की नहीं, बल्कि समाज की है जो उन्हें कलंकित करता है. इसलिए, ये समाज की जिम्मेदारी है कि वो इन पूर्वाग्रहों से निपटे और स्वीकृति की ओर आगे बढ़ें.

“असल समस्या ये नहीं है कि कानून किसी रिश्ते को मान्यता नहीं देता है, बल्कि ये कि समाज की स्वीकृति नहीं होती. केवल इसी कारण से, मुझे लगता है कि परिवर्तन सामाजिक स्तर पर होना चाहिए और जब इसे कानून से सपोर्ट मिलेगा, तो समलैंगिक संबंधों को मान्यता देकर समाज के दृष्टिकोण में असल बदलाव होगा.”
मद्रास हाईकोर्ट
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जस्टिस वेंकटेश ने ली थी काउंसलिंग

जस्टिस वेंकटेश ने कुछ समय पहले फैसला सुनाने से पहले LGBTQIA+ मुद्दों पर काउंसलिंग लेने का फैसला किया था. फैसला सुनाते हुए जस्टिस वेंकटेश ने कहा था कि साइको-एजुकेटिव काउंसलिंग ने उन्हें अपने पूर्वाग्रहों को दूर करने में मदद की.

उन्होंने कहा कि याचिकाकर्ता, विद्या दिनाकरन और त्रिनेत्र, उनके “गुरु” बन गए, जिन्होंने उन्हें “अज्ञानता के अंधेरे से बाहर निकाला.”

जस्टिस आनंद वेंकटेश ने कहा, “मुझे ये स्वीकार करने में कोई झिझक नहीं है कि मैं भी उन आम लोगों में से हूं, जो अभी तक समलैंगिकता को पूरी तरह से नहीं समझ पाए हैं. किसी भी प्रकार के भेदभाव को सामान्य बनाने के लिए अज्ञानता कोई बहाना नहीं है.”

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