वीडियो एडिटर्स: प्रशांत चौहान, कृति सक्सेना
"हमें कहा जाता है कि पानी आज आएगा, कल आएगा, परसों आएगा! हमें पानी मिलेगा कब? हमने तुम्हें बड़ा बनाया और तुम हमें धोखा दे रहे हो?"
इस साल जनवरी में महाराष्ट्र के बारामती में एक विरोध स्थल पर एक बूढ़ी महिला सभा में से माइक पर चिल्लाई. मंच पर लोकसभा सांसद और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी-शरदचंद्र पवार (NCPSP) नेता सुप्रिया सुले मौजूद थीं.
बारामती लोकसभा (Baranati Lok Sabha) के कम से कम 24 गांव सबसे बुनियादी मांग - पानी की आपूर्ति के लिए विरोध प्रदर्शन कर रहे थे.
सुले और महाराष्ट्र के डिप्टी सीएम अजीत पवार के आश्वासन और राज्य सरकार के लिखित आश्वासन के एक हफ्ते बाद विरोध प्रदर्शन खत्म हुआ था.
पूरा अप्रैल 2024 बीत चुका है लेकिन गांव अभी भी वादा पूरा होने का इंतजार कर रहा है.
एक स्थानीय व्यक्ति ने नाम न छापने की शर्त पर द क्विंट को बताया, "जब हम संबंधित कार्यालयों में जाते हैं, तो वे कहते हैं कि आदर्श आचार संहिता (एमसीसी) अब लागू हो गई है. एक बार तो उन्होंने हमें भगा ही दिया था."
'हमने अपने नलों में कभी पानी नहीं देखा है', यह बारामती शहर से महज 30-40 किलोमीटर दूर 20 से अधिक गांवों में एक आम बयान है - जो कि पवार परिवार का गृह क्षेत्र है और एक विकास मॉडल है जिस पर पवार गर्व करते हैं.
बारामती के गांवों में पानी की समस्या
बारामती में चुनाव एनसीपी बनाम एनसीपी का ही है. यानी शरद पवार बनाम अजित पवार और उम्मीदवार सुप्रिया सुले बनाम सुनेत्रा पवार. महाराष्ट्र की बारामती लोकसभा के कई गांवों में जल संकट के कारण कई किसान परिवारों के लिए ये मुद्दा दशकों पुराना है.
कुछ गांवों में, सूखे और पानी की आपूर्ति की कमी के कारण सूखे हुए खेत और फसलें देखी जा सकती हैं.
अधिकांश गांव अभी भी टैंकरों पर निर्भर हैं जिसे स्थानीय प्रशासन हर पांच-छह दिन या हफ्ते में एक बार उपलब्ध कराता है, जिससे हर परिवार को लगभग 150-200 लीटर पानी मिलता है. इन गांवों के अधिकांश परिवारों को पीने, खाना पकाने, मवेशियों को खिलाने, कपड़े और बर्तन धोने और खेती के लिए उपलब्ध पानी का राशन लेना पड़ता है.
"एक पूरे गांव को कभी भी टैंकर से एक ही समय में पर्याप्त पानी नहीं मिल पाता है. ऐसा कैसे होगा? कुछ लोग एक दिन नहाते हैं, बाकी लोग अगले दिन नहाते हैं. हम बारी-बारी से नहाते हैं." हर दो दिन में पानी का संकट इतना गंभीर हो जाता है."
ये बातें क्विंट से बातचीत के दौरान पनसेरेवाड़ी गांव के स्थानीय निवासी लताबाई कालखैरे ने बताई.
निर्मला ने कहा कि, "कभी-कभी, हमें बिल्कुल भी पानी नहीं मिलता है. ऐसा हर दूसरे दिन पर हो जाता है. हमें उन लोगों से पानी उधार लेना पड़ता है जिनके पास ज्यादा पानी है. यहां तक कि उन लोगों के पास भी पानी नहीं है. मैंने तब से यहां के नलों में कभी पानी नहीं देखा है. मैंने शादी कर ली और यहां आ गई."
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