वीडियो एडिटर: विवेक गुप्ता
वीडियो प्रोड्यूसर: मौसमी सिंह
महाराष्ट्र के भंडारा जिला अस्पताल में आग लगने से दस बच्चों की मौत के बाद सरकार कह रही है कि दोषियों को बख्शा नहीं जाएगा. लेकिन दोषी है कौन? नर्स, डॉक्टर, अस्पताल प्रशासन या कुछ और लोग भी. जो सरकार अब कह रही है कि कड़ा एक्शन होगा, उसकी सरकार का स्वास्थ्य मंत्रालय इस अस्पताल की एक अर्जी पर 7 महीने से एक्शन नहीं ले पाया. अर्जी में डेढ़ करोड़ रुपए मांगे गए थे ताकि अस्पताल में फायर सेफ्टी के पुख्ता उपाय किए जा सकें.
6 महीने से पेंडिंग था फायर सेफ्टी को लेकर प्रस्ताव
आरटीआई के जरिए सामने आई जानकारी से पता चला है कि अस्पताल में आग सेफ्टी उपाय योजनाओं के लिए सिविल सर्जन का भेजा गया 1.52 करोड़ का प्रस्ताव राज्य के स्वास्थ्य मंत्रालय के पास पिछले 6 महीनों से पेंडिंग है.
2018 में आरटीआई कार्यकर्ता विकास बदनकर ने भंडारा सरकारी अस्पताल की एनुअल फायर सेफ्टी ऑडिट रिपोर्ट की जानकारी लेने के लिए अर्जी दी थी. जिसके जवाब में सामने आया था कि अस्पताल में फायर हाईड्रेन्ट, स्प्रिंकलर्स, एक्सटिंगुइशेर, स्मोक अलार्म और एस्केप लैडर उपलब्ध नहीं थे.
फिर एक बार दो साल बाद जून 2020 में आरटीआई कार्यकर्ता ने इस जवाब पर हुई कार्रवाई के बारे में जानकारी हासिल करने के लिए अस्पताल प्रशासन को पत्र लिखा. जिसके जवाब में अस्पताल ने बताया कि फायर सेफ्टी सिस्टम लगाने के लिए सितंबर 2020 को राज्य के स्वास्थ्य मंत्रालय के पास डेढ़ करोड़ का प्रस्ताव भेजा हुआ है. लेकिन ये दर्दनाक हादसा होने तक इस पर कोई कार्रवाई नहीं हुई.
सीएम उद्धव ठाकरे ने अस्पताल का खुद जायजा लेकर उच्च स्तरीय जांच के लिए डिविजनल कमिश्नर, मुंबई फायर ब्रिगेड के पूर्व चीफ और इलेक्ट्रिकल विभाग के एक्सपर्ट्स की कमेटी को आदेश दिए हैं.
फायर सेफ्टी के लिए नहीं मिली थी NOC
भंडारा सरकारी अस्पताल की इस इमारत का 2015 में उद्घाटन हुआ था. शासन नियमानुसार किसी भी सार्वजनिक बिल्डिंग को उपयोग में लाने से पहले उसको फायर सेफ्टी कंप्लायंस NOC मिलना जरूरी होता है. लेकिन किसी भी सर्टिफिकेट के बिना SNCU को शुरू करने की इजाजत किस पीडब्ल्यूडी और फायर ऑफिसर ने दी, ये सवाल अब खड़ा हो रहा है. 25 साल पुराने इस अस्पताल में 482 बेड्स हैं. गंभीर मरीजों के लिए 6 बेड्स का आईसीयू वार्ड है और 25 बेड्स का नवजात शिशुओं के लिए आरक्षित है. साथ ही अस्पताल में 800 से ज्यादा मरीजों को ओपीडी सेवा की व्यवस्था है. बावजूद इसके इस अस्पताल की फायर सेफ्टी को पूरी तरह से नजरअंदाज किया गया.
प्रस्ताव को लेकर सरकार ने साधी चुप्पी
हालांकि सरकार ने जांच के आदेश देकर दोषियों पर कड़ी कारवाई का आश्वासन दे दिया है. लेकिन अस्पताल प्रशासन के भेजे प्रस्ताव पर वक्त रहते ही कदम क्यों नहीं उठाए गए, हमने ये सवाल राज्य के स्वास्थ्य मंत्री राजेश टोपे से पूछने की, लेकिन संपर्क नहीं हो पाया.
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