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समझ चुके हैं ट्रांसजेंडर्स - ‘वोट बैंक नहीं तो अधिकार नहीं’

महाराष्ट्र में ट्रांसजेंडर अपने मताधिकार को लेकर पहले से ज्यादा सजग हुए हैं.

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भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है. कहने को इसमें सभी को बराबरी का अधिकार है, लेकिन बदकिस्मती से मुद्दों का रूख और देश की दशा-दिशा वही तय करते हैं जिनके पास ‘वोट बैंक’ होता है.

वोट बैंक की राजनीति अब ट्रांसजेंडर्स को भी समझ में आने लगी है. महाराष्ट्र में ट्रांसजेंडर्स अपने मताधिकार को लेकर सजग हुए हैं. इसका अंदाजा इस बात से लगाया गया है कि इस साल राज्य के ठाणे जिले में समुदाय से सर्वाधिक मतदाताओं ने बतौर मतदाता अपना पंजीकरण करवाया है.

उल्लेखनीय है कि ‘अन्य’ वर्ग में पंजीकरण कराने वाले अधिकतम 219 मतदाता ठाणे से थे, जिसके बाद मुंबई के उपनगरीय जिले में 174 और अहमदनगर में 111 मतदाता दर्ज किए गए.

एक वरिष्ठ निर्वाचन अधिकारी के मुताबिक, जनवरी 2014 में राज्य में ‘अन्य’ वर्ग में महज 261 मतदाता पंजीकृत थे. जनवरी 2015 में यह आंकडा बढ़कर एक हजार हो गया. जो अब पिछले महीने में बढ़कर 1,271 हो गया है.

प्रशासन का पूरा सहयोग मिला

उप मुख्य निर्वाचन अधिकारी शिरीष मोहोद ने बताया कि हमने इस रजिस्ट्रेशन कैंपेन को सफल बनाने के लिए लक्ष्मी नारायण तिवारी के ‘अस्तित्व’ और पेशेवर वेश्याओं के बीच काम करने वाले एनजीओ ‘संगम’ जैसे गैर सरकारी संगठनों की मदद ली. इस प्रक्रिया में सबसे खास बातें यह रहीं कि...

  • पुलिस अधिकारी परस्पर ट्रांसजेंडर लोगों से बातचीत करते रहे.
  • भारत निर्वाचन आयोग ने ट्रांसजेंडर्स के बीच जागरुकता फैलाने के मकसद से तख्तियों, पोस्टर और लोगों सो सजग करने के लिए छोटी फिल्में बनवाई जाए.
  • आयोग ने निर्वाचन पंजीकरण अधिकारियों को मुंबई और ठाणे के इलाकों में भेजकर कुछ शिविरों का आयोजन किया.
  • चूंकि ट्रांसजेंडर समुदाय में ‘गुरुजी’ (समुदाय का मुखिया) बनाने की परंपरा रही है, इसलिए उनके गुरुजी की ओर से दिए गए प्रमाणपत्र को स्वीकार करने का फैसला किया गया.
  • इसके अलावा पुलिस से यह कहा गया कि वे इन लोगों का उत्पीडन नहीं करें.
लिहाजा, इस पूरे प्रयास का असर कुछ इस रूप में देखा गया कि साल 2012 में अन्य वर्ग के मतदाताओं में शून्य पंजीकरण था, जबकि 2015 में यह बढ़कर 1,271 हो गया.

ट्रांसजेंडर्स का डर

मोहोद ने बताया कि ट्रांसजेंडर को मुख्य रुप से यह डर सताता है कि अगर उन्होंने अपने पेशे का खुलासा किया, तो वे पुलिस के उत्पीडन का शिकार हो सकते हैं और दूसरी समस्या है उनके पास जन्म प्रमाणपत्र एवं आवास प्रमाणपत्र आदि जैसे दस्तावेजों की कमी.

अपने इन प्रयासों के चलते ही मोहोद को खासकर समाज के हाशिए पर मौजूद वर्गों में मतदाता शिक्षा और चुनावी सहभागिता के लिए ‘राष्ट्रीय विशिष्ट पुरस्कार’ प्रदान किया गया. 25 जनवरी, 2016 को राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने उन्हें इस पुरस्कार से नवाजा था.

ट्रांसजेंडर्स को स्वीकर किया जाने लगा है

यह कहना कहीं न कहीं सही होगा कि ट्रांसजेंडर को लेकर हमारे समाज में थोड़ी सहनशीलता पैदा हुई है. मसलन, वोटिंग का अधिकार देकर उनके अधिकारों को सुनिश्चित करने की कोशिश की जा रही है.

ऐसे ही राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी 27 फरवरी को भारत के पहले लिंग समानता आधारित केंद्र ‘जेंडर पार्क’ का उद्घाटन करने वाले हैं. यह पार्क लैंगिक मुद्दों के समाधान के लिए सरकार, शिक्षाविद और नागरिक समाज को एक मंच पर साथ लाने के लिए केरल सरकार के सामाजिक न्याय विभाग की एक पहल है. इस पार्क के जरिए देश में पहली बार लैंगिक असमानता घटाने का प्रयास किया जाएगा.

इसके अलावा ट्रांसजेडर समाज पर एक बंगाली फिल्म बनाई जा रही है, जिसमें चौराहों पर मदद मांगने वाले पुरुष ट्रांसजेंडरों की जिंदगी के बारे में बताया जाएगा. जाधवपुर विश्वविद्यालय के फिल्म अध्ययन की एक युवा छात्रा के डायरेक्शन में बन रही फिल्म ‘जनाना’ में सास्वत चटर्जी और कुछ अन्य लोकप्रिय बांग्ला अभिनेताओं ने अभिनय किया है.

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