सबसे शक्तिशाली देश अमेरिका में भारतीय मूल की कमला हैरिस पहली उप-राष्ट्रपति बनीं, इसकी दुनिया भर में सरहना हो रही है. वहीं दूसरी तरफ भारत देश के एक राज्य महाराष्ट्र में हुए पंचायत चुनावों में काफी चुनौतियों का सामना करके कुछ महिलाओं ने पहली बार चुनाव लड़ा है. ये महिला एकल यानी सिंगल वीमेन कहलाती है, जिन्हें समाज में आज भी एक अलग नजरिए से देखा जाता है.
आज हम कुछ ऐसी ही साधारण महिलाओं की असाधरण कहानी बयां करने वाले हैं, जिसमें विधवा, तलाकशुदा और परितक्त्या (abandoned) महिलाओं का संघर्ष शामिल है. हाल ही में महाराष्ट्र के पंचायत चुनावों में मराठवाड़ा इलाके से कुल 200 ऐसी एकल महिलाओं ने चुनाव लड़ने की पहल की जिसमें से 68 महिलाओं ने जीत हासिल की है. शिक्षा और आर्थिक रूप से सक्षम बनने की कोशिश के बाद अब एकल महिलाओं ने राजनैतिक रूप से आर्मनिर्भर होने का निश्चय किया है.
कौशल्या 3 वोट से हारीं, लेकिन ये भी जीत से कम नहीं
ये है बीड जिले की कौशल्या कलसुले. उम्र 31 साल. सिर्फ 17 साल की उम्र में ये विधवा हो गईं. फिलहाल अपने दो बच्चो और मां के साथ रहती है. इन्हें चुनाव लड़ने के लिए घर से लेकर पंचायत तक सभी के विरोध का सामना करना पड़ा. बावजूद उसके इन्होंने चुनाव लड़ा लेकिन केवल 3 वोटों से हार गईं. फिर भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और आगे भी उनके चुनाव लड़ने के लिए हौसले बुलंद है. आइये सुनते हैं उनकी कहानी उन्हीं की जुबानी...
मुझे चुनाव लड़ने की बहुत इच्छा थी लेकिन मेरी मां और बेटे ने उसका विरोध किया. 8 दिनों तक घर में झगड़ा हुआ. मैंने बहुत समझाने की कोशिश की लेकिन वो नहीं माने. आखिरकार मैंने अपनी मां को कहा कि अगर वो आत्महत्या भी कर लेंगी तो भी मैं चुनाव लड़ कर रहूंगी. फिर कोरो संस्था के राम भाई, शिशिर भाई ने उन्हें समझाया. मां राजी हुईं लेकिन एक भी पैसा खर्च ना करने की शर्त पर. फिर मैंने गांव की महिलाओं को भी बताया. उन्होंने कहा- जितनी मदत हो सकती है उतनी करेंगे. मुझे फॉर्म कैसे भरना ये तक पता नहीं था. तीन दिनों तक फॉर्म के लिए चक्कर लगाती रही. गांव में बस नहीं आती थी फिर भी मैं किसी की मोटरसाइकल पर सवार होकर काम करती थी. आखिर मैंने निर्दलीय उम्मीदवार बनकर फॉर्म भर दिया. उसके बाद गाँव के राजनैतिक लोग मुझे धमकाने लगे. कहने लगे कि तुम्हारे पीछे कोई पुरुष नहीं है, एक विधवा चुनाव क्यों लड़ रही है. लेकिन मैंने भी जवाब में कहा कि अगर मैं विधवा हूँ तो मुझसे घर, पानी और बिजली का बिल कैसे वसूलते हो, वो माफ क्यों नहीं करते. उन्हें बताया दिया कि मेरे पीछे एकल महिला संगठन की 19 हजार महिलाएं है. तुम मेरा बाल भी बांका नहीं कर सकते. मेरे प्रचार के लिए संगठन की महिलाएं दूसरे गावों से आईं. हमारे पास दिखाने के लिए ना कोई पोस्टर था, ना ही पार्टी का चुनाव चिन्ह था. लेकिन फिर भी महिलाओं ने बहुत अच्छा काम किया. कुछ लोग मुझसे दूसरे उम्मीदवार की तरह पीने और खाने में मुर्गी-बकरा मांग रहे थे. लेकिन मैंने साफ कर दिया कि मेरे घर में चाय के लिए चीनी भी नहीं है. आप अगर मत देना चाहे तो दें. चुनाव के दिन काफी गड़बड़ियां चल रही थी. लोग महिलाओं को हाट पकड़कर वोटिंग करवा रहे थे. मैंने पुलिस से संपर्क किया. उनसे पूछा कि ड्यूटी कर रहे हों या फिर सो रहे हो. मेरा बेटा जो पहले इस सब को लेकर नेगेटिव था वो भी मेरे लिए आगे आया. वो भी लोगों से मुझे वोट देने की मांग करने लगा. मुझे अपने बेटे पर अब बहुत अभिमान है. लेकिन 18 जनवरी को जब चुनाव नतीजे आए तो पता चला कि मैं सिर्फ 3 वोटों से हार गई. लेकिन इस बात का मुझे बिल्कुल दुख नहीं है. क्योंकि लोग घर आकर मेरी प्रशंसा कर रहे थे. कह रहे थे कि में हारी नहीं बल्कि एक पड़ाव पार किया है. ऐसे में अब में पंचायत समिति और जिला परिषद का चुनाव लड़ने की भी तैयारी करूंगी.कौशल्या कलसुले, उम्मीदवार, बीड जिला
62 की उम्र में लड़ा चुनाव और जीता भी
दूसरी 62 साल की नांदेड़ जिले की महिला है, जिन्होंने इस उम्र में चुनाव लड़ा भी और जीत भी हासिल की है. पहले चुनाव में मिली जीत उनके लिए क्या मायने रखती है, वो खुद बता रही हैं.
मुझे चुनाव लड़ने की हमेशा से इच्छा थी लेकिन कभी हिम्मत नहीं हुई. एकल महिला संगठन की महिलाओं की वजह से मैं हिम्मत जुटा पाई और चुनाव लड़ा. मेरा वैसे किसी ने विरोध तो नहीं किया लेकिन जीतने की उम्मीद भी नहीं थी. पर सभी महिलाओं ने काफी हौसला दिया, मदद की. अब जीतने के बाद इन सभी महिलाओं के लिए बहुत काम करना है. उनकी मीटिंग लेकर उनकी समस्याएं समझनी है. सभी के लिए सरकार की घरकुल योजना और पैसों का लाभ दिलाना है. इसके अलावा भी महिलाओं की जो भी इच्छा हो, उसे पूरा करने की ताकत मिलने का एहसास अब मुझे हो रहा है.भागतबाई करड़े, लातूर
73 वोटों से जीतीं शीला, पति ने बढ़ाया मनोबल
तीसरी महिला एकल नहीं है मगर उनके पति लक्ष्मण हजारे एकल महिलाओं के संघर्ष से जुड़े हैं. बीड जिले की भोपला ग्रामपंचायत से शीला हजारे 73 वोटों से जीती हैं. वो खुशनसीब हैं कि पति के सहयोग से उन्होंने चुनाव लड़ा और जीत दर्ज की है. एकल महिला संगठन के जरिए वे भी महिलाओं को राजनैतिक क्षेत्र में आगे देखना चाहती हैं. वो खुद अपनी सफलता की कहानी बता रही हैं.
मुझे राजनीति में पड़ने की बिल्कुल इच्छा नहीं थी. लेकिन मेरे पति का मेरेी जीत में बहुत बड़ा हिस्सा है. मेरे पति ने मुझे बहुत समझाया. वो पिछले आठ सालों से महिलाओं के अधिकारों के लिए कोरो इंडिया संस्था के साथ काम कर रहे है. इसीलिए उनका मानना था इसकी शुरुआत घर से क्यों ना करें. एकल महिला के कार्यकर्ता, मेरी भाभी और मेरे दोस्त ने भी मुझे बहुत सपोर्ट किया. तब मैं चुनाव लड़ने को तैयार हुई. वैसे मेरे दो बच्चे हैं लेकिन फिर भी मुझे और एक लड़की की इच्छा थी. लेकिन चुनाव लड़ने के लिए दो बच्चों का नियम होने के कारण हमने तीसरे बच्चे का विचार नहीं किया. बहुत सोच विचार करना पड़ा. साथ ही मेरी शिक्षा सातवीं तक थी. लेकिन पति ने मुझे दो बच्चे होने के बावजूद 10वीं तक पढ़ाया. कई संकटों का सामना करने के बाद हमने ये जीत हासिल की है. अब मैं और मेरे पति बहुत खुश हैं.शीला लक्ष्मण हजारे, विजयी उम्मीदवार, बीड
आपको बता दें कि 2015 में मराठवाड़ा के कुछ जिलों में 32 महिलाओं ने मिलकर एकल महिला संगठन की स्थापना की. आज 5 साल बाद 16 हजार से ज्यादा महिलाएं इस संगठन का हिस्सा हैं. शुरुआती दौर में एकल महिलाओं में आत्मविश्वास पैदा करना, समाज की रूढ़ मान्यताओं के खिलाफ आवाज उठाना और आर्थिक रूप से महिलाओं को सक्षम बनाने का काम शुरू किया. धीरे-धीरे खुद के साथ गांव के विकास पर भी विचार होने लगा.
ऐसे में महिलाओं ने सबसे पहले गांव की ग्रामसभा में शामिल होना शुरू किया. गांव पंचायत में हमेशा से मर्दों का वर्चस्व रहा है. इन महिलाओं को यहां खास तवज्जो नही मिलती थी. तो फिर खुद से जुड़ी समस्याओं पर एकल महिला कार्यकर्ताओं ने ग्रामसभा में सवाल पूछना शुरू किया, जिसका कोई जवाब या हल नहीं मिलता था. इसीलिए अपनी समस्या का निदान करने के लिए महिलाओं को महसूस हुआ कि उन्हें पंचायत में खुद प्रतिनिधित्व करना होगा.
सभी महिलाओं ने एकल महिला संगठन की तरफ से चुनाव लड़ने का निर्णय लिया. लेकिन चुनाव प्रक्रिया में फॉर्म भरने से लेकर प्रचार तक किसी भी चीज का अनुभव उनके पास नही था. इसिलए 2018 में एकल महिला संगठन के स्तर पर ही एक मॉक चुनाव की तैयारी की. जिसमें उन्होंने नामांकन से बैलेट वोटिंग तक की ट्रेनिंग ली. उसके बाद 15 जनवरी 2020 को घोषित हुए ग्रामपंचायत चुनाव में पहली बार चुनाव लड़ने की पहल की.
आज इनमें कुल 53 ग्राम पंचायतों में से 194 महिलाओं ने नामांकन भरा था. जिसमें 68 महिलाओं ने जीत दर्ज की है. मराठवाड़ा के बीड, लातूर, उस्मानाबाद, नांदेड़ इन जिलों की अलग-अलग ग्राम पंचायतों में एकल महिलाओं को पहली बार प्रतिनिधित्व करने का मौका मिलने वाला है. अब तक के इस सफर में एकल महिला संगठन को कोरो इंडिया और एडलगिव फाउंडेशन इन संस्थाओं से काफी मदद और सहयोग मिला है.
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