ADVERTISEMENTREMOVE AD

महाराष्ट्र: मंडरा रहा औरंगजेब का 'जिन्न', फोटो पोस्ट पर बवाल, 4 महीने में 10 FIR

औरंगजेब को लेकर सोशल मीडिया पर किए गए एक पोस्ट के चलते एक नाबालिग सहित दर्जनों लोगों पर FIR.

Published
भारत
9 min read
story-hero-img
i
छोटा
मध्यम
बड़ा
Hindi Female

(*पहचान छिपाने के लिए नाम बदले गए हैं.)

महाराष्ट्र (Maharashtra) के बीड (Beed) जिले में रहने वाले 14 साल के हुसैन* ने हाल ही में अपना इंस्टाग्राम एकाउंट डिलीट कर दिया. वो किसी भी सोशल मीडिया साइट पर दोबारा ना लौटने की कसम खाते हुए कहते हैं कि “मैंने कभी सोचा भी नहीं था कि एक दिन एक इंस्टाग्राम स्टोरी मेरे सबसे बुरे ख्वाब में बदल जाएगी.”

17वीं शताब्दी के मुगल बादशाह औरंगजेब पर एक पोस्ट ने 8 जून को हुसैन को मुश्किल में डाल दिया. इस पोस्ट के चलते उनके खिलाफ भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 295 ए (जानबूझकर और दुर्भावनापूर्ण कार्य, किसी भी वर्ग के धर्म या धार्मिक विश्वासों का अपमान करके उनकी धार्मिक भावनाओं को अपमानित करने का इरादा) और 505 बी (अपराध भड़काने का इरादा) के तहत एक एफआईआर दर्ज की गई.

ADVERTISEMENTREMOVE AD
हुसैन के अंकल ने द क्विंट से के साथ बातचीत में कहा कि “इस देश में किसी ऐतिहासिक शख्सियत की इमेज को शेयर करना जुर्म कब से हो गया? अपने बच्चे को जमानत दिलाने के लिए हमें बहुत पैसा खर्च करना पड़ा.”

23 साल के सोशल वर्कर और एक दक्षिणपंथी समूह हिंदू एकता समिति के एक मेंबर की शिकायत के बाद इस नाबालिग बच्चे के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई.

औरंगजेब को लेकर सोशल मीडिया पर किए गए एक पोस्ट के चलते एक नाबालिग सहित दर्जनों लोगों पर FIR.

वो कथित सोशल मीडिया पोस्ट, जिसके चलते शुभम लोखंडे ने हुसैन के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई.

(फोटो: Accessed by The Quint)

शिकायत दर्ज करवाने वाले शख्स ने द क्विंट को बताया कि...

"हम छत्रपति शिवाजी महाराज के फॉलोवर हैं और औरंगजेब उनका दुश्मन था. उसने सैकड़ों हिंदू मंदिरों को खत्म कर दिया. इस लड़के को मैं व्यक्तिगत रूप से जानता हूं, क्योंकि हम एक ही कॉलोनी में रहते हैं. इसने औरंगजेब की एक इमेज शेयर की थी, जिसमें लिखा था 'बाप-बाप' 'होता है'. इससे मेरी धार्मिक भावनाएं आहत हुईं. इसलिए मैंने शिकायत दर्ज कराई."
हुसैन और उनके परिवार के लिए, एफआईआर का मतलब था पुलिस स्टेशन, जुवेनाइल कोर्ट के कई चक्कर लगाना, 15 सेकेंड लंबे वीडियो के जरिए सार्वजनिक माफी मांगना और स्कूल बदलना.
0

नाबालिग युवक के अंकल ने कहा कि "हुसैन के पिता एक दर्जी हैं. परिवार पैसों से कमजोर है. FIR की वजह से हमें उसका स्कूल बदला पड़ा और नए स्कूल में एडमिशन कराना पड़ा. उन्होंने (हिंदुत्व कार्यकर्ताओं) उससे कहा कि वह सार्वजनिक रूप से माफी मांगे और इसे पूरे सोशल मीडिया पर सर्कुलेट किया.

वैसे यह अकेला मामला नहीं है. इस साल मार्च से महाराष्ट्र के कई जिलों जैसे कोल्हापुर, औरंगाबाद, नासिक, बीड, मुंबई और बुलढाणा में ऐसी ही करीब 10 एफआईआर दर्ज की जा चुकी हैं. ये सभी एफआईआर उन लोगों के खिलाफ दर्ज की गई हैं, जिन्होंने कथित तौर पर 17वीं शताब्दी के मुगल बादशाह को ‘ग्लोरिफाई’ करने वाली सोशल मीडिया पोस्ट किया.

इससे पहले जून में बीजेपी नेता और महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फणडनवीस ने औरंगजेब से संबंधित सोशल मीडिया पोस्ट पर कोल्हापुर में विरोध प्रदर्शन पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा था,

"महाराष्ट्र में अचानक औरंगजेब की औलादें पैदा हुई हैं. वे सोशल मीडिया पर औरंगजेब की तस्वीरें और स्टेटस पोस्ट कर रहे हैं, जिससे समाज में दुर्भावना पैदा हो रही है."

द क्विंट ने ऐसी 10 FIR देखी, कानूनी और राजनीतिक विशेषज्ञों और इतिहासकारों से बात की, यह समझने के लिए कि औरंगजेब की विरासत राज्य में विवाद का विषय क्यों बन गई है?

ADVERTISEMENTREMOVE AD

FIRs क्या कहती हैं?

द क्विंट ने कई जिलों में 10 FIR देखी और सभी आईपीसी की इन धाराओं के तहत दर्ज की गईं:

  • 298 (धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाना)

  • 505B (अपराध भड़काने का इरादा)

  • 295ए (जानबूझकर और दुर्भावनापूर्ण कृत्य, जिसका उद्देश्य किसी वर्ग के धर्म या धार्मिक विश्वासों का अपमान करके उसकी धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाना है)

  • 153ए (धर्म, जाति, जन्म स्थान, निवास और भाषा के आधार पर विभिन्न समूहों के बीच शत्रुता को बढ़ावा देना.)

इनमें से ज्यादातर मामलों में शिकायतकर्ता या तो राज ठाकरे के नेतृत्व वाली महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) जैसे दक्षिणपंथी रुझान वाले राजनीतिक दल से जुड़े थे या हिंदू एकता समिति और सकल हिंदू समाज जैसे हिंदुत्व संगठनों का हिस्सा थे.

मिसाल के तौर पर 10 जून को शहर के सिडको पुलिस स्टेशन में अताउर्रहमान नाम के एक व्यक्ति के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई थी, जो कथित तौर पर औरंगाबाद का निवासी है, क्योंकि उसने एक सोशल मीडिया पोस्ट अपलोड की थी, जिसमें लोगों को इकट्ठा होने और औरंगजेब की ताजपोशी की सालगिरह मनाने के लिए कहा गया था.

शिकायतकर्ता MNS सदस्य चंद्रकांत नवपुते ने आरोप लगाया कि रहमान की पोस्ट ने "उसकी धार्मिक भावनाओं को आहत किया है."

नवपुते ने अपनी शिकायत में कहा कि..

"9 जून की सुबह, मेरे एमएनएस सहयोगी गणेश सालुंखे और मुझे एक फेसबुक पोस्ट मिली, जिसमें लोगों से कहा गया था कि वे औरंगजेब की राजपोशी की 364वीं वर्षगांठ मनाने के लिए इकट्ठा हों. अताउर्रहमान की इस पोस्ट ने उन लोगों की धार्मिक भावनाओं को आहत किया है, जो छत्रपति संभाजी महाराज का सम्मान करते हैं और उनकी पूजा करते हैं. संभाजी महाराज को औरंगजेब ने मार डाला था. समाज में शांति भंग करने की कोशिश करने के लिए इस व्यक्ति के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जानी चाहिए."
ADVERTISEMENTREMOVE AD
मामले की जांच चल रही है और औरंगाबाद पुलिस आरोपी की पहचान का पता लगाने की कोशिश कर रही है.

सिडको पुलिस स्टेशन के प्रभारी अधिकारी संभाजी पवार ने कहा कि...

"अभी तक, हमारे पास केवल आरोपी का फेसबुक यूजरनेम है. स्क्रीनशॉट हमारी साइबर क्राइम यूनिट को भेज दिया गया है और आरोपी की पहचान होने के बाद हम जांच आगे बढ़ाएंगे."

औरंगजेब की फोटो के साथ व्हाट्सएप स्टेटस शेयर करने के लिए 29 वर्षीय मोहम्मद अली मोहम्मद हुसैन के खिलाफ 12 जून को नवी मुंबई के वाशी में एक और केस दर्ज किया गया.

इस मामले में सकल हिंदू समाज (पूरे महाराष्ट्र के दक्षिणपंथी संगठनों का एक समूह) के सदस्यों ने पुलिस स्टेशन में नारे लगए और पुलिस पर कार्रवाई करने का दबाव बनाया. इसके बाद हुसैन को आपराधिक प्रक्रिया संहिता (CRPC) की धारा 41 ए के तहत नोटिस दिया गया.

वाशी पुलिस स्टेशन के एक अधिकारी ने द क्विंट को बताया

"नोटिस देने के बाद आरोपी संक्षिप्त पूछताछ के लिए आया. व्हाट्सएप स्टेटस में टेक्स्ट के बिना, औरंगजेब की तस्वीर थी. मामले की अभी भी जांच चल रही है."
बॉम्बे हाई कोर्ट के वकील अनिकेत निकम के मुताबिक इन मामलों में आईपीसी की धाराएं केवल तभी लगाई जा सकती हैं, जब कानून प्रवर्तन एजेंसियां मेन्स री या आपराधिक इरादे स्थापित करती हैं.

निकम कहते हैं कि "अगर किसी विशेष इलाके में किसी मुद्दे पर बहुत तनाव है और इस तरह की सोशल मीडिया पोस्ट अशांति पैदा कर सकती है तो पुलिस या अदालत यह मान सकती है कि आरोपी का आपराधिक इरादा था."

"इनमें से अधिकांश धाराएं जैसे कि आईपीसी की 298, 295ए और 153ए, हेट स्पीच से जुड़े कानूनों के तहत आती हैं. इन कानूनों को व्यापक रूप से परिभाषित किया गया है, लेकिन उनके दुरुपयोग को रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने कई मौकों पर कई दिशानिर्देश दिए हैं. यह तय करना पुलिस और स्थानीय कानून प्रवर्तन एजेंसियों की जिम्मेदारी है कि इन दिशानिर्देशों का पालन किया जाए और इन धाराओं का दुरुपयोग न हो."
अनिकेत निकम, वकील, बॉम्बे हाई कोर्ट
ADVERTISEMENTREMOVE AD

निकम कहते हैं कि "ऐसे मामलों में होना तो यह चाहिए कि पुलिस इन धाराओं को लागू करने से पहले सरकार की तरफ से नियुक्त एक हाई रैंकिंग ज्यूडीशियल ऑफिसर की कानूनी राय ले. इससे एफआईआर दर्ज करने से पहले पुलिस उनकी सस्टेनेबिलिटी के बारे में जान लेती है. यानी ऐसे मामले अदालत में टिकने वाले हैं या नहीं. लेकिन छोटे गांवों और कस्बों में पुलिस के पास ऐसा सब करने का अनुभव या विशेषज्ञता नहीं है. हालांकि हमें यह समझना चाहिए कि एफआईआर दर्ज करने या दर्ज न करने के परिणाम हो सकते हैं."

जिंदगियां उजड़ गईं, परिवार पलायन को मजबूर हुए

मार्च 2022 में औरंगजेब के एक व्हाट्सएप वीडियो को लेकर 19 वर्षीय मोहम्मद मोमिन के खिलाफ एक एफआईआर दर्ज की गई. इसके चलते उसके पूरे परिवार को महाराष्ट्र के कोल्हापुर जिले में अपने पैतृक गांव सावरदे से भागने के लिए मजबूर होना पड़ा.

वह परिवार अब तक घर नहीं लौटा है.

संभाजी भिड़े की अगुवाई वाले शिव प्रतिष्ठान हिंदुस्तान से जुड़े स्थानीय लोगों और हिंदुत्व एक्टिविस्ट्स ने इस व्हाट्सएप स्टेटस के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया. उसके बाद मोमिन के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 298 (धार्मिक भावनाओं को आहत करना) और 505 (2) (वर्गों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देना) के तहत एफआईआर दर्ज की गई थी. .

45 सेकेंड लंबे इस वीडियो के बैकग्राउंड वॉयस के साथ औरंगजेब की तस्वीर थी, जिसमें कहा गया था...

"तुम नाम तो बदल लोगे, लेकिन इतिहास नहीं बदल पाओगे. वो पहाड़ आज भी गवाह है, इस शहर का बादशाह कौन था और कौन है. औरंगजेब आलमगीर."

वीडियो के साथ एक स्टेटस अपलोड किया गया था जिसमें लिखा था, "औरंगाबाद हमेशा औरंगजेब का रहेगा."

यह वही समय था, जब केंद्र ने औरंगाबाद शहर का नाम बदलकर 'छत्रपति संभाजीनगर' और उस्मानाबाद शहर का नाम 'धाराशिव' करने को मंजूरी दी थी.

औरंगजेब को लेकर सोशल मीडिया पर किए गए एक पोस्ट के चलते एक नाबालिग सहित दर्जनों लोगों पर FIR.

वीडियो को एक स्टेटस के साथ अपलोड किया गया था जिसमें लिखा था, "औरंगाबाद हमेशा औरंगजेब का रहेगा."

(फोटो: Accessed by The Quint)

ADVERTISEMENTREMOVE AD

मोमिन के खिलाफ पुलिस शिकायत हटकनंगले तालुका के बीजेपी सदस्य परशुराम चव्हाण ने दर्ज कराई थी.

नाम न छापने की शर्त पर द क्विंट से बात करते हुए मोमिन के एक जानकार ने आरोप लगाया कि पुलिस ने परिवार को गांव छोड़ने की सलाह दी, जब तक कि हालात शांत नहीं हो जाते.

हालांकि इस जांच के बारे में जानने वाले एक पुलिस अधिकारी ने कहा कि परिवार ने अपनी मर्जी से गांव छोड़ा है.

औरंगजेब को लेकर सोशल मीडिया पर किए गए एक पोस्ट के चलते एक नाबालिग सहित दर्जनों लोगों पर FIR.

कोल्हापुर में औरंगजेब को 'ग्लोरिफाई' करने वाले सोशल मीडिया पोस्ट के विरोध में इकट्ठा हुए लोग.

(फोटो- पीटीआई)

“2024 को देखते हुए राज्य में ध्रुवीकरण की योजना”

औरंगजेब से जुड़ी सबसे हालिया एफआईआर 25 जून को बुलढाना जिले के मलकापुर सिटी पुलिस स्टेशन में दर्ज की गई. यह एफआईआर कुछ अज्ञात लोगों के खिलाफ दर्ज की गई है. कहा गया है कि ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) के नेता असदुद्दीन औवेसी की एक रैली में कुछ लोगों ने औरंगजेब के समर्थन में नारे लगाए.

मलकापुर सिटी पुलिस स्टेशन के प्रभारी अधिकारी अशोक रत्नपारखी ने द क्विंट को बताया कि...

"पुलिस ने सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे वीडियो और ऑडियो क्लिप का संज्ञान लिया और रैली में मौजूद एक पुलिस अधिकारी की शिकायत के आधार पर केस दर्ज किया गया. क्लिप साइबर अपराध इकाई को भेज दी गई हैं और हम जल्द ही कार्रवाई करेंगे."
ADVERTISEMENTREMOVE AD

एफआईआर दर्ज होने के तुरंत बाद ओवैसी ने टेलीविजन चैनलों पर मुकदमा करने की धमकी दी कि वे गलत खबरें फैला रहे हैं. उन्होंने कहा कि आप झूठ परोस रहे हैं. महाराष्ट्र और पूरे भारत के मुसलमान औरंगजेब के वंशज नहीं हैं.

AIMIM सांसद इम्तियाज जलील ने यह भी दावा किया कि ऐसे कोई नारे नहीं लगाए गए और एफआईआर 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले महाराष्ट्र में सांप्रदायिक तनाव भड़काने की एक कोशिश है.

इम्तियाज जलील ने द क्विंट से कहा कि...

"यह एक हाई सिक्योरिटी रैली थी. यह कैसे मुमकिन है कि रैली के एक दिन बाद क्लिप सामने आया? यह कोई एक अकेला मामला नहीं है. राज्य के मुसलमान नौजवानों पर औरंगजेब को लेकर लगातार मामले दर्ज किए जा रहे हैं."

वैसे औरंगजेब को लेकर महाराष्ट्र में सभी पार्टियों की राय कमोबेश एक ही है. मराठा राजा छत्रपति शिवाजी को पूरे राज्य में लोग पूजते हैं, वहीं औरंगजेब को उनके कट्टर दुश्मन के रूप में देखा जाता है. राज्य में शिवसेना, एनसीपी, बीजेपी या कांग्रेस सहित किसी भी राजनीतिक दल ने कभी भी औरंगजेब को लेकर सार्वजनिक सहानुभूति नहीं दिखाई है.

साल 1995 में बाल ठाकरे-शिवसेना ने ही सबसे पहले औरंगाबाद शहर का नाम बदलकर छत्रपति संभाजीनगर करने की मांग उठाई थी.
ADVERTISEMENTREMOVE AD

27 साल बाद, जून 2022 में उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली महा विकास अघाड़ी (MVA) सरकार ने अपनी आखिरी कैबिनेट बैठक में औरंगाबाद का नाम बदलकर 'छत्रपति संभाजीनगर' करने की घोषणा की. छत्रपति संभाजी, छत्रपति शिवाजी के बड़े बेटे थे.

औरंगजेब को लेकर राज्य के कुछ हिस्सों में लोगों के खिलाफ एफआईआर और हिंसा की घटनाएं बढ़ते सांप्रदायिक विभाजन की तरफ इशारा करती हैं.

इम्तियाज जलील कहते हैं कि...

"यह बीजेपी की रणनीति है कि चुनावों से पहले धार्मिक आधार पर लोगों का ध्रुवीकरण किया जाए. औरंगजेब को मुसलमानों का आदर्श क्यों बताया जा रहा है? मैं यह नहीं कह रहा कि वह अच्छा था या बुरा. वह एक ऐतिहासिक शख्सीयत है, और उसे उसी संदर्भ में पढ़ा जाना चाहिए."

“औरंगजेब को मुसलमान राजा मान लेना आसान, लेकिन गलत विश्लेषण”

लेखक और इतिहासकार मनु पिल्लै बताते हैं कि कैसे औरंगजेब दक्कन में मुगल साम्राज्यवाद का चेहरा बन गया. वह द क्विंट से बातचीत में कहते हैं कि मुगल आम तौर पर दक्कन में एक लोकप्रिय ताकत नहीं थे. वे यहां विजेता के रूप में आए थे और स्थानीय राजाओं ने लगभग एक शताब्दी तक उनका विरोध किया गया था. यह वो दौर था, जब राजनैतिक अस्थिरता के अलावा इस इलाके ने अकाल और आर्थिक तकलीफों का भी सामना किया था. इससे अतीत की यादें और कड़वी हो जाती हैं.''

ADVERTISEMENTREMOVE AD
"हालांकि, दक्कन की सौ साल की लंबी फतह में चार बादशाहों की हिस्सेदारी थी, लेकिन औरंगजेब मुगल साम्राज्यवाद का चेहरा बन गया क्योंकि वह इस इलाके को जीतने के लिए व्यक्तिगत रूप से सबसे ज्यादा लंबे समय तक यहीं रहा."
मनु पिल्लै, लेखक और इतिहासकार

मनु पिल्लै कहते हैं कि औरंगजेब को सिर्फ एक मुसलमान राजा के तौर पर देखना, उसके काम और मोटिवेशन का विश्लेषण करने का सबसे ‘आसान और गलत तरीका’ है.

सही बात तो यह है कि शिवाजी से दो पीढ़ी पहले ही, अहमदनगर सल्तनत के मलिक अंबर की अगुवाई में मुगलों का विरोध शुरू हो गया था.
"याद रखिए कि 1630 और 1690 के बीच मुगलों ने जिन तीन बड़े राज्यों पर जीत हासिल की थी, वो मुस्लिम राज्य थे. इनमें से, अहमदनगर में शाहजहां के दौर में निजामशाही खत्म हुई थी, जबकि बीजापुर की आदिलशाही और गोलकुंडा की कुतुबशाही पर औरंगजेब ने कब्जा कर लिया था."
मनु पिल्लै, लेखक और इतिहासकार

मु पिल्लै आगे कहते हैं कि "ऐसे में हम कह सकते हैं कि यहां एक तथाकथित 'मुस्लिम सम्राट' ने दूसरे मुस्लिम राजाओं को हराया था, जिस तरह मराठों ने औरंगजेब का विरोध किया, उसी तरह इन मुस्लिम सल्तनतों ने भी मुगल आक्रमण का विरोध किया.''

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
अधिक पढ़ें
×
×