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सकल हिंदू समाज: जहर उगलता एंकर-पूर्व BJP MLA,रैलियों का लक्ष्य सांप्रदायिक तनाव?

Sakal Hindu Samaj: हिंदूवादी संगठन नए बैनर तले रैलियां कर रहें और महाराष्ट्र में सांप्रदायिक विभाजन को बढ़ा रहें

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मुंबई के अंधेरी में रहने वाले गौतम रबाड़िया 2013 में हिंदूवादी संगठन बजरंग दल के सदस्य बने थे.

“मेरा संगठन और मैं पिछले दस सालों से लव जिहाद, जमीन जिहाद और जबरन धर्म परिवर्तन के खिलाफ लड़ रहे हैं. बल्कि, सिर्फ हम नहीं, वीएचपी, आरएसएस, दुर्गा वाहिनी और दूसरे कई संगठन इसी मकसद के लिए संघर्ष कर रहे हैं. लेकिन अब हमने तय किया है कि कम से कम महाराष्ट्र में तो आम लोगों के साथ मिलकर इस उद्देश्य के लिए लड़ा जाए.” 36 साल के गौतम ने द क्विंट से कहा.

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गौतम जब “साथ मिलकर” काम करने की बात कर रहे हैं, तो उससे उनका मतलब उस संगठन से है जिसका नाम सकल हिंदू समाज है. यह कई दक्षिणपंथी हिंदू राष्ट्रवादी संगठनों का एक गठबंधन है. यह संगठन इस समय महाराष्ट्र में लगातार सार्वजनिक सभाएं कर रहा है.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, नवंबर 2022 से राज्य के विभिन्न जिलों में ऐसी कम से कम 50 रैलियां आयोजित की जा चुकी हैं.

गौतम इन रैलियों में अक्सर जाते हैं. वह कहते हैं कि उनका लक्ष्य ‘हिंदुओं को बचाना है’ और ये रैलियां तब तक की जाती रहेंगी, जब तक कि राज्य सरकार धर्म की सुरक्षा के लिए कानून बनाने की उनकी मांग मान नहीं जाती.

लेकिन सकल हिंदू समाज क्या है? इन प्रदर्शनों की अगुवाई कौन लोग कर रहे हैं? इन रैलियों में किन मुद्दों पर बातचीत की जाती है? और कैसे कानून की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं?

द क्विंट ने इन सभाओं में पहुंचने वाले लोगों से बातचीत की, मंच पर नेताओं के भाषणों के ब्रॉडकास्ट सुने और उनके खिलाफ दर्ज शिकायतों से संबंधित पेपरवर्क को पढ़ा ताकि यह जाना जा सके कि महाराष्ट्र में सकल हिंदू समाज के उदय और हेट स्पीच का क्या सामाजिक और राजनैतिक असर हो रहा है.

'हिंदू धर्म' के लिए संघर्ष - एक समय में एक रैली

शुक्रवार 24 मार्च को नासिक का हुतात्मा अनंत कान्हेरे मैदान, जिसे पहले गोल्फ क्लब ग्राउंड कहा जाता था, भगवा रंग में रंगा हुआ था.

वहां कम से कम 4,000-5,000 लोग मौजूद थे. मंच पर सुदर्शन न्यूज के संस्थापक और संपादक सुरेश चव्हाणके थे. वह बोल रहे थे, “हमारे खिलाफ 1,825 मामले दर्ज किए गए हैं. नासिक की इस रैली के बाद ये आंकड़े बढ़ेंगे. लेकिन हम डरते नहीं, यह (वीडी) सावरकर की भूमि है.” उनका न्यूज चैनल अल्पसंख्यक समुदायों के खिलाफ सांप्रदायिक रूप से उग्र खबरें प्रसारित करने के लिए कुख्यात है. वह भीड़ को हिंदू 'शेर और शेरनी' कहकर बधाई दे रहे थे.

अपने घंटे भर के भाषण के दौरान चव्हाणके ने 'लव जिहाद', 'जमीन जिहाद', जबरन धर्म परिवर्तन की साजिश का कई बार जिक्र किया और मुसलमान औरतों के सामने ‘10 सूत्री प्रस्ताव’ रखा, यह बताने के लिए कि मुसलमान पुरुषों के मुकाबले, हिंदू पुरुषों से शादी करना क्यों बेहतर है.

चव्हाणके, बीजेपी के निलंबित विधायक टी राजा सिंह और सकल हिंदू समाज नामक संगठन से जुड़े कई दूसरे व्यक्तियों के खिलाफ औरंगाबाद जिले के चार अलग-अलग पुलिस थानों में कई एफआईआर दर्ज किए जाने के कुछ दिनों बाद यह रैली हुई.

क्रांति चौक पुलिस स्टेशन में दर्ज एफआईआर में चव्हाणके और राजा सिंह पर भारतीय दंड संहिता के सेक्शन 153 (दंगा भड़काने के इरादे से उकसाना), 153ए (धर्म, जाति, जन्म स्थान, निवास स्थान और भाषा जैसे आधार पर विभिन्न समूहों के बीच दुश्मनी बढ़ाना), 34 (एक इरादे से कई लोगों की तरफ से किए गए आपराधिक कार्य), और 505 (सार्वजनिक रूप से भय या खतरा पैदा करने के इरादे से बयान, रिपोर्ट या अफवाहें फैलाना) के तहत आरोप लगाए गए थे.

हालांकि, चव्हाणके और उनका साथी समूह इन शिकायतों से बेफिक्र रहे और एक हफ्ते के भीतर नासिक में इसी तरह की एक रैली आयोजित की.

यह ध्यान देने की बात है कि औरंगाबाद में दर्ज एफआईआर में कहा गया है कि जब भाग्यतुषार जोशी नाम का एक व्यक्ति, जिसने खुद सकल हिंदू समाज नामक संगठन की समन्वय समिति का सदस्य होने का दावा किया, एक सार्वजनिक रैली की इजाजत मांगने आया, तो औरंगाबाद पुलिस ने जिले में कानून व्यवस्था की स्थिति का हवाला देते हुए इजाजत देने से इनकार कर दिया.

एफआईआर में कहा गया है, "संगठन ने रैली की और इसमें लगभग 15,000-20,000 लोग मौजूद थे."

इसके बाद कथित तौर पर इस रैली से लौट रहे संदिग्ध लोगों ने दंगे किए और सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाया.

ऐसा कैसे हुआ? रैली में चव्हाणके और राजा सिंह ने अल्पसंख्यकों को निशाना बनाते हुए सांप्रदायिक किस्म के भाषण दिए.

चव्हाणके ने इतिहासकारों को चुनौती देते हुए दावा किया, "औरंगजेब का शव उसकी कब्र में नहीं है, मराठों ने उसके साथ वही किया, जो अमेरिका ने ओसामा बिन लादेन के साथ किया."

दूसरी तरफ राजा सिंह ने अपने भाषण में मुस्लिम विरोधी शब्दों का इस्तेमाल किया और कहा, "मैं आप सभी को और उन सभी देशद्रोहियों को भी यही कहना चाहता हूं कि लव जिहाद की यह साजिश अब बंद होनी चाहिए. वरना हम हिंदू संख्या में 100 करोड़ हैं, अगर हम अपना जिहाद करेंगे, तो आपको शादी करने के लिए लड़कियां भी नहीं मिलेंगी.

राजा सिंह हैदराबाद की गोशामहल विधानसभा क्षेत्र से विधायक थे, लेकिन अगस्त 2022 में उन्हें बीजेपी से निलंबित कर दिया गया था, क्योंकि उन पर पैगंबर मुहम्मद के खिलाफ कथित आपत्तिजनक टिप्पणी को लेकर एक मामला दर्ज किया गया था.

औरंगाबाद की रैली में बीजेपी और शिवसेना (एकनाथ शिंदे गुट) के कई पदाधिकारियों ने भाग लिया. इनमें शिवसेना विधायक और महाराष्ट्र के कैबिनेट मंत्री संदीपन भूमारे और अतुल सावे, शिवसेना विधायक प्रदीप जायसवाल और बीजेपी विधायक शिवेंद्र राजे भोसले शामिल थे.

इस मामले में चव्हाणके और दूसरों के खिलाफ कार्रवाई पर अपडेट लेने के लिए द क्विंट ने औरंगाबाद पुलिस से संपर्क किया है. जब उनसे कोई जवाब मिलेगा तो इस स्टोरी को हम अपडेट कर देंगे.

औरंगाबाद और नासिक की रैलियां सकल हिंदू समाज के बैनर तले हुई सभाओं के दो उदाहरण हैं. बाकी, अहमदनगर, नांदेड़, नासिक, धुले, पिंपरी चिंचवाड़, पाटन और नवी मुंबई में भी ऐसी ही रैलियां की गईं.

सकल हिंदू समाज है क्या?

आप ‘सकल हिंदू समाज’ पर गूगल सर्च करें तो आपको कोई खास रिजल्ट नहीं मिलेंगे, सिर्फ कुछ महीनों के दौरान किए गए प्रदर्शन और रैलियों की छुटपुट खबरें ही मिलेंगी.

दिलचस्प यह है कि सोशल मीडिया में भी इस संगठन का कोई जिक्र नहीं है. हां, हैशटैग लगाकर देखने पर जून 2022 में उस प्रदर्शन के बारे में पता चलता है जो इस समूह ने राजस्थान के अजमेर में किया था. यह प्रदर्शन अजमेर में कथित 'हिंदू संस्कृति और देवताओं के अपमान' के विरोध में किया गया था.

गौतम रबाड़िया समाज की रैली में नियमित रूप से जाते हैं. उनका दावा है कि यह ‘एक जैसी सोच’ वाले संगठनों का अंब्रैला संगठन है. इसमें विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी), बजरंग दल, हिंदू जनजागृति समिति, विश्व श्रीराम सेना, श्री राम प्रतिष्ठान हिंदुस्तान, दुर्गा वाहिनी और सनातन संस्था शामिल हैं.

नाम न छापने की शर्त पर नासिक में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के एक सदस्य ने कहा, सकल हिंदू समाज का स्वरूप निश्चित नहीं है.

वह कहता है, "सकल हिंदू समाज महाराष्ट्र में एक आम हिंदू का प्रतिनिधित्व करता है. संगठन को संचालित करने वाला कोई भी नेता या संस्था नहीं है. इसके अपने फायदे हैं. इससे इस समूह का कामकाज फ्लेक्सिबल हो जाता है, और उसके साथ-साथ, पुलिस और कानून प्रवर्तन करने वाले एजेंसियों के लिए यह पता लगाना मुश्किल होता है कि यह काम किस खास संगठन का है.

आरएसएस के इस नेता के अनुसार, किसी एक दक्षिणपंथी संगठन की बजाय सकल हिंदू समाज के बैनर तले रैली करने से यह भी तय होता है कि ज्यादा से ज्यादा लोग और राजनेता भी इसमें बराबरी से शरीक होंगे.

वैसे यह पता नहीं कि 'सकल हिंदू समाज’ जैसे शब्दों की उत्पत्ति कहां से हुई, लेकिन विनायक दामोदर सावरकर की एक रचना में इन शब्दों का इस्तेमाल जरूर हुआ है.

1922 में जब सावरकर को रत्नागिरी जेल में कैद किया गया था, तो उन्होंने 'तुम्ही अम्ही सकल हिंदू, बंधु बंधु' नाम की कविता लिखी थी. इस कविता में कहा गया है कि सभी हिंदू रक्त संबंधों से बंधे हैं और उन्हें जाति और क्षेत्र के विभाजन से परे एकजुट होना चाहिए.

गौतम और आरएसएस नेता, जिससे द क्विंट ने बात की थी, का कहना है कि संगठन का यही लक्ष्य है. गौतम कहते हैं, “सकल हिंदू समाज वह मंच है जिस पर सभी हिंदू आकर मिल गए हैं.”

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सुरेश चव्हाणके और टी राजा सिंह अकेले संदिग्ध नहीं हैं

चव्हाणके और राजा सिंह के अलावा, हिंदुवादी नेता कालीचरण महाराज उर्फ अभिजीत धनंजय साराग समूह की कई रैलियों में सबसे आगे होते हैं.

मिसाल के तौर पर, 9 फरवरी को सकल हिंदू समाज की बारामती रैली, जिसे हिंदू जनगर्जना मोर्चा कहा गया- कालीचरण महाराज ने नफरत भरे भाषण दिए.

इस कार्यक्रम में उन्होंने कहा कि मुसलमान सभी को इस्लाम में परिवर्तित करना चाहते हैं क्योंकि जो मुसलमान नहीं हैं, वे काफिर हैं और कुरान में लिखा है कि एक काफिर को मार दिया जाना चाहिए. उन्होंने कहा, "मैं काफिर हूं, जिसका मतलब है कि मैं (उनके द्वारा) मारे जाने लायक हूं." उन्होंने कहा, "काफिरों की बीवियां चोरी की संपत्ति हैं और 50 पुरुष एक महिला का बलात्कार करें तो कोई बड़ी बात नहीं है."

कालीचरण सातवीं पास हैं. 2022 में महात्मा गांधी के खिलाफ विवादास्पद टिप्पणी करने पर छत्तीसगढ़ पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार किया था. वह 1 लाख के पर्सनल बॉन्ड और 50,000 की दो श्योरिटी देने पर उन्हें बेल मिली थी.

यूट्यूबर और हार्डलाइन हिंदुवादी नेता काजल सिंघला को सभी काजल हिंदुस्तानी के नाम से जानते हैं. वह भी सकल हिंदू समाज की सार्वजनिक सभाओं में अक्सर भाषण दिया करती हैं.

मुंबई के बाहरी इलाके मीरा भायंदर में 13 मार्च को आयोजित एक रैली में काजल ने 'लव जिहाद' और 'जमीन जिहाद' के बारे में बेबुनियाद दावे करते हुए मुसलमानों का आर्थिक बहिष्कार करने की अपील की.

इस खास रैली में बीजेपी नेता नीलेश राणे, बीजेपी की मीरा भायंदर इकाई के अध्यक्ष रवि व्यास और पार्टी विधायक गीता जैन ने भी हिस्सा लिया.

कानून में क्या उपाय है? 

सुप्रीम कोर्ट ने 3 फरवरी को कहा था कि अदालत के कई आदेशों के बावजूद हेट स्पीच के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की जा रही है.

यह फैसला एक वकील की तरफ दायर मामले पर दिया गया था. वकील ने सुप्रीम कोर्ट से अनुरोध किया था कि वह मुंबई में 5 फरवरी को सकल हिंदू समाज की एक रैली के खिलाफ कार्रवाई करे.

मामले की सुनवाई करते हुए जस्टिस के.एम. जोसेफ, अनिरुद्ध बोस और हृषिकेश रॉय ने कहा था, "हमने पहले ही एक आदेश पारित किया है जो काफी स्पष्ट है. जरा कल्पना कीजिए कि पूरे देश में रैलियां हो रही हैं. हर बार सुप्रीम कोर्ट के सामने एक अर्जी लगाई जाएगी. यह कितना व्यावहारिक है? हमने कई आदेश दिए लेकिन फिर भी कोई कार्रवाई नहीं कर रहा है. सुप्रीम कोर्ट को मामले दर मामले के आधार पर आदेश देने के लिए नहीं कहा जाना चाहिए.”

आवेदक ने दावा किया कि 29 जनवरी को सकल हिंदू समाज की एक रैली में बीजेपी के पूर्व विधायक टी राजा सिंह ने "मुसलमानों को मारने के लिए खुला निमंत्रण" दिया था. 5 फरवरी को यही लोग एक और रैली करने वाले हैं जिसमें 15,000 लोगों की मौजूदगी की उम्मीद है.

आवेदक ने कहा, "पिछली सभी रैलियों की फितरत से साफ लगता है कि उस रैली में भी वैसे ही नफरत भरे भाषण दिए जाएंगे."

सुप्रीम कोर्ट के सीनियर एडवोकेट संजय हेगड़े ने द क्विंट से कहा कि हेट स्पीच पर सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देश साफ हैं, लेकिन यह भी सच है कि सिर्फ आदेश देने का मतलब यह नहीं कि कानून प्रवर्तन करने वाली एजेंसियां और सरकार उस आदेश को मान लेगी.

"ऐसी स्थिति में कोई भी सुप्रीम कोर्ट के दरवाजे तक जाएगा, ताकि सरकार को कार्रवाई के लिए मजबूर किया जा सके. लेकिन तब अदालत की अवमानना की कार्यवाही में लंबा समय लग सकता है. कोई आदेश देने के बाद न्यायपालिका खुद उसे लागू नहीं कर सकती. जिम्मेदार सरकारी अधिकारियों ने अदालत के आदेश की अवमानना की है, इस मामले को लेकर किसी को तो अदालत जाना ही होगा.”
संजय हेगड़े
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इन रैलियों के पीछे की राजनीति

जून 2022 में महाराष्ट्र में जबरदस्त राजनैतिक उठापटक मची थी. शिवसेना की भीतरी दरार के चलते पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे की अगुवाई वाली महा विकास अघाड़ी गठबंधन की सरकार गिर गई थी. उसके बाद शिवसेना के एकनाथ शिंदे गुट के साथ साझेदारी में राज्य में बीजेपी ने सत्ता में वापसी की.

इन रैलियों में नफरत भरे भाषणों पर कांग्रेस, एनसीपी और शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे गुट) सहित दूसरे विपक्षी दलों ने चुप्पी साधी हुई है. लेकिन इन रैलियों का असली राजनैतिक फायदा बीजेपी-शिवसेना (एकनाथ शिंदे गुट) सरकार को ही मिल रहा है. महाराष्ट्र के एक वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक टिप्पणीकार ने नाम न छापने की शर्त पर यह तर्क दिया.

24 मार्च को राज्य विधानसभा में बजट सत्र के दौरान उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने कहा कि महाराष्ट्र सरकार शादी के जरिए जबरन धर्म परिवर्तन के खिलाफ एक कानून लाने पर विचार कर रही है. मौजूदा कानूनों की समीक्षा करके, राज्य सरकार यह फैसला लेगी.

फडणवीस ने नवंबर से महाराष्ट्र में होने वाली सार्वजनिक रैलियों का भी जिक्र किया जिन्हें ‘लव जिहाद’ के कथित रूप से बढ़ते मामलों के खिलाफ कानून लाने की मांग के साथ दक्षिणपंथी संगठन आयोजित कर रहे हैं. उन्होंने कहा, 'इस तरह की करीब 40 रैलियां हो चुकी हैं. उनमें से प्रत्येक ने 40,000-50,000 से ज्यादा लोग पहुंचे हैं जो यह मांग कर रहे हैं. यह समाज के भीतर की मांग है और इसे स्वीकार करना होगा.”

पत्रकार और राजनीतिक टिप्पणीकार कहते हैं, "ऐसे आयोजन बिना राजनीतिक संरक्षण के नहीं होते हैं. हम देख रहे हैं कि जब से बीजेपी-शिवसेना (एकनाथ शिंदे) सरकार राज्य में सत्ता में लौटी है, तब से बड़ी संख्या में ये रैलियां हो रही हैं. लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि इससे पहले कांग्रेस और एनसीपी ने भी संभाजी भिडे जैसे हिंदुवादी कट्टरपंथियों का पोषण किया है."

सांगली के एक हिंदुवादी एक्टिविस्ट संभाजी भिडे आरएसएस के सदस्य थे. फिर उन्होंने अपना एक संगठन बनाया, शिव प्रतिष्ठान हिंदुस्तान और आरएसएस को छोड़ दिया. 2018 में भीमा कोरेगांव में दलितों के खिलाफ हिंसा भड़काने के खिलाफ दर्ज की गई एफआईआर में उनका भी नाम था.

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