महिंद्रा एंड महिंद्रा और पीरामल ग्रुप ने सहारा का हिल स्टेशन रिजॉर्ट खरीदने में दिलचस्पी दिखाई है. सुप्रीम कोर्ट ने एंबी वैली को हिस्सों में बेचने की मंजूरी लिक्विडेटर को दे दी है. कोर्ट के मुताबिक ऐसी जरूरत लगे तो उसे टुकड़ों में बेचा जा सकता है. लिक्विडेटर ने अदालत को बताया है महिंद्रा एंड महिंद्रा और पीरामल ग्रुप ने इसे खरीदने में दिलचस्पी दिखाई है.
आधिकारिक लिक्विडेटर के वकील डेरियस खंबाटा ने सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की बेंच को बताया कि दोनों पार्टियां ड्यू डिलिजेंस कर रही हैं. उन्होंने बताया कि पूरी प्रॉपर्टी को एक साथ बेचना बहुत मुश्किल होगा.
सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने सहारा ग्रुप को पहले चेतावनी दी थी कि अगर उन्होंने नीलामी प्रक्रिया में अड़ंगा लगाया तो उसे अदालत की अवमानना माना जाएगा और सुब्रत सहारा को दोबारा जेल भेजा जा सकता है.
एंबे वैली की नीलामी हो
सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने पिछले सुनवाई में आधिकारिक लिक्विडेटर से कहा था कि वो इसकी नीलामी सुनिश्चित करें. बेंच ने कहा
हम चाहते हैं कि प्रॉपर्टी नीलाम हो.’ बेंच ने लिक्विडेटर से कहा इस काम के लिए बॉम्बे हाईकोर्ट के जजों से निर्देश लें.
सहारा ने मांगा था समय
निवेशकों की रकम लौटाने के लिए सहारा ग्रुप को सुप्रीम कोर्ट में 24 हजार करोड़ रुपए जमा कराने हैं. इसी रकम के हिस्से के तौर पर 9000 करोड़ रुपए जमा कराने हैं जिसके लिए सहारा ने 18 माह का समय मांगा था. लेकिन अभी तक वो पूरी रकम नहीं चुका पाया है.
क्यों नहीं बिक रही है एंबी वैली
सेबी के मुताबिक एंबे वैली मैनेजमेंट ने पुणे पुलिस को चिट्टी लिखी है जिसकी वजह से खरीदार नीलामी में हिस्सा लेने से पीछे हट रहे हैं. कोर्ट में सहारा ग्रुप की पैरवी करते हुए वरिष्ठ वकील वकील मुकुल रोहतगी ने दलील दी कि एंबे वैली के लिए कोई खरीदार सामने नहीं आया है और प्रॉपर्टी पुलिस को हैंडओवर नहीं की गई है, जिसकी वजह से नीलामी नहीं हो पाई.
रोहतगी के मुताबिक लोकल पुलिस को एक पत्र लिखकर वहां पुलिस तैनाती के लिए लिखा गया है, क्योंकि कंपनी निजी सुरक्षा नहीं दे पा रही है. लिक्विडेटर ने इस प्रोजेक्ट की कीमत 37 हजार करोड़ रुपे तय की है जबकि कंपनी का दावा है कि इसका बाजार भाव दोगुना है.
क्या है सेबी-सहारा समूह विवाद?
सहारा ग्रुप की 2 कंपनियों-सहारा इंडिया रियल एस्टेट कॉरपोरेशन लिमिटेड (SIRECL)और सहारा हाउसिंग इन्वेस्टमेंट कॉरपोरेशन लिमिटेड (SHICL) ने रियल एस्टेट में निवेश के नाम पर 3 करोड़ से ज्यादा निवेशकों से 17,400 करोड़ रुपए जुटाए थे.
सेबी ने अगस्त 2010 में दोनों कंपनियों की जांच के आदेश दिए और मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया. सुप्रीम कोर्ट ने सहारा समूह की दोनों कंपनियों को आदेश दिया कि निवेशकों को 36 हजार करोड़ रुपए लौटाएं लेकिन जब कोर्ट के बार बार आदेश के बाद जब सहारा ने अमल नहीं किया तो सुप्रीम कोर्ट ने संपत्ति बेचने के आदेश दिए.
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