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मंगोलपुरी: रिंकू शर्मा मर्डर केस में विरोधाभास, डर फैला रहे संगठन

पुलिस ने पहले कहा हत्या में सांप्रदायिक एंगल नहीं, फिर बोली-हर एंगल से हो रही जांच  

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भारत
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“हम पिछले 20 साल से मंगोलपुरी की इस गली में रह रहे हैं. सालों तक हमने ईद-दिवाली साथ मिलकर मनाई है, एक-दूसरे के सुख-दुख का हिस्सा रहे लेकिन अब..” ये कहना है मंगोलपुरी के ब्लॉक में रहने वाली आसिफा का.

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वो आगे कहती हैं“ शुक्रवार 12 फरवरी से गली में कई संगठन जुट रहे हैं, कई सारे सोशल मीडिया पर कई पोस्ट बनाए जा रहे हैं, इतने नफरत भरे भाषण और नारे लगाए जा रहे हैं कि मुझे नहीं पता कि अब हम भविष्य में कभी साथ मिलकर अपने त्योहार या अपने अच्छे पलों को एक-दूसरे के साथ मना सकेंगे या नहीं, जैसा कि हम करते आए हैं.”

12 फरवरी को 25 साल के रिंकू शर्मा की हिंदू बहुल मंगोलपुरी इलाके में कुछ मुस्लिम पड़ोसियों ने हत्या कर दी थी.

हत्या के थोड़ी देर बाद ही रिंकू शर्मा के भाई मन्नू, बीजेपी और आम आदमी पार्टी सहित राजनीतिक दलों और कई दक्षिणपंथी संगठनों ने हत्या के “सांप्रदायिक” होने का दावा किया और कहा कि राम मंदिर चंदा अभियान के कारण रिंकू की हत्या की गई. लेकिन पुलिस ने दावा किया है कि रिंकू की हत्या व्यावसायिक दुश्मनी के कारण हुई जो एक जन्मदिन पार्टी में शुरू हुई और इसके पीछे कोई सांप्रदायिक एंगल नहीं था. पांच आरोपी- जाहिद, मेहताब, नसरुद्दीन, इस्लाम और ताजुद्दीन- पहले ही गिरफ्तार किए जा चुके हैं. ये सभी एक ही परिवार के हैं.

पुलिस ने पहले कहा हत्या में सांप्रदायिक एंगल नहीं, फिर बोली-हर एंगल से हो रही जांच  
मंगोलपुरी में एक आरोपी के घर के बाहर बैठा पुलिसकर्मी
(फोटो: अस्मिता नंदी/क्विंट)
रिंकू की मौत के बाद पहले मंगलवार को गली में हनुमान चालीसा का पाठ कराया गया. मन्नू ने कहा कि आम तौर पर ये पाठ करीब के एक पार्क में होता था लेकिन इस बार रिंकू की याद में उसके घर के बाहर किया गया. इस बीचपुलिस उस गली में तैनात रही जो रिंकू और एक आरोपी जाहिद के घर की ओर जाती है.  
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रिंकू शर्मा केस में कई विरोधाभास

इससे पहले कि हम ये समझें कि कैसे एक हिंदू व्यक्ति की निर्मम हत्या को एक बार फिर दिल्ली में हिंसा और सांप्रदायिक तनाव को बढ़ावा देने के लिए इस्तेमाल किया गया, आइए पहले इस मामले के कई विरोधाभासों और संदर्भों को समझ लेते हैं:

  • भाई मन्नू शर्मा के मुताबिक रिंकू बीजेपी युवा मोर्चा का एक सदस्य था और पिछले दो सालों से बजरंग दल में भी काफी सक्रिय था. मन्नू का कहना है कि “मेरा बड़ा भाई इलाके में हिंदुत्व से जुड़ी गतिविधियों में हमेशा सबसे आगे रहता था. इस कारण से मुस्लिम पड़ोसी चिढ़े रहते थे.”
  • रिंकू के भाई और वीएचपी का मानना है कि हत्या का कारण एक हिंदू धार्मिक नारा-“जय श्री राम” है. लेकिन क्यों? रिंकू और गली के कई दूसरे युवाओं को बीजेपी के युवा संगठन में शामिल कराने का दावा करने वाले नीरज ठाकुर ने कहा “दुश्मनी 5 अगस्त 2020 से चली आ रही है जब पीएम मोदी ने अयोध्या में राम मंदिर का भूमि पूजन किया था.”
  • नीरज ठाकुर और मन्नू शर्मा के मुताबिक 5 अगस्त 2020 को रिंकू और उसके दोस्तों ने राम मंदिर के पक्ष में एक रैली निकाली थी जिसमें हर कोई “जय श्री राम” के नारे लगा रहा था. इलाके में बहुत ही कम मुस्लिमों के घर हैं लेकिन केवल ताजुद्दीन-आरोपियों में एक-को इससे परेशानी थी. दोनों का झगड़ा भी हुआ था लेकिन बाद में इसे सुलझा लिया गया था. मन्नू ने आगे कहा “ उन्होंने मेरे भाई के खिलाफ गुस्सा दबा कर रखा हुआ था, इसलिए जब शुक्रवार की रात उन्होंने मेरे भाई को अकेला पाया तो उसपर हमला कर दिया”
  • मन्नू ने दावा किया कि संजय गांधी अस्पताल के रास्ते में एक बार फिर हाथापाई हुई. अपनी शिकायत में मन्नू ने मेहताब पर अपने भाई पर चाकू से हमले का आरोप लगाया है.
  • लेकिन, दिल्ली पुलिस के मुताबिक शुक्रवार की घटना की शुरुआत एक स्थानीय रेस्तरां मसाला दरबार में पार्टी के दौरान हुई. पहले दिए गए एक बयान में दिल्ली पुलिस ने कहा था कि लड़ाई एक व्यायसायिक दुश्मनी को लेकर शुरू हुई और बाद में मामला बढ़ गया, द प्रिंट की इस रिपोर्ट के मुताबिक रिंकू की मां ने भी यही बात कही थी. हालांकि, दिल्ली पुलिस के पीआरओ चिन्मय बिस्वाल ने मंगलवार 16 फरवरी को कहा था कि “पुलिस अब भी संभी एंगल से मामले की जांच कर रही है.”
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पुलिस ने पहले कहा हत्या में सांप्रदायिक एंगल नहीं, फिर बोली-हर एंगल से हो रही जांच  
रिंकू शर्मा और उसके दोस्त मसाला दरबार रेस्टोरेंट गए थे, जहां कथित रूप से उनका आरोपी के साथ झगड़ा हुआ था
(फोटो: अस्मिता नंदी/क्विंट)
  • घटना के दिन का एक वीडियो सामने आया है जिसमें रिंकू एक नुकीली चीज लेकर अपने घर से बाहर निकलता हुआ देखा जा सकता है जबकि कई लोग हाथों में डंडे पकड़े एक-दूसरे से लड़ रहे हैं. ये अब तक साफ नहीं है कि क्या इसी नुकीले हथियार का इस्तेमाल हत्या में किया गया था. रिंकू की मां ने द प्रिंट को बताया था कि “ 5-6 महीने पहले पैसे को लेकर दोनों परिवारों के पुरुषों के बीच झगड़ा हुआ था. मुझे इसके बारे में ज्यादा कुछ नहीं पता. यहां और भी कई मुस्लिम रहते हैं, हमें सिर्फ आरोपी से परेशानी है, दूसरों से नहीं.”
  • क्विंट ने आरोपियों के परिवार से संपर्क करने की कोशिश की लेकिन उन तक पहुंच नहीं सकी. द प्रिंट की रिपोर्ट के मुताबिक नसरुद्दीन की पत्नी शमा ने कहा था कि एक दोस्त की जन्मदिन की पार्टी में रिंकू और उसके दोस्तों ने उनके भतीजे जाहिद को कथित तौर पर जबरदस्ती शराब पिलाने की कोशिश की जिसके बाद झगड़ा शुरू हुआ. खबरों के मुताबिक उनका परिवार बिहार के समस्तीपुर चला गया है.
  • पार्टी में मौजूद रिंकू के दोस्त सूरज ने कहा कि एक और दोस्त सचिन और जाहिद के बीच झगड़ा हुआ था लेकिन क्यों हुआ था उसे इसके बारे में नहीं पता. सूरज ने कहा “ जब सचिन ने जाहिद को सर पर चांटा मारा तो मामला बढ़ गया और हम सबने मिलकर सचिन को रोका था. रिंकू का इससे कोई लेना-देना नहीं था. उन लोगों ने पहले का गुस्सा निकाला और उसकी हत्या कर दी.” वो आगे कहता है “ अगर रिंकू रैली के दौरान उनके घर के बाहर ‘जय श्री राम’ के नारे लगाता था तो वो गुस्सा हो जाते थे लेकिन एक धार्मिक नारा लगाने में गलत क्या है.”
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हिंसा का आह्वान, सोशल मीडिया कार्टून: कैसे ऑनलाइन कैंपेन जमीन पर डर में बदल जाता है

विरोधाभासों और घटना के विरोधी विवरणों से भरपूर इस मामले में, दिल्ली पुलिस अब भी रिंकू की हत्या के पीछे की मंशा की जांच कर रही है लेकिन ये नेताओं और दक्षिणपंथी संगठनों को सांप्रदायिक भाषणों, ऑनलाइन हेट कैंपेन और हिंसा के आह्वान के साथ जमीन पर स्थिति को और ज्यादा ध्रुवीकरण करने से रोक नहीं सका है.

रिंकू की मौत के अगले हफ्ते रैलियां निकाली गईं जिसमें “रिंकू के हत्यारों को, गोली मारो सालों को” के नारे लगाए गए. तस्वीर बनाई गई जिसमें भगवान राम को रिंकू शर्मा का शव हाथों में लिए दिखाया गया और बीजेपी नेता कपिल मिश्रा पुलिस से हत्या को आतंकवादी घटना की तरह मान कर कार्रवाई की अपील की.

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2018 में अंकित सक्सेना और अक्टूबर 2020 में निकिता तोमर की हत्या के बाद भी हिंदुत्व संगठनों ने इसी तरह सांप्रदायिक भाषण दिए थे और हिंसा का आह्वान किया था- दोनों मामलों में पीड़ित एक हिंदू और आरोपी मुस्लिम थे.

अंकित सक्सेना की मौत के बाद उसके दोस्तों और परिवार ने शांति की अपील की थी और मामले को सांप्रदायिक रंग नहीं देने की विनती की थी जबकि निकिता की मौत के बाद बल्लभगढ़ में हिंसा शुरू हो गई थी जहां दक्षिणपंथी दलों ने निकिता की पीछा कर हत्या के खिलाफ प्रदर्शन किया था जिसके बारे में उनका कहना था कि ये मुसलमानों की एक बड़ी ‘लव जिहाद’ साजिश का हिस्सा है.

अब कोई ये तर्क दे सकता है कि सोशल मीडिया जस्टिस कैंपेन का उपयोग अक्सर जघन्य अपराध के बाद नाराजगी को बढ़ाने के लिए किया जाता है लेकिन एक समुदाय के खिलाफ हिंसा का आह्वान जो जमीन पर सांप्रदायिक हिंसा का डर पैदा करता है, वो कैसे जायज ठहराया जा सकता है?  

हाथरस की घटना के बाद उत्तर प्रदेश पुलिस ने केरल के पत्रकार सिद्दीकी कप्पन और तीन दूसरे लोगों को गिरफ्तार किया था और उन पर 19 साल की दलित लड़की की बलात्कार और मौत के बाद जाति और सांप्रदायिक तनाव भड़काने की साजिश के आरोप में राजद्रोह और यूएपीए सहित गंभीर अपराध के आरोप लगाए. हालांकि बल्लभगढ़ हिंसा मामले में गिरफ्तार लोगों को, प्रदर्शन में शामिल करनी सेना के एक सदस्य के मुताबिक, 15 दिन के अंदर ही जमानत दे दी गई.

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ऐसा लगा कि हिंदू धर्म अब भी जिंदा है: रिंकू के घर के बाहर तैनात पुलिसकर्मी

मंगोलपुरी में तैनात पुलिसकर्मियों को चाय देती एक युवा मुस्लिम लड़की ने कहा कि घटना के बाद से वो लोग रात में अपने घरों में नहीं रह रहे हैं जबकि घर के बाहर मौजूद एक पुलिसकर्मी ने इस रिपोर्टर को बताया “हालांकि मैं मानता हूं कि मामला सांप्रदायिक कारणों से नहीं उछाला गया, ये देख कर अच्छा लगा कि कई सारे हिंदू संगठन एक उद्देश्य के लिए साथ आए. ऐसा महसूस हुआ कि हमारा धर्म अब भी जीवित है.

पहले आसिफा ने भी कहा था “ धार्मिक नारा लगाने वाले किसी भी व्यक्ति से हमें कोई परेशानी नहीं है. भगवान एक ही है, हम उन्हें अलग-अलग नाम से बुलाते हैं, इसमें गलत क्या है?”

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