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NSA के तहत गिरफ्तार मणिपुर के पत्रकार की रिहाई के आदेश, HC में दी थी याचिका

बीजेपी नेता की कोविड-19 से मौत के बाद FB पोस्ट में लिखा था- "गाय का गोबर और गोमूत्र काम नहीं किया"

Published
भारत
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मणिपुर हाई कोर्ट ने मणिपुर के पत्रकार किशोरचंद्र वांगखेम (Kishorchandra Wangkhem) को रिहा करने का आदेश देते हुए कहा कि उनको जेल में रखने से संविधान के अनुच्छेद 21 का उतना ही उल्लंघन होगा जितना कि एरेन्ड्रो लीचोम्बन (Erendro Leichombam) के मामले में होता.

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किशोरचंद्र को उनके फेसबुक पोस्ट के लिए हिरासत में लिया गया था जिसमें उन्होंने बीजेपी नेता के कोविड-19 से मौत के बाद टिप्पणी की थी कि "गाय का गोबर और गोमूत्र काम नहीं किया". यह बयान मणिपुर बीजेपी के अध्यक्ष, प्रोफेसर टिकेंद्र सिंह की मौत के संदर्भ में था. इस पोस्ट से नाराज कुछ बीजेपी कार्यकर्ताओं ने शिकायत दर्ज कराई थी.

जमानत मिलने के बाद पुलिस ने लगाया था NSA

इस मामले में उन्हें चीफ ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट, इम्फाल ने बेल दे दी थी, लेकिन फिर उनके खिलाफ पुलिस ने राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (NSA) के तहत मामला दर्ज कर फिर गिरफ्तार कर लिया.

किशोरचंद्र की पत्नी द्वारा दायर लेटर-पिटिशन में मुख्य न्यायाधीश पी.वी संजय कुमार और जस्टिस नोबिन सिंह ने आदेश दिया कि एक्टिविस्ट-पत्रकार किशोरचंद्र को 23 जुलाई शाम 5:00 बजे तक रिहा कर दिया जाए.

बता दें कि 19 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट ने एनएसए के तहत गिरफ्तार किए गए मणिपुर से पॉलिटिकल एक्टिविस्ट एरेन्ड्रो को रिहा करने का आदेश दिया था. उन पर भी वही आरोप थे, जो पत्रकार पर लगाए गए थे. एरेंड्रो ने भी गाय के गोबर से कोरोना के इलाज को लेकर पोस्ट किया था.

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सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच के इस आदेश के बाद मणिपुर में पत्रकार किशोरचंद्र की पत्नी, रंजीता ने हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश और अन्य जजों के सामने लेटर-पिटीशन दायर करते हुए कहा कि एरेन्ड्रो और किशोरचंद्र दोनों को राष्ट्रीय सुरक्षा कानून, 1980 के तहत एक ही आधार पर गिरफ्तार किया गया था. सुप्रीम कोर्ट ने एरेन्ड्रो को रिहा करने का आदेश दिया है जबकि किशोरचंद्र अभी भी जेल में हैं.

इस संबंध में मणिपुर हाईकोर्ट ने कहा कि किशोरचंद्र और एरेन्ड्रो के मामले में कोई अंतर नहीं है. दोनों ने एक ही फेसबुक पोस्ट को शेयर किया था, जिसमें कोरोना वायरस के इलाज के लिए गोबर और गोमूत्र पर आलोचनात्मक टिप्पणी थी. साथ ही मणिपुर हाईकोर्ट ने अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का जिक्र करते हुए कहा कि,

"जैसा कि दोनों केस में पूर्णतः समानता है, हमारी राय है कि याचिकाकर्ता के पति को जेल में रखना संविधान के अनुच्छेद 21 का उतना ही बड़ा उल्लंघन होगा जितना कि एरेन्ड्रो के मामले में होता".
मणिपुर हाईकोर्ट

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