Manipur Violence: पूर्ववर्ती मिजो नेशनल फ्रंट के पूर्व कैडरों- जिसे अब PAMRA (पीस एकॉर्ड एमएनएफ रिटर्नीज एसोसिएशन) के नाम से जाना जाता है - ने शुक्रवार, 21 जुलाई को एक बयान जारी कर मिजोरम में मैतेई लोगों को 'अपनी सुरक्षा का ध्यान रखने' के लिए कहा. इसके तुरंत बाद समुदाय के लोग राज्य से बाहर जाने लगे हैं.
क्विंट हिंदी ने असम के कछार जिले में एक शिविर का दौरा किया, जहां मिजोरम से आए कम से कम 40 मैतेई लोगों ने शरण ली है.
मैतेई लोगों ने उन घटनाओं के बारे में विस्तार से बताया जिसके कारण पड़ोसी राज्य मणिपुर में जातीय हिंसा शुरू होने के 2.5 महीने बाद उन्हें मिजोरम में अपने घरों से भागना पड़ा.
मैतेई समुदाय के एक व्यक्ति ने नाम न छापने की शर्त पर क्विंट हिंदी को बताया, "इस बार किसी एक संगठन ने नहीं, बल्कि उनके एक ग्रुप ने हमें धमकियां दी हैं. मिजो जिरलाई पावल, मिजो स्टूडेंट्स यूनियन, PAMRA और यंग मिजो एसोसिएशन जैसे मिजोरम संगठन 25 जुलाई को एक रैली आयोजित करने जा रहे हैं."
उन्होंने आगे कहा, "हमें अपनी सुरक्षा के लिए उस रैली के दौरान अपने कमरे से बाहर नहीं निकलने के लिए कहा जा रहा है. हम सभी जानते हैं कि 3 मई को मणिपुर के ऑल ट्राइबल स्टूडेंट्स यूनियन द्वारा बुलाई गई तथाकथित शांति रैली का क्या हुआ, हमें डर है कि यह रैली भी वैसा ही मोड़ ले सकती है."
3 मई को 'आदिवासी एकजुटता मार्च' में मणिपुर के पहाड़ी जिलों में हजारों लोग - ज्यादातर कुकी - सड़कों पर उतरे, क्योंकि उन्होंने मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति (ST) श्रेणी में शामिल करने की मांग का विरोध किया. जहां कई पहाड़ी जिलों में विरोध रैली शांतिपूर्ण ढंग से समाप्त हो गई, वहीं चुराचांदपुर, मोइरंग, मोटबुंग और मोरेह में आगजनी और तोड़फोड़ की कई खबरें आईं.
'सोशल मीडिया से भड़की हिंसा'
मिजोरम के 40 वर्षीय विस्थापित मैतेई शख्स ने दावा किया कि राज्य के सरकारी अधिकारियों ने उन्हें सोशल मीडिया पर यौन उत्पीड़न की घटना की निंदा करने के लिए मजबूर किया.
मणिपुर के कांगपोकपी जिले में दो महिलाओं को नग्न परेड कराये जाने के वायरल वीडियो को लेकर उन्होंने क्विंट हिंदी से कहा, "जब हमें इस घटना के बारे में पता चला तो हमने इसकी निंदा की, फिर भी मिजोरम सरकार के अधिकारियों ने हमें हमारी सुरक्षा के लिए इस घटना की निंदा करते हुए सोशल मीडिया पर पोस्ट डालने के लिए मजबूर किया."
वीडियो वायरल होने के बाद इसकी जमकर निंदा हो रही है और सरकार से कड़ी कार्रवाई की मांग की जा रही है.
शिविर में शरण लेने वाले मैतेई में से एक ने आरोप लगाया कि फर्जी खबरें 'सोशल मीडिया पर जंगल की आग' की तरह फैल रही हैं, साथ ही एक पोस्ट में दावा किया गया कि परेशान करने वाले वायरल वीडियो में दो महिलाओं में से एक मिजो थी - जिससे राज्य में और अधिक तनाव पैदा हो गया.
उन्होंने कहा, "मुझे लगता है कि सोशल मीडिया ने इस संघर्ष को मैतेई बनाम कुकी से मैतेई बनाम आदिवासी बना दिया है और यही कारण है कि मिजोरम में स्थिति खराब हो गई है."
'मैतेई को भागने का नोटिस नहीं दिया'- PAMRA की सफाई
एक प्रेस बयान में, PAMRA ने सफाई दी है कि उनके द्वारा जारी किया गया बयान मैतेई समुदाय के लिए एक सलाह थी कि "मणिपुर में चल रहे जातीय संघर्ष के आलोक में जन भावनाओं के मद्देनजर सावधानी बरतें. उन्हें भाग जाने का कोई आदेश या नोटिस नहीं दिया गया था."
गृह आयुक्त द्वारा जातीय संघर्ष के संबंध में विभिन्न मोर्चों पर सरकार द्वारा उठाए जा रहे कदमों और उपायों के बारे में PAMRA के प्रतिनिधियों को सूचित करने के बाद, PAMRA प्रतिनिधियों ने खेद व्यक्त करते हुए कि उनके प्रेस बयान को गलत समझा गया, राज्य में शांति बनाए रखने के लिए इसे आगे नहीं बढ़ाने का निर्णय लिया.PAMRA, प्रेस बयान
इस बीच, कछार के पुलिस अधीक्षक ने मीडिया को बताया कि असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने स्थानीय प्रशासन से मिजोरम से विस्थापित मेइती लोगों को आश्रय और पर्याप्त सुरक्षा प्रदान करने के लिए कहा है.
रिपोर्टों के अनुसार, आइजवाल में लगभग 2,000 मेइती लोग रहते हैं, जिनमें छात्र और सरकारी कर्मचारी भी शामिल हैं. असम के अलावा, कई लोग कथित तौर पर मणिपुर के लिए वापस चले गए.
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