मंगलवार की शाम (28 फरवरी), एक मसरूफ दिन के आखिर में भारत के चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस पीएस नरसिम्हा की सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने दिल्ली के पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया (Manish Sisodia) की गिरफ्तारी के खिलाफ याचिका पर सुनवाई की. लेकिन उन्होंने इस पर विचार करने से मना कर दिया.
केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) ने रविवार को मनीष सिसोदिया को गिरफ्तार किया था. यह गिरफ्तारी 2021 और 2022 की दिल्ली सरकार की आबकारी नीति में कथित भ्रष्टाचार के मामले से संबंधित है.
कोर्ट ने सिसोदिया से कहा कि उन्हें सुप्रीम कोर्ट की बजाय हाईकोर्ट जाना चाहिए. वहां उनके पास आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 482 के तहत वैकल्पिक उपाय उपलब्ध है. चीफ जस्टिस ने कहा, “हम यहां मौजूद हैं, लेकिन आप दिल्ली हाईकोर्ट क्यों नहीं जाते?”
इस सिलसिले में सिसोदिया के वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने विनोद दुआ और अर्नब गोस्वामी जैसे मामलों का हवाला दिया था. इन मामलों में एपेक्स कोर्ट ने अनुच्छेद 32 को लागू करने की इजाज़त दी थी. अनुच्छेद 32 के तहत याचिकाकर्ता को यह मौलिक अधिकार है कि वह सीधे सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकता है.
तो एपेक्स कोर्ट ने सिंघवी की याचिका को खारिज क्यों किया?
खैर, बेंच ने उन मामलों और सिसोदिया की याचिका को एक जैसा नहीं माना. उसने सिंघवी से कहा कि विनोद दुआ का मामला देशद्रोह के आरोप का सामना कर रहे एक पत्रकार का है (जबकि सिसोदिया पर भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत आरोप लगे हैं और वह उपमुख्यमंत्री हैं) और अर्नब गोस्वामी पहले हाई कोर्ट ही गए थे.
इस पर सिंघवी ने कहा कि दिल्ली हाई कोर्ट के रोस्टर जज ज्यादातर दिन सिटिंग नहीं करते क्योंकि वह पीएफआई मामले में यूएपीए ट्रिब्यूनल के काम से जुड़े हुए हैं. लेकिन एपेक्स कोर्ट तब भी जस से मस नहीं हुई.
अर्नब गोस्वामी और विनोद दुआ के मामलों में क्या फैसला सुनाया गया था?
लेकिन उससे पहले मनीष सिसोदिया पर क्या-क्या आरोप लगे हैं? उनके वकीलों ने और क्या कहा है? और उसे रिमांड पर क्यों लिया गया?
कथित अपराध
मनीष सिसोदिया पर भारतीय दंड संहिता की धारा 120बी, 477ए और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 7 के तहत मामला दर्ज किया गया है.
वकील ने और क्या दलील दी थी?
सीनियर एडवोकेट सिंघवी ने कहा कि अर्नेश कुमार दिशा निर्देशों के अनुसार: "दरअसल, गिरफ्तारी अवैध होगी, क्योंकि जिस अपराध के लिए सिसोदिया को गिरफ्तार किया गया है, वह सात साल से कम का दंडनीय अपराध है."
इस तरह सिंघवी ने कहा कि सिसोदिया को गिरफ्तार करने के लिए अधिकारियों को गिरफ्तारी की पूर्ण आवश्यकता, यानी एब्सोल्यूट नेसेसिटी दर्शानी होगी, यानी ट्रिपल टेस्ट- उनके भाग निकलने का जोखिम, सम्मन पर मौजूद न रहना, आपराधिक दखलंदाजी. यहां ऐसा कोई जोखिम नहीं है, जैसे-
उनके मुवक्किल का अपने उच्च सरकारी प्रोफाइल के कारण भाग निकलने का जोखिम नहीं है
सभी सम्मन का पालन किया गया है
सबूत से छेड़छाड़ का कोई रिकॉर्ड या आशंका नहीं है
अर्नेश कुमार बनाम बिहार राज्य (2014) में सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया था कि सात साल या उससे कम की सजा वाले अपराधों से जुड़े मामलों में गिरफ्तारी एक अपवाद होनी चाहिए.
सिंघवी ने सतेंद्र कुमार अंतिल बनाम केंद्रीय जांच ब्यूरो और अन्य में शीर्ष अदालत के फैसले का भी हवाला दिया, जिसमें पीठ ने निर्देश दिया था-
“अदालतों को संहिता की धारा 41 और 41ए के अनुपालन पर खुद को संतुष्ट करना होगा. कोई भी गैर-अनुपालन आरोपी को जमानत देने का हकदार होगा.”
अदालत ने यह भी कहा था कि अगर जांच एजेंसियां उपरोक्त धाराओं और अर्नेश कुमार दिशा-निर्देशों का पालन करने में चूक करती हैं, तो अदालत उच्च अधिकारियों के चेता सकती है कि वे उचित कार्रवाई करें.
सोमवार को, विशेष सीबीआई जज ने सिसोदिया को पांच दिनों की न्यायिक हिरासत में भेज दिया था, यह कहते हुए कि: "यह सच है कि उनसे खुद के खिलाफ बयान देने की उम्मीद नहीं की जा सकती. लेकिन न्याय के हित में और निष्पक्ष जांच के लिए यह जरूरी है कि वह आईओ के सवालों के जायज़ जवाब दें.
सीबीआई के विशेष जज के सामने सिंघवी की ओर से सीनियर जज दयान कृष्णन पेश हुए. उन्होंने तर्क दिया था: "कोई ऐसा कुछ कहने को तैयार नहीं है जिसे आप सुनना चाहते हैं, यह रिमांड का कोई आधार नहीं है."
और अर्नब गोस्वामी और विनोद दुआ के मामलों में सुप्रीम कोर्ट ने क्या फैसला सुनाया था?
जून 2021 में एपेक्स कोर्ट ने विनोद दुआ के खिलाफ देशद्रोह का मामला खारिज कर दिया था और कहा था:
इससे कुछ महीने पहले नवंबर 2020 में एपेक्स कोर्ट ने टीवी पर्सनैलिटी अर्नब गोस्वामी को आत्महत्या के लिए उकसाने के मामले में जमानत दे दी थी. इसके अलावा उसने हाई कोर्ट को फटकार लगाई थी कि अदालतों ने अपने क्षेत्राधिकारों का इस्तेमाल क्यों नहीं किया. उसने कहा था:
पीठ ने यह भी कहा था: "अगर हम एक संवैधानिक अदालत के रूप में कानून नहीं बनाते हैं और स्वतंत्रता की रक्षा नहीं करते हैं तो कौन करेगा?"
इस बीच सिसोदिया हिरासत में हैं और उन्हें जमानत मिलने के आसार नहीं हैं. सुप्रीम कोर्ट ने उनकी याचिका पर विचार करने से इनकार किया तो उसके तुरंत बाद मंगलवार शाम को उन्होंने दिल्ली कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया.
उन्होंने अपने इस्तीफे में लिखा है, 'जब तक मेरे खिलाफ लगे आरोप झूठे साबित नहीं हो जाते, मैं पद छोड़ रहा हूं.'
(एनडीटीवी, लाइव लॉ और बार एंड बेंच से इनपुट्स के साथ.)
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