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मांझी के मन में आखिर क्या है, क्यों दे रहे नीतीश सरकार को गिराने की धमकी?

ब्राह्मणों को गाली देकर चौतरफा घिरे मांझी लगातार बयानबाजी कर रहे हैं.

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बिहार (Bihar) में सर्द मौसम और ठंडी हवाओं के बीच जीतन राम मांझी(Jitan Ram Manjhi) ने राजनीतिक सरगर्मी बढ़ाई हुई है. बीजेपी(BJP) मंत्री के एक बयान के जवाब में मांझी की पार्टी ने NDA सरकार गिराने तक की धमकी दे डाली है. हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा के प्रवक्ता दानिश रिजवान ने बीजेपी मंत्री को मांझी पर बयान देने से पहले 20 बार सोचने की नसीहत देते हुए कहा कि अगर मांझी जी ने अपने 4 विधायकों का समर्थन सरकार से वापस ले लिया तो मंत्री सड़क पर आ जाएंगे.

इतना ही नहीं दानिश रिजवान ने कहा कि कई सभाओं में पीएम मोदी की भी जुबान फिसली है तो क्या उन्हें भी राजनीति से सन्यास लेने की सलाह देंगे? मांझी के प्रवक्ता ने कैलाश विजयवर्गीय के सेक्युलरों को जानवर से भी बदतर बताने वाले बयान का हवाला देते हुए पूछा कि क्या प्रधानमंत्री मोदी जानवर हैं?

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दरअसल, ब्राह्मणों को गाली देकर चौतरफा घिरे मांझी लगातार बयानबाजी कर रहे हैं. कभी वीडियो को झूठा बताया तो कभी अपने बयान को 'स्लिप ऑफ टंग' कहा. पहले माफी मांगी फिर अपने बयान को अलग-अलग तरीकों से जस्टिफाई करने की कोशिश की और फिर डैमेज कंट्रोल के तौर पर ब्राह्मण भोज भी कराया. इन सबके बीच बीजेपी मंत्री नीरज सिंह बबलू ने जीतन राम मांझी को राजनीति से संन्यास लेने की नसीहत दे डाली. नीरज बबलू ने कहा कि नीतीश कुमार ने मांझी को मुख्यमंत्री बनाया मगर ऐसा लगता है कि मांझी जी पर अब उम्र का दुष्प्रभाव हो रहा है. मांझी को समझना चाहिए कि उनका बेटा भी नीतीश कुमार सरकार में मंत्री है और इस प्रकार के अनाप-शनाप बयान से उन्हें बचना चाहिए. मांझी को राजनीति से संन्यास लेकर राम नाम जपना चाहिए.

बस इसी बयान पर मांझी की पार्टी बिफर पड़ी और सरकार गिराने तक की धमकी दे दी. मांझी के कड़े तेवर देखकर बीजेपी के बड़े नेता सुशील मोदी डैमेज कंट्रोल के लिए उतरे. मोदी ने ट्वीट करते हुए लिखा, "जिसने मांझी जी को धमकी दी, उसे भाजपा ने निलम्बित कर साफ संदेश दिया कि दलित समाज को धमकाने या अपमानित करने वालों को बिल्कुल बर्दाश्त नहीं किया जाएगा. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में पार्टी सबका साथ, सबका विकास और सबका सम्मान सुरक्षित रखने के लिए प्रतिबद्ध है."

सुशील मोदी ने आगे लिखा, "पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी एनडीए के वरिष्ठ नेता हैं, उन पर घटक दलों की ओर से कोई बयानबाजी नहीं होनी चाहिए. जिस बयान को तूल दिया गया, उस पर जब मांझी जी ने माफी मांग ली, अपने आवास पर बुलाकर ब्राह्मणों को सम्मान के साथ भोजन कराया और दक्षिणा देकर विदा किया, तब इस चैप्टर को यहीं बंद हो जाना चाहिए."

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मांझी की ब्राह्मणों को गाली 'गलती या रणनीति'?

बिहार विधानसभा चुनाव 2020 के नतीजों का अंक गणित कुछ ऐसा है कि भले ही मांझी और सहनी के विधायकों की संख्या मामूली दिखाई पड़ती हो लेकिन बिहार में सरकार चलाने की चाबी फिलहाल इन्हीं के पास है. यही वजह है कि मांझी और सहनी सरकार में अपनी महत्ता का एहसास कराने के लिए गठबंधन पर तमाम तरीकों से दबाव बनाए रहते हैं.

ब्राह्मणों पर दिए मांझी के आपत्तिजनक बयान को भी इसी 'दबाव की रणनीति' से जोड़कर देखा जा रहा है. मांझी पहले ही कह चुके हैं कि ये उनकी आखिरी राजनीतिक पारी है और अपनी इस आखिरी पारी में उनकी इच्छा अपने परिवार के लोगों को सेट करने की है.

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दरअसल बिहार में एमएलसी की 24 सीटों के लिए चुनाव होने हैं, इसके अलावा विधानसभा कोटे की भी 7 सीटें खाली होने वाली हैं. बताया जा रहा है कि जीतन राम मांझी, नीतीश कुमार के सामने खुलकर अपनी इच्छा जाहिर कर चुके हैं लेकिन नीतीश ने उनकी इच्छा को तवज्जो नहीं दी. चूंकि मांझी जेडीयू के सहयोगी के नाते एनडीए में हैं, इसलिए बीजेपी ने भी मांझी की इच्छा में बहुत दिलचस्पी नहीं दिखाई. ऐसे में मांझी ने बीजेपी के कोर वोटर (ब्राह्मणों) के खिलाफ बयान देकर बीजेपी पर प्रेशर बनाने की कोशिश की ताकि बीजेपी-जेडीयू के नेता उनकी इच्छा को अहमियत दें.

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पहले मांझी की जुबान काटकर लाने वाले को इनाम देने की घोषणा करने वाले बीजेपी नेता को पार्टी से बाहर निकालना और अब मांझी की सरकार गिराने की धमकी के बाद बीजेपी नेता सुशील मोदी का डैमेज कंट्रोल करना, बताता है कि मांझी अपनी रणनीतिक चाल में काफी हद तक सफल हुए हैं. अब देखना होगा कि बीजेपी-जेडीयू सरकार बचाये रखने की लालसा में मांझी की राजनीतिक इच्छा का बोझ किस हद तक उठा पाती है!

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