मनोज सिन्हा ने जम्मू-कश्मीर के नए राज्यपाल के रूप में शुक्रवार को शपथ ली. बता दें कि गुरुवार को ही मनोज सिन्हा को नया उपराज्यपाल बनाने की घोषणा की गई थी. गिरिश चंद्र मुर्मू के इस्तीफे के बाद सिन्हा को नई जिम्मेदारी दी गई है.
1985 बैच के गुजरात काडर के पूर्व आईएएस अफसर गिरिश चंद्र मुर्मू को पिछले साल ही अक्टूबर में जम्मू-कश्मीर का एलजी नियुक्त किया गया था. इससे तुरंत पहले अगस्त में ही जम्मू-कश्मीर को केंद्र शासित प्रदेश बनाया गया था. लेकिन फिलहाल कश्मीर में मोदी सरकार के सामने राजनीतिक चुनौती है, इसलिए शायद शांत स्वभाव वाले मनोज सिन्हा को वहां भेजा गया है.
मनोज सिन्हा के सामने बड़ी चुनौती प्रशासन, पुलिस, केंद्र सरकार और आम लोगों को एक पेज पर लेकर काम करने की होगी. पहले ही मनोज सिन्हा रेल और टेलिकॉम डिपार्टमेंट में अपने काम को लेकर अपनी छाप छोड़ चुके हैं, साथ ही उन्हें जमीनी राजनीति का भी अनुभव है. अगर मुर्मू से पहले वाले उपराज्यपाल सत्यपाल मलिक को देखें तो वो अपने बयानों को लेकर अक्सर चर्चा में रहते थे, लेकिन इसके ठीक उलट मनोज सिन्हा शांति से अपना काम करने वालों में जाने जाते हैं.
लो प्रोफाइल रहकर काम करते हैं, पार्टी में अच्छी साख है. नौकर शाह मुर्मू के उलट मनोज सिन्हा पार्टी लाइन को लेकर साफ दृष्टि रखते हैं. इसलिए शायद अब इन्हें जम्मू-कश्मीर की जिम्मेदारी दी गई है.
IIT (BHU) से सिविल इंजीनियरिंग में एमटेक की पढ़ाई के दौरान छात्र राजनीति में एंट्री हुई. मनोज सिन्हा का राजनीतिक सफर काफी उतार चढ़ाव वाला रहा है. 1982 में वह बीएचयू छात्र संघ का चुनाव जीतकर राजनीति में उतरे. 10वीं में स्टेट टॉपर, एमटेक में गोल्ड मेडलिस्ट और फिर 1996 में पहली बार गाजीपुर सीट से लोकसभा भी पहुंच गए. आठ बार लोकसभ चुनाव लड़ चुके मनोज सिन्हा को 3 बार जीत हासिल हुई. 1996, 1999, 2014 में गाजीपुर से सांसद बने.
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