नबंवर 2018 में महाराष्ट्र में बड़ी संख्या में मराठाओं ने आरक्षण के मुद्दे को लेकर आंदोलन किया था, जिसके बाद महाराष्ट्र विधानसभा में मराठाओं को सरकारी नौकरी और शिक्षा संस्थानों में आरक्षण देने के लिए विधेयक पारित किया गया. महाराष्ट्र की सियासत में मराठा आरक्षण मुद्दा बहुत मायने रखता है. हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने इस पर रोक लगा दी है, जिससे ये मुद्दा फिर से तूल पकड़ सकता है.
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को बड़ी बेंच के पास भेजा दिया गया है. सुप्रीम कोर्ट ने आदेश देते हुए कहा कि 2020-21 के दौरान नौकरियों और शिक्षा संस्थानों में प्रवेश में मराठा कोटा नहीं रहेगा. इस मुद्दे पर मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे संविधान पीठ का गठन करेंगे. अब मामले की सुनवाई 5 या इससे अधिक न्यायाधीशों की बेंच द्वारा की जाएगी.
नवंबर 2018 में पारित हुआ था मराठा आरक्षण विधेयक
महाराष्ट्र विधानसभा में नवंबर 2018 को सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़ा वर्ग अधिनियम 2018 को पारित किया गया था. इसके तहत सरकारी नौकरियों और शिक्षा संस्थानों में महाराष्ट्र में मराठों को 16 प्रतिशत आरक्षण दिया गया था, जिससे प्रदेश में आरक्षण सुप्रीम कोर्ट की 50 प्रतिशत की सीमा से अधिक हो गया.
बॉम्बे हाई कोर्ट ने बरकरार रखी थी आरक्षण वैधता
सरकार के इस फैसले को बॉम्बे हाई कोर्ट में चैलेंज किया गया. लेकिन बॉम्बे हाई कोर्ट ने मराठा आरक्षण की वैधता को बरकरार रखा था. हालांकि हाई कोर्ट ने राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग की सिफारिशों के अनुसार इसे रोजगार के मामले में 12% एवं शैक्षणिक संस्थानों में 13% से अधिक नहीं करने का आदेश दिया था.
फैसले को सुप्रीम कोर्ट में दी गई थी चुनौती
बॉम्बे हाई कोर्ट के इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी, जिसमें कहा गया था कि ये फैसला इंदिरा साहनी मामले का उल्लंघन करता है, जिसमें सुप्रीम कोर्ट के अनुसार आरक्षण की सीमा 50 प्रतिशत तय की गई है. अपने फैसले में बॉम्बे हाई कोर्ट ने कहा था कि राज्य विशेष परिस्थितियों में 50 प्रतिशत से अधिक आरक्षण दे सकते हैं.
मराठा आरक्षण: कब क्या हुआ?
- पहली बार मराठा आरक्षण की मांग 1980 के दशक में हुई.
- एनसीपी पहली पार्टी थी, जिसने 2009 के अपने चुनावी घोषणा पत्र में मराठाओं को आरक्षण देने का वादा किया था.
- जुलाई 2014 में कांग्रेस-एनसीपी सरकार एक अध्यादेश लेकर आई, जिसमें मराठों को 16 प्रतिशत आरक्षण की बात थी, लेकिन ये वैधानिक रूप सही नहीं था.
- दिसंबर 2014 में बीजेपी सरकार आरक्षण के लिए एक विधेयक लेकर आई.
- नवंबर 2018 में मराठों द्वारा बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन किए गए.
- इसके बाद राज्य विधानसभा में सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़ा वर्ग अधिनियम 2018 पारित किया गया, जिसमें मराठाओं को शिक्षा और सरकारी नौकरियों में 16 प्रतिशत आरक्षण देने की बात थी.
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से राजस्थान जैसे राज्यों को आरक्षण के मुद्दे पर विरोध का सामना करने के साथ अपनी रणनीति को भी बदलने के लिए मजबूर होना पड़ सकता है. क्योंकि यहां विभिन्न समुदाय पहले से आरक्षण की मांग करते रहे हैं, जो सियासी पार्टियों और सरकारों के लिए एक चिंता का विषय है.
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