Delhi HC Verdict on Marital Rape: दिल्ली हाई कोर्ट में मैरिटल रेप (पत्नी की इच्छा के खिलाफ शारीरिक संबंध) मामले में आज अहम सुनवाई हुई. मैरिटल रेप पर सुनवाई के दौरान दिल्ली हाई कोर्ट की बेंच ने खंडित फैसला सुनाया है. फैसले में दोनों जजों की अलग-अलग राय सामने आई है.
जस्टिस शकधर ने वैवाहिक बलात्कार को अपराध कहा और IPC की धारा 375 के अपवाद 2 को असंवैधानिक बताया. हालांकि जस्टिस हरिशंकर इससे सहमत नहीं दिखे.
जस्टिस राजीव शकधर का कहना है कि वैवाहिक बलात्कार संविधान का उल्लंघन है लेकिन जस्टिस सी हरि शंकर ने धारा 376 बी और 198 बी की वैधता को बरकरार रखने की बात कही है.
मैरिटल रेप को कई याचिकाओं ने दी चुनौती
भारतीय दंड संहिता की धारा 375 रेप के अपराध को परिभाषित करती है. इस सेक्शन में अवधारणाओं को हटाने और कुछ अपराधों को शामिल करने के लिए कई संशोधन किए गए, लेकिन पति का पत्नी के साथ जबरन सेक्स अभी भी अपराध नहीं है. अगर पत्नी की उम्र 15 साल से कम नहीं है, तो ये धारा (IPC Section 375, Exception 2) पति को अपनी पत्नी के साथ जबरन सेक्स को रेप के अपराध से छूट देता है.
इस धारा को लेकर दिल्ली हाईकोर्ट में कई याचिकाएं दाखिल की गई थीं. 2015 में RIT फाउंडेशन द्वारा चार याचिकाएं दायर की गई थीं. इसके अलावा भी कई अलग-अलग याचिकाएं इस मामले को लेकर दाखिल हो चुकी हैं.
इस अपवाद को दिल्ली हाईकोर्ट में इस आधार पर चुनौती दी गई थी कि ये आर्टिकल 14 (कानून द्वारा समान व्यवहार का अधिकार) और आर्टिकल 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार) सहित विवाहित महिलाओं के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है.
2015 में RIT फाउंडेशन के मामले में सुनवाई शुरू हुई थी और दिल्ली हाईकोर्ट ने केंद्र और दिल्ली सरकार को नोटिस जारी किया था. 2016 में, केंद्र ने एक हलफनामा दायर किया, जिसमें कहा गया था कि मैरिटल रेप को अपराध नहीं बनाया जा सकता, क्योंकि इसका भारतीय समाज पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा. मामला तीन साल से ज्यादा समय तक स्थगित रहा और आखिरकार दिसंबर 2021 में सुनवाई फिर से शुरू हुई.
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