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शहीद के पिता की याचिका-सिर्फ ट्वीट काफी नहीं, बलिदान को मिले पहचान

याचिका को केंद्रीय रक्षा मंत्री के नाम लिखा गया है

Published
भारत
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शहीद मेजर अनुज सूद के पिता रिटायर्ड ब्रिगेडियर सीके सूद ने Change.org पर एक याचिका शुरू की है. याचिका में रिटायर्ड ब्रिगेडियर सूद ने शहीदों के बलिदान को मान्यता देने की अपील की है. उन्होंने कहा, "जो वीर भारत के लिए अपनी जान का बलिदान देते हैं, उन्हें एक ट्वीट के बाद हमेशा के लिए भुला दिया जाता है."

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शहीद मेजर अनुज सूद उन पांच सुरक्षा बल में से थे, जो 3 मई को जम्मू-कश्मीर के हंदवाड़ा में हुए एक एनकाउंटर में शहीद हुए थे.  

याचिका को केंद्रीय रक्षा मंत्री के नाम लिखा गया है. इसमें सरकार और अधिकारियों से देश के लिए जान देने वाले शहीदों के बलिदान को मान्यता देने की अपील की गई है.

याचिका में कहा गया, "एक ट्वीट काफी नहीं है. उनका नाम लीजिए. उनके बलिदान को पहचानिए. उनके परिवारों के साथ शांति और समर्थन में खड़े होइए. हमारे वीर इससे ज्यादा के लायक हैं! चलिए शुरुआत करते हैं- प्लीज मेरी याचिका पर साइन कीजिए जिससे कि बहादुर जवानों के परिवारों को उनके बेटे और पतियों के बलिदान को मान्यता देता PMO/राष्ट्रपति ऑफिस से एक खत मिले."

तीन दिन पहले शुरू हुई इस याचिका पर अब तक 20,000 साइन ही आए हैं.  
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'शहीदों के लिए शायद ही कोई फ्लाईपास्ट हुआ'

याचिका में कहा गया कि COVID-19 महामारी के समय हेल्थ वर्कर्स और डॉक्टरों के सम्मान में 'फ्लाईपास्ट' किया गया, लेकिन 'शहीदों के लिए शायद ही कोई फ्लाईपास्ट हुआ हो', या झंडे को झुकाया गया हो, राष्ट्रीय शोक की घोषणा हुई हो, वीरों को श्रद्धांजलि का देश के लिए टेलीकास्ट हुआ हो.

ब्रिगेडियर सूद का मानना है कि 'हमें युद्ध में मारे जाने वाले लोगों के सम्मान के लिए एक स्टैंडर्ड नेशनल प्रोटोकॉल चाहिए और इसके लिए अच्छी शुरुआत भारत-चीन बॉर्डर पर शहीद हुए जवानों के परिवारों को एक खत हो सकता है.'

मरने पर उन्हें अपने सुप्रीम लीडर से बदनामी मिलती है, जबकि विडंबना ये है कि उन्होंने अपनी जान ऐसे काम में गंवाई है जिसे नेताओं ने शुरू किया और साल दर साल उलझाया. हमारे वीर हर साल एक्शन में मारे जाते हैं और परिवार उनके टुकड़े उठाता है. उनका सम्मान सिर्फ एक बार होता है और फिर भुला दिए जाते हैं. मैं ये अपनी याचिका से बदलना चाहता हूं और मुझे आपका समर्थन चाहिए.
ब्रिगेडियर सूद

याचिका में कहा गया, "इन परिवारों के पास अपने बेटों की बहादुरी के अलावा और कुछ नहीं होता है. और इसे देश के सबसे बड़े कार्यालय से पहचान मिलना बड़ी बात है. ये लेटर/मेमेंटो सबसे बड़ी मान्यता की तरह काम करेगा और ये इकलौता सबूत होगा कि उनके बेटे/पति ने देश के लिए जान दी है. उनसे ये साबित करने के 100 कागजात न मांगे जाएं."

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