सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को उस जनहित याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया, जिसमें सभी राज्य सरकारों को छात्राओं और कामकाजी महिलाओं के लिए मासिक धर्म के समय छुट्टी (Menstrual leaves) के लिए नियम बनाने का निर्देश देने की मांग की गई थी. दूसरी तरफ हाल ही में स्पेन पहला ऐसा यूरोपीय देश बना है जहां की महिलाओं को हर महीने पीरियड्स के दौरान वेतन के साथ 3 से 5 दिन की छुट्टी (पेड लीव) मिलेगी. इतना ही नहीं 16 फरवरी को पारित कानून के तहत सभी शैक्षणिक केंद्रों, जेलों और सामाजिक केंद्रों में सेनिटरी पैड और टैम्पॉन जैसे पीरियड हाइजीन से जुड़े प्रोडक्ट मुफ्त दिए जाएंगे.
आइए समझते हैं कि दुनिया भर में मासिक धर्म के समय छुट्टी के कैसे प्रावधान किये गए हैं? भारत में इसपर क्या डेवलपमेन्ट हैं? इससे जुड़े रिपोर्ट और सर्वे क्या बताते हैं? मासिक धर्म की छुट्टी का विचार विवादास्पद क्यों है?
पीरियड्स के दौरान छुट्टी अभी तक सिर्फ कुछ देशों में ही दी जाती है. छुट्टी देने वाले देशों में जापान, दक्षिण कोरिया, इंडोनेशिया और जाम्बिया शामिल हैं. टाइम मैगजीन के एक आर्टिकल के अनुसार, 1920 के दशक में रूसी कामगारों ने पहली बार इस अवधारणा को आगे बढ़ाया था.
बता दें स्पेन में इस कानून को लेकर पिछले साल से ही बहस जारी थी. मासिक धर्म बिल को बड़े वामपंथी गठबंधन द्वारा समर्थन मिला है. जबकि वहां की रूढ़िवादी पॉपुलर पार्टी और कट्टर राइट विंग पार्टी- वोक्स ने इसके खिलाफ वोट डाला है.
भारत में भी मासिक धर्म के दौरान छुट्टी की मांग
पूरे भारत में छात्रों और कामकाजी महिलाओं के लिए मासिक धर्म की छुट्टी की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका (PIL) दायर की गई थी लेकिन कोर्ट ने इसपर विचार करने से मना कर दिया. ये याचिका शैलेंद्र मणि त्रिपाठी ने दायर की थी.
याचिका में छात्राओं और कामकाजी महिलाओं के लिए पीरियड्स लीव दिए जाने की मांग की गई थी. भारत के मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि यदि नियोक्ताओं को मासिक धर्म की छुट्टी देने के लिए मजबूर किया जाता है, तो यह महिला कर्मचारियों की भर्ती में बाधा बन सकता है. पीठ ने याचिकाकर्ता अधिवक्ता शैलेंद्र मणि त्रिपाठी को अपनी याचिका के साथ महिला एवं बाल विकास मंत्रालय से संपर्क करने को कहा. पीठ ने कहा, यह एक नीतिगत मामला है, इसलिए हम इससे नहीं निपट रहे हैं.
लोकसभा में पेश हो चुका है विधेयक
हालांकि यह कोई नया विचार नहीं है, 2017 में, मासिक धर्म के दौरान छुट्टी के लिए लोकसभा में अरुणाचल प्रदेश से कांग्रेस सांसद निनॉन्ग एरिंग ने एक विधेयक पेश किया था. इसमें कहा गया था कि सरकार द्वारा पंजीकृत प्रतिष्ठान में कार्यरत महिलाएं और आठवीं कक्षा और उससे ऊपर की छात्राएं अपने मासिक धर्म के दौरान चार दिनों के लिए वेतन के साथ अवकाश या छुट्टी की हकदार होंगी. इसके अलावा, अगर माहवारी से गुजर रही कोई महिला कर्मचारी छुट्टी लेने के बजाय काम करने का विकल्प चुनती है, तो उसे ओवरटाइम का भुगतान किया जाएगा.
हालांकि, यह विधेयक कानून नहीं बन पाया. पिछले महीने केरल सरकार ने कहा कि वह उच्च शिक्षा विभाग के तहत आने वाले सभी राज्य विश्वविद्यालयों में पढ़ने वाली छात्राओं को मासिक धर्म की छुट्टी देगी. बहुत पहले, बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने 1992 में इस तरह का प्रावधान पेश किया था.
क्या बताती है रिपोर्ट और सर्वेक्षण
ब्रिटिश मेडिकल एसोसिएशन में प्रकाशित एक अध्ययन के मुताबिक नीदरलैंड (Netherland) के लगभग 32,000 उत्तरदाताओं में से 80.7 प्रतिशत ने रिपोर्ट किया कि सही जानकारी की कमी की वजह से साल में औसतन 23.2 दिन उत्पादकता में कमी आई है.
वहीं भारत में, सैनिटरी उत्पादों की जानकारी और उन तक पहुंच की कमी के कारण कई लड़कियां युवावस्था में स्कूल छोड़ देती हैं. अध्ययन में ये जाहिर है कि इस मुद्दे पर बात ना करने की वजह से ये सारी परेशानियां पेश आ रही हैं. जब महिलाएं अपने मासिक धर्म के कारण बीमार होती हैं, तो केवल 20 प्रतिशत ही महिला ऐसी होती है जो अपने नियोक्ता या स्कूल को बताती हैं कि उनकी स्कूल में अनुपस्थिति मासिक धर्म की शिकायतों के कारण थी. मासिक धर्म से जुड़ी गोपनीयता और मिथकों को एक चिंता के रूप में चिह्नित किया गया है, स्वच्छता या दर्द से राहत पर समाधान या सलाह पर चर्चा करने से रोका गया है.
मासिक धर्म की छुट्टी का विचार विवादास्पद क्यों है?
हर देश में मासिक धर्म को लेकर अलग अलग विचार है. ये अभी भी विवादास्पद है,क्योंकि जिन देशों ने इसे लागू किया है वो अपनी विचार को लेकर स्पष्ट तस्वीर जाहिर नहीं करते. जापान जैसे देशों में मासिक धर्म को लेकर छुट्टी का प्रावधान तो है, पर पीरियड्स को लेकर जो टैबो (Taboo) है उसे खत्म करने में ये आज भी पूरी तरह कामयाब नहीं नहीं है. जबकि बहस ये भी साबित करती है कि मासिक धर्म के दौरान छुट्टी महिलाओं की नियुक्ति प्रक्रिया को प्रभावित कर सकती है. पहले ही महिलाओं को नौकरी के लिए कई परेशानियों का सामना करना पड़ता है. इसके अलावा कई लोगों का यह भी तर्क हैं कि ये कर्मचारियों की बीच मतभेद का कारण बन सकती है.
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