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मेरा भारत कहां? - अब गुस्सा नहीं, सिर्फ थकान बची है

द क्विंट के आकाश जोशी सार्वजनिक बातचीत में लोगों की कट्टरता से थक चुके हैं. 

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आज मुझे ऑस्कर पर ही ध्यान देना चाहिए था पर इसके बजाय जिस पहली चीज पर आज सुबह मेरी नजर पड़ी, वो थी द इंडियन एक्सप्रेस की एक बड़ी खबर. एक केंद्रीय मंत्री, कई सांसदों, और अन्य राजनेताओं ने मुसलमानों के राक्षसों के बराबर ला खड़ा किया. उन्हें रावण की सेना बताते हुए कहा कि उन्हें खत्म कर दिया जाना चाहिए.

पूर्वाग्रहों और कट्टरता के इस सार्वजनिक प्रदर्शन पर अब हैरानी नहीं होती. घर वापसी, बीफ बैन, आजम खान की कहानियां जिनमें प्रधानमंत्री पाकिस्तान में दाऊद से गुप्त रूप से मिलते हैं, जेएनयू में कंडोम की गिनती, और धार्मिक नेताओं का यह बताना कि महिलाओं को क्या पहनना चाहिए, क्या नहीं... ये सब बातें अब आम होती जा रही हैं.

द क्विंट के आकाश जोशी सार्वजनिक बातचीत में लोगों की कट्टरता से थक चुके हैं. 
अलवर से बीजेपी के विधायक ज्ञानदेव आहूजा ने जेएनयू के बारे में कुछ बेहद अजीब बातें कहीं. (फोटो: द क्विंट)
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चुने गए जनप्रतिनिधियों और एक राज्य के मानव संसाधन मंत्री द्वारा हिंसा के लिए उकसाने वाले ये बयान से आम तौर पर एक ही तरह की प्रतिक्रिया की उम्मीद की जा सकती है.

आज कल हर दिन सुबह की मीटिंग में मेरे सुझाव कुछ ऐसे होने लगे हैं — “QRant: मंत्री ने मुसलमानों को रावण की सेना कहा”. उसके बाद हम मंत्री के बयान की निंदा करेंगे, उसका मजाक बनाएंगे, उसे एक जनप्रतिनिधि की जिम्मेदारियां याद दिलाएंगे, उसे अपने धर्म निरपेक्ष, लोकतांत्रिक समानतावादी संविधान की इज्जत करने की उसकी शपथ याद दिलाएंगे.

पर आप कब तक गुस्से और नैतिक सच्चाई का रोना रोते रहेंगे. मंत्री एक चुना गया जन प्रतिनिधि होता है, और इस तरह के बयान देने वाले कई और लोग भी चुने गए लोग हैं. धार्मिक नेताओं और फर्जी गुरुओं, और उनके समर्थकों की भी कोई कमी नहीं. ऐसा लगता है, आप जितना लोगों को बांटेंगे, अलग करेंगे, लोगों के बीच आपकी उतनी ही गहरी पैठ होगी, आप उतने ही सफल होते जाएंगे.

द क्विंट के आकाश जोशी सार्वजनिक बातचीत में लोगों की कट्टरता से थक चुके हैं. 
योगी आदित्यनाथ इस तरह के हास्यास्पद बयान बड़ी कुशलता से देते हैं. ये बीजेपी के सांसद हैं. (फोटो: क्विंट द्वारा बदला गया)

ऐसा लगता है जैसे बिग बॉस का एक एपीसोड चल रहा हो, जो खत्म ही नहीं होता.

राजनेताओं, प्राइम-टाइम बहसों, (और मान भी लिया जाए कि) हम सब ने देश की सार्वजनिक बातचीत में जिस तरह की कीचड़ घोल दी है, उसमें शामिल होने का क्या अर्थ बचा है?

कभी-कभी मैं बस थक जाता हूं. किसी किसी दिन कोई QRant नहीं होता, बस QFatigue होता है. आज भी कुछ ऐसा ही दिन है.

मुझे वाकई ऑस्कर ही देखना चाहिए था!

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