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UAPA के तहत 2016-2018 तक 3 हजार केस, लेकिन चार्जशीट सिर्फ 821

पिछले कुछ सालों में कई गिरफ्तारियों होने के बाद यूएपीए कानून काफी विवादों में रहा

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पिछले कुछ सालों में एक कानून जिसकी चर्चा सबसे ज्यादा हुई, वो है UAPA यानी Unlawful activities (prevention) act. इस कानून के तहत पिछले कुछ सालों में हजारों लोगों को गिरफ्तार किया गया, इसी वजह से ये कानून काफी विवादों में भी रहा. लेकिन अब इसे लेकर संसद में कुछ आंकड़े पेश किए गए हैं. जिसमें बताया गया है कि साल 2016 से लेकर 2018 के बीच UAPA के तहत कुल 3,005 केस दर्ज किए गए. लेकिन हैरानी की बात ये है कि इन तीन हजार से ज्यादा मामलों में सिर्फ 821 मामलों की चार्जशीट कोर्ट में दायर की गई.

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राज्यसभा में केंद्र सरकार का जवाब

राज्यसभा में केंद्रीय गृहमंत्रालय की तरफ से ये आंकड़े एक सवाल के जवाब में पेश किए गए. जिसमें बताया गया कि एंटी टेरर कानून के तहत कुल 3,974 लोगों को गिरफ्तार किया गया. एक लिखित जवाब में गृह राज्यमंत्री जी किशन रेड्डी ने राज्यसभा में बताया,

पूरे देश में कुल 922, 901 मामले दर्ज हुए, जिनमें से 1,182 के यूएपीए के तहत साल 2016, 2017 और 2018 में दर्ज किए गए. इन सभी में से कुल 3974 लोगों को गिरफ्तार किया गया, जिसमें 2016 में 999, 2017 में 1554 और साल 2018 में कुल 1421 गिरफ्तारियां हुईं.

गृहराज्य मंत्री ने बताया कि साल 2016 में सिर्फ 232 मामलों में चार्जशीट की गई. वहीं 2017 में 272 और 2018 में 317 केस की चार्जशीट हुई. इसके अलावा राज्यसभा में केंद्र सरकार की तरफ से बताया गया कि 2016 से लेकर 2018 के बीच कुल 1198 लोगों को नेशनल सिक्योरिटी एक्ट यानी NSA के तहत हिरासत में लिया गया. जिनमें मध्य प्रदेश में सबसे ज्यादा 795 लोग गिरफ्तार हुए. इन 1198 लोगों में से करीब 563 अभी तक जेल में बंद हैं.

क्या है UAPA कानून?

Unlawful activities (prevention) act (UAPA) कानून साल 1967 में लाया गया था. लेकिन इसके बाद पिछले साल यानी 2019 में इस कानून में संशोधन हुआ. जिसके बाद अब इसके तहत संस्थाओं ही नहीं व्यक्तियों को भी आतंकवादी घोषित किया जा सकेगा, वहीं किसी पर शक होने से ही उसे आतंकवादी घोषित किया जा सकता है. फिलहाल सिर्फ संगठनों को ही आतंकवादी संगठन घोषित किया जा सकता था. खास बात ये है कि इसके लिए उस व्यक्ति का किसी आतंकी संगठन से संबंध दिखाना भी जरूरी नहीं है. आतंकी का टैग हटवाने के लिए भी कोर्ट के बजाय सरकार की बनाई रिव्यू कमेटी के पास जाना होगा. बाद में कोर्ट में अपील की जा सकती है.

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