पश्चिम बंगाल के प्रवासी मजदूर कुतुबुद्दीन खान ने बेंगलुरु इंटरनेशनल एग्जीबिशन सेंटर (BIEC) में स्थित ट्रांजिट कैंप जाने से पहले अपना सारा सामान बेच दिया. खान ने एक गैस स्टोव, कुछ बर्तन और 2 प्लास्टिक की कुर्सियां 2000 रुपये में बेच दीं. कुतुबुद्दीन के पास खाने और रेंट के पैसे नहीं थे और वो आखिरी आस लेकर ट्रांजिट सेंटर गए थे, लेकिन पुलिस ने उन्हें वापस भेज दिया क्योंकि 19 मई को सेंटर बंद कर दिया गया.
कुतुबुद्दीन रात गुजारने के लिए जगह ढूंढ रहे थे, जब उन्हें बंगाल के साउथ 24 परगना के कुलेश्वर गांव से उनकी पत्नी का फोन आता है. वो कुतुबुद्दीन को साइक्लोन के बारे में बताती हैं. खान पैदल ही घर जाने का फैसला करते हैं, लेकिन कुछ ट्रक वाले उनकी मदद करते हैं और वो 23 मई को पहुंच जाते हैं.
1800 किलोमीटर का सफर किसी तरह तय करके वो घर पहुंचते हैं, लेकिन वहां घर बचा ही नहीं होता. साइक्लोन अम्पन आधे घर को उड़ा ले गया था.
क्विंट ने कुतुबुद्दीन से 23 मई को संपर्क किया. उन्होंने बताया कि जब परिवार को सुरक्षित देखा तो सबसे ज्यादा राहत महसूस की थी. हालांकि घर की दीवारें ढह चुकी थीं. छत उड़ गई थी और अगर दोबारा बारिश हुई तो परिवार घर में सो नहीं पाएगा.
कुतुबुद्दीन ने कहा, "हमें अभी तक कोई मदद नहीं मिली है. कोई अधिकारी नहीं आया है. हम अभी भी क्षतिग्रस्त घर में सो रहे हैं. मेरे दो बच्चे हैं."
घर का लंबा सफर
खान घर के लिए मदद ढूंढने में अपने पिछले चार दिनों की मुश्किलें भूल गए हैं. जब उनसे पूछा गया, तो खान ने बताया, "जिस दिन मेरी पत्नी ने फोन किया था, मैंने अपने चार दोस्तों के साथ पैदल चलना शुरू कर दिया. बेंगलुरु में केआर पुरम के पास हमने कुछ लोगों से बंगाल का रास्ता पूछा तो उन्होंने हमें हाईवे से जाने को कहा."
20 किमी चलने पर उन्हें एक पुलिस चेकपोस्ट दिखाई दिया. कुतुबुद्दीन कहते हैं कि जब पुलिस ने रोका तो वो डर गए थे कि उन्हें वापस भेज दिया जाएगा. उन्होंने बताया, "पुलिसवाले ने एक ट्रक को रोका और ड्राइवर से हमें आंध्र प्रदेश बॉर्डर तक छोड़ने को कहा."
आंध्र प्रदेश बॉर्डर पर भी पुलिस ने हमें नहीं रोका, लेकिन ट्रक का सफर खत्म हो गया. खान ने फिर पैदल सफर तय किया और 70 किमी चलने के बाद उन्हें फिर एक ट्रक से लिफ्ट मिली. कुतुबुद्दीन ने कहा, “लोग अच्छे थे. पुलिस समेत कई लोगों ने हमें खाना और पानी दिया. किसी ट्रक वाले ने हमसे पैसा नहीं लिया. ट्रक के सफर और पैदल चलकर हम ओडिशा बॉर्डर पहुंच गए.” ओडिशा बॉर्डर से खान को एक और ट्रक मिला, जो उन्हें कोलकाता तक ले गया.
कुतुबुद्दीन और दो बच्चो समेत उनका पूरा परिवार अभी टूटे हुए घर में सो रहा है. हालांकि कुछ पड़ोसी मदद कर रहे हैं. खान ने क्विंट से कहा, "मुझे लगा था कि बेंगलुरु से बंगाल पहुंच जाऊं तो भूखा नहीं रहूंगा, लेकिन यहां तो छत ही नहीं रही."
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