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गगनयान: अंतरिक्ष में अपने यान पर पहला भारतीय,कितना दूर-कितना करीब

क्यों आसान नहीं है इंसान को अंतरिक्ष भेजना?

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गगनयान यानी भारत का वो सपना जिसके पूरा होते ही भारत दुनिया के एलीट क्लब में शामिल हो जाएगा. फिलहाल इस क्लब में सिर्फ तीन देश हैं. अमेरिका, रूस और चीन. सिर्फ इन्हीं देशों ने अंतरिक्ष में अपने यान पर इंसान को भेजा है. बजट में वित्त मंत्री निर्मला सीतरमण ने इसका जिक्र भी किया. आइए समझते हैं क्यों इतना खास और मुश्किल है मिशन गगनयान. भारत के लिए क्या चुनौतियां हैं?

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चर्चा में क्यों?

  • हाल ही में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने संसद में बजट पेश करने के दौरान यह स्पष्ट कर दिया कि भारत के महत्वाकांक्षी गगनयान मिशन का मानवरहित ट्रायल इसी साल दिसंबर में किया जाएगा. अंतरिक्ष विभाग को वित्त वर्ष 2021-22 के लिए कुल 13,949 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं.
  • मिशन का पहला मानवरहित परीक्षण (अनमैंड टेस्ट) साल 2020 में किया जाना था, लेकिन कोरोना महामारी के चलते तय शेड्यूल से हम थोड़ा पीछे रह गए. अंतरिक्ष में भारत के इस पहले मैन मिशन के लिए 2020 में चार अंतरिक्ष यात्रियों का सिलेक्शन किया गया था. फिलहाल इसरो इस पर अच्छी प्रगति कर रहा है. चारों अंतरिक्ष यात्रियों को रूस में ट्रेनिंग दी जा रही है.
  • गौरतलब है कि इनमें से आखिरकार तीन अंतरिक्ष यात्रियों को साल 2022 के लिए प्रस्तावित ‘मिशन गगनयान’ के तहत अंतरिक्ष में जाने का मौका मिलेगा.

मील के पत्थर कायम करता इसरो

भारत जैसा विकासशील देश जिसकी आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक स्थितियां बहुत विकट हैं, ने आजादी के बाद सत्तर के दशक में जिस अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) की स्थापना की थी. वो आज अमेरिका, रूस, फ्रांस, चीन, जापान जैसे देशों को कड़ी टक्कर दे रहा है.

  • कम संसाधनों में भी उसने चंद्रयान-1 को चांद पर भेजकर इतिहास रच दिया. बेहद कम लागत में और पहली ही कोशिश में मंगल ग्रह तक पहुंचने में कामयाब होने वाला भारत पहला देश बना. एक साथ रिकॉर्ड 104 सैटेलाइट का प्रक्षेपण कर भारत ने दुनिया के अंतरिक्ष बाजार में लंबी छलांग लगाई.
  • चंद्रयान-2 की आंशिक असफलता से रोवर प्रज्ञान के जरिए चांद की सतह की जानकारी इकट्ठा करने में बेशक बाधा आई, मगर ऑर्बिटर लगातार चंद्रमा से जुड़ी कई जरूरी जानकारियां धरती पर भेज रहा है. इसरो ने साल-दर-साल नए कीर्तिमान स्थापित किए हैं. लेकिन खुद के अंतरिक्षयान से किसी भारतीय को अंतरिक्ष में भेजने का सपना अभी तक पूरा नहीं हुआ है.
क्यों आसान नहीं है इंसान को अंतरिक्ष भेजना?
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अभी तक रूस, अमेरिका और चीन ने ही इंसान को अंतरिक्ष में भेजने में कामयाबी पाई है. हालांकि अगर सब कुछ योजना के मुताबिक हुआ तो भारत भी 2022 तक इंसान को अंतरिक्ष में भेजने की क्षमता रखने वाले देशों की बिरादरी में शामिल हो जाएगा. विश्व की पहली मानवयुक्त अंतरिक्ष उड़ान की उपलब्धि रूस (तत्कालीन सोवियत संघ) को हासिल है. उसने 12 अप्रैल 1961 को ‘वस्तोक-1’ नामक अंतरिक्ष यान से यूरी गागरिन को अंतरिक्ष में भेजकर पूरी दुनिया को हैरान कर दिया था.

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आसान नहीं है इंसान को अंतरिक्ष भेजना

इसके बाद मानवयुक्त अंतरिक्ष उड़ानों का सिलसिला बढ़ा और बाद में अमेरिका और चीन ने भी इस करिश्मे को अंजाम दिया.

अंतरिक्ष में मनुष्य को भेजना कितना मुश्किल काम है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि आखिरी बार चीन ने 2003 में मानवयुक्त अंतरिक्ष यान भेजा था. तब से लेकर अब तक अन्य कोई भी देश मानवयुक्त अंतरिक्ष उड़ान नहीं भर सका है.

अंतरिक्ष यात्रियों को अंतरिक्ष में भेजना और उन्हें सकुशल धरती पर वापस लाना बेहद चुनौतीपूर्ण और मुश्किल काम है. जाहिर है, अगर इस मिशन में इसरो कामयाब हो जाता है, तो वो अंतराष्ट्रीय स्तर पर अपनी स्वदेशी तकनीकी शक्ति का लोहा पूरी दुनिया को मनवा सकता है.

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लाल किले की प्राचीर से मोदी ने किया था मिशन गगनयान ऐलान

15 अगस्त 2018 को स्वतंत्रता दिवस के मौके पर अपने भाषण में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘गगनयान मिशन’ के माध्यम से 2022 में या उससे पहले अंतरिक्ष में भारतीय अंतरिक्ष यात्री भेजने की घोषणा की थी. लाल किले की प्राचीर से उन्होंने कहा था, “जब भारत 2022 में आजादी की 75वीं सालगिरह मना रहा होगा, भारत मां का कोई लाल, चाहे बेटा हो या बेटी तिरंगा लेकर अंतरिक्ष में प्रस्थान करेगा.” हालांकि इसरो काफी लंबे समय से इस काम के लिए अपनी तरफ से लगा हुआ है, मगर प्रधानमंत्री की उस घोषणा ने मानवयुक्त अंतरिक्ष उड़ान की एक निश्चित समयसीमा तय कर दी. साल 2004 में इसरो के ‘ह्यूमन स्पेस फ्लाइट प्रोग्राम’ के अंतर्गत ही मानवयुक्त अंतरिक्ष मिशन की शुरुआत हो गई थी, लेकिन फंडिंग की कमी के कारण इस काम में तेजी नहीं आ पा रही थी. और इस दौरान इसरो की चंद्रयान, मंगलयान, चंद्रयान-2 वगैरह को लेकर काफी व्यस्तताएं थीं. इस लिहाज से यह सही वक्त है कि अब इसरो मानवयुक्त अंतरिक्ष मिशन की दिशा में गंभीरतापूर्वक काम करे. इसके तहत 3 अंतरिक्ष यात्रियों को लोअर अर्थ ऑबिर्ट में 7 दिनों के लिए भेजने की योजना है.

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इसरो का बाहुबली रॉकेट

क्यों आसान नहीं है इंसान को अंतरिक्ष भेजना?
  • गगनयान को अंतरिक्ष में लॉन्च करने के लिए भारी-भरकम सैटेलाइटों को पृथ्वी की कक्षा में स्थापित करने में सक्षम ‘जीएसएलवी मार्क-3’ रॉकेट का उपयोग किया जाएगा. इसका पूरा नाम जिओसिंक्रोनस लॉन्च व्हीकल मार्क-3 है. यह कक्षीय व्हीकल पूरी तरह से स्वदेशी तकनीकी पर आधारित है.
  • जीएसएलवी रॉकेट के तीन मॉडल हैं. इसके मार्क-1 की भार वहन क्षमता (पेलोड का भार) 1.8 टन है, मार्क-2 अपने साथ 2.5 टन भारी सैटेलाइट ले जा सकता है, वहीं मार्क-3 अपने साथ 4 टन वजन के कम्युनिकेशन सैटेलाइट को ले जाने में सक्षम है. अपने आकार और वजन के कारण इसे इसरो का बाहुबली भी कहा जाता है.
  • 14 नवंबर, 2018 को जीएसएलवी मार्क-3 डी2 रॉकेट के जरिए संचार उपग्रह जीसैट- 29 को पृथ्वी की कक्षा में सफलतापूर्वक स्थापित किया गया था. यह दूसरी बार था, जब इसरो ने जीएसएलवी मार्क-3 रॉकेट की सफल लॉन्चिंग की थी. इस तरह यह विकास के चरण से निकलकर ऑपरेशनल चरण में पहुंच गया है.
  • चूंकि इंसान को अंतरिक्ष में भेजने में कोई भी जोखिम नहीं लिया जा सकता इसलिए आने वाले दिनों में अगर जीएसएलवी मार्क-3 का एक भी प्रक्षेपण असफल हुआ, तो अंतरिक्ष में इंसान को भेजने की हमारी इस योजना पर ग्रहण लग सकता है. हालांकि इस दिशा में इसरो के गंभीर प्रयासों पर कोई भी संदेह नहीं किया जा सकता क्योंकि इसरो अब हर तरह की चुनौती को स्वीकारने में सक्षम है.
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भारत का ह्यूमन स्पेस फ्लाइट प्रोग्राम

ह्यूमन स्पेस फ्लाइट प्रोग्राम इसरो का स्वदेशी तकनीकी के माध्यम से भारतीय अंतरिक्ष यात्री को स्पेस में भेजने का एक महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट है. इस प्रोजेक्ट पर इसरो 2004 से काम कर रहा है, लेकिन फंडिंग की कमी की वजह से काम ज्यादा प्रगति पर नहीं था. हालांकि इस दौरान इसरो ने मानव मिशन के लिए अधिकांश जरूरी आधारभूत तकनीकों का विकास और सफलतापूर्वक परीक्षण किया. फिलहाल डॉ. वी.आर. ललिताम्बिका ह्यूमन स्पेस फ्लाइट प्रोग्राम का नेतृत्व कर रही हैं. इससे पहले डॉ. ललिताम्बिका ने विक्रम साराभाई स्पेस सेंटर के उप-निदेशक के पद रहते हुए 104 सैटेलाइट लॉन्च करने वाली टीम का नेतृत्व किया था. इसरो को इस उपलब्धि पर देश-विदेश में काफी सराहना मिली थी.

क्या है मिशन की रूपरेखा?

गगनयान मिशन के तहत इसरो अंतरिक्ष में अपने अंतरिक्ष यात्री भेजेगा, जो कम से कम 7 दिन अंतरिक्ष में बिताएंगे. भारत के इस मानव मिशन में तीन क्रू सदस्य होंगे जिन्हें जीएसएलवी मार्क-3 रॉकेट के जरिए पृथ्वी की निचली कक्षा में भेजा जाएगा. इसरो का यह मानवयुक्त अंतरिक्ष मिशन जटिलता की दृष्टि से, बाकी सभी मिशन जो अब तक संचालित किए गए हैं, से काफी आगे है.

एस्ट्रोनॉट, कॉस्मोनॉट और न ही टैक्नॉट कहलाएंगे भारतीय अंतरिक्ष यात्री

क्यों आसान नहीं है इंसान को अंतरिक्ष भेजना?

गगनयान नामक भारतीय अंतरिक्ष यान का भार 7 टन, ऊंचाई 7 मीटर और व्यास की गोलाई करीब 4 मीटर होगी. गगनयान उन्नत संस्करण डॉकिंग क्षमता से लैस होगा. इसमें एक क्रू मॉड्यूल और सर्विस मॉड्यूल होगा. क्रू मॉड्यूल में तीनों व्योमनॉट्स रहेंगे. जबकि सर्विस मॉड्यूल में तापमान और वायुदाब को नियंत्रित करने वाले उपकरण, लाइफ सपोर्ट सिस्टम, ऑक्सीजन और भोजन सामाग्री होगी.

अंतरिक्ष में इंसान को भेजने की चुनौती

अंतरिक्ष यात्रियों को अंतरिक्ष में भेजना और उन्हें सुरक्षित रूप से धरती पर वापस लाना एक चुनौतीपूर्ण काम है.

क्यों आसान नहीं है इंसान को अंतरिक्ष भेजना?

भेजने और वापस लाने की प्रक्रिया में कई चरण महत्वपूर्ण होते हैं, जैसे क्रू मॉड्यूल की लॉन्चिंग, अंतरिक्ष में निर्धारित काम को करना, वापसी में क्रू मॉड्यूल का स्पलैश डाउन या पैराशूट से पृथ्वी पर उतारना और आखिर में क्रू मॉड्यूल की रिकवरी. स्पेस शटल से अंतरिक्ष यात्रियों को अंतरिक्ष में भेजना और उन्हें वापस लाने की प्रक्रिया बेहद खर्चीली होती है, इसलिए हर देश स्पेस शटल की लागत का वहन करने में सक्षम नहीं होता. ऐसे देश अंतरिक्ष यात्रियों को कैप्सूल के जरिए रॉकेट से अंतरिक्ष में भेजते हैं और वापसी में समुद्र में स्पलैश डाउन करवाकर क्रू मॉड्यूल की रिकवरी करते हैं.

प्लान का ब्लूप्रिंट

  • गगनयान मिशन के तहत 3.7 टन के स्पेस कैप्सूल के भीतर तीनों व्योमनॉट्स को रखा जाएगा और जीएसएलवी मार्क-3 रॉकेट से उसे अंतरिक्ष में लॉन्च किया जाएगा और वह तकरीबन 16 मिनट में अंतरिक्ष की कक्षा में पहुंच जाएगा. इसे धरती की सतह से 300-400 किलोमीटर की दूरी वाली कक्षा में स्थापित किया जाएगा. सात दिन तक कक्षा में रहने के बाद गगनयान धरती की ओर लौटेगा.
  • पृथ्वी की 120 किलोमीटर की ऊंचाई पर क्रू मॉड्यूल सर्विस मॉड्यूल से अलग हो जाएगा. क्रू मॉड्यूल से व्योमनॉट्स अरब सागर या बंगाल की खाड़ी में उतरेंगे. इस संदर्भ में सोवियत संघ के ‘सोयुज टी-11’ यान से अंतरिक्ष में जाने वाले प्रथम भारतीय अंतरिक्ष यात्री राकेश शर्मा के अनुभवों से भी मदद ली जाएगी.
  • मानवयुक्त अंतरिक्ष उड़ान से पहले इसरो दो मानव रहित उड़ान भेजेगा, जिससे तकनीकी और प्रोग्राम मैनेजमेंट जैसे पहलुओं पर विश्वास बढ़ाया जा सके. जैसा कि इस लेख की शुरुआत में बताया जा चुका है कि पहला मानवरहित ट्रायल इसी साल दिसंबर में किया जाएगा.

कम नहीं हैं चुनौतियां

  • जटिलता और महत्वाकांक्षा की दृष्टि से गगनयान मिशन चंद्रयान और मंगलयान से अद्वितीय है. सबसे बड़ी चुनौती व्योमनॉट्स को अंतरिक्ष में भेजने और उन्हें कुछ समय बाद समुद्र में सुरक्षित ढंग से उतारने की है.
  • अंतरिक्ष यात्रा के दौरान अंतरिक्ष यात्रियों को भारहीनता, गुरुत्वाकर्षण में कमी और कृत्रिम श्वास आदि समस्याओं से दो चार होना पड़ता है. इन समस्याओं के मद्देनजर अंतरिक्ष यात्रियों को कुछ विशेष प्राथमिक सुविधाओं की जरूरत होती है. इस तरह की सुविधाओं से लैस अंतरिक्ष यान में यात्रियों को अंतरिक्ष में धरती जैसा माहौल मिलता है. बीते कुछ सालों में इसरो इन प्रौद्योगिकियों में से कुछ को विकसित करने में कामयाब रहा है, लेकिन कई अन्य को अभी भी विकसित करना और और परीक्षण किया जाना बाकी है. प्रौद्योगिकियों में शामिल क्रू एस्केप सिस्टम नामक तकनीक आपातकालीन स्थितियों में क्रू मॉड्यूल में सवार अंतरिक्ष यात्रियों को बचाव सुविधा उपलब्ध कराता है.
  • लाइफ सपोर्ट सिस्टम क्रू मॉड्यूल के अंदर बैठे हुए अंतरिक्ष यात्रियों के लिए सुविधाजनक माहौल मुहैया कराता है. और रीएंट्री एंड रिकवरी तकनीक धरती पर वापसी के दौरान अंतरिक्ष यान को वायुमंडल में प्रवेश कराने के लिए सटीक गति और कोण मुहैया कराती है और अंतरिक्ष यात्रियों को सकुशल और सुरक्षित रूप से धरती पर लाने में मदद करती है.

हर चुनौती को स्वीकारने में सक्षम है इसरो

गगनयान मिशन से जुड़े विशेषज्ञों का मानना है कि मानवयुक्त अंतरिक्ष मिशन की राह में अब हमें ज्यादा मुश्किलों का शायद ही सामना करना पड़े. क्योंकि अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में भारत काफी बेहतर स्थिति में है और इसरो ने अब तक जो भी वादे किए हैं, उनमें से ज्यादातर को निश्चित समय-अवधि में सफलतापूर्वक पूरा भी किया है. इसमें कोई संदेह नहीं है कि इसरो हर चुनौती को स्वीकारता है और उसमें अक्सर वो सफल भी होता है. अब हमें उस दिन का इंतजार है, जब गगनयान से भारतीय अंतरिक्ष यात्री अंतरिक्ष की अनंत संभावनाओं को टटोलने के लिए उड़ान भरेंगे!

(प्रदीप एक साइंस ब्लॉगर और विज्ञान लेखक हैं. वह लगभग 7 सालों से विज्ञान के विविध विषयों पर देश की प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं में लिख रहे हैं. उनकी एक किताब और तकरीबन 150 लेख प्रकाशित हो चुके हैं.)

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