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केंद्र से उलट म्यांमार शरणार्थियों के साथ क्यों खड़ा है मिजोरम?

म्यांमार शरणार्थियों को लेकर केंद्र ने जहां सख्त रुख अपनाया हुआ है, वहीं मिजोरम में उनके लिए समर्थन बढ़ रहा है.

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मिजोरम के मुख्यमंत्री जोरमथांगा ने कुछ दिनों पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मानवीय आधार पर म्यांमार से आए शरणार्थियों को शरण देने का अनुरोध किया था. वहीं, रविवार 21 मार्च को उन्होंने म्यांमार की निर्वासित विदेश मंत्री जिन मार आंग से वर्चुअल मीटिंग रखी. म्यांमार के शरणार्थियों को लेकर केंद्र सरकार ने जहां सख्त रुख अपनाया हुआ है, वहीं मिजोरम और मणिपुर जैसे राज्यों में शरणार्थियों के लिए समर्थन बढ़ रहा है.

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गृह मंत्रालय ने हाल ही में म्यांमार की सीमा से लगने वाले राज्यों- मिजोरम, नागालैंड, मणिपुर और अरुणाचल प्रदेश से कहा था कि म्यांमार नागरिकों की पहचान कर उन्हें वापस भेजा जाए. सीमा सुरक्षा में लगे असम राइफल्स को भी सुरक्षा पुख्ता करने के निर्देश दिए गए हैं.

लेकिन मिजोरम इसके लिए तैयार नहीं है. मिजोरम के मुख्यमंत्री चाहते हैं कि शरणार्थियों को देश में आश्रय दिया जाए. मुख्यमंत्री ने अपने लेटर में लिखा था, “मैं समझ सकता हूं कि विदेश नीति से जुड़े कई मुद्दे होते हैं, जिनपर भारत को सावधानीपूर्वक आगे बढ़ना होता है, मगर हम इस मानवीय संकट को नजरअंदाज नहीं कर सकते.”

मुख्यमंत्री जोरमथांगा ने अपने लेटर में चिन समुदाय का भी जिक्र किया. उन्होंने लिखा कि मिजोरम की सीमा से लगने वाले म्यांमार में चिन समुदाय के लोग रहते हैं, “जो जातीय रूप से हमारे मिजो भाई हैं, और भारत के आजाद होने से पहले से उनसे हमारा संपर्क रहा है. इसलिए मिजोरम आज उनकी तकलीफ से नजरें नहीं फेर सकता.”

कौन हैं चिन समुदाय? मिजोरम से क्या है ताल्लुक?

मुख्यमंत्री ने अपने लेटर में जिस चिन समुदाय की बात की है, वो इंडो-चिन पहाड़ी क्षेत्र के मूल निवासी कहे जाते हैं. द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, करीब 3000 मीटर की ऊंचाई पर उत्तरी-पश्चिमी म्यांमार में बसे इस क्षेत्र में कई जनजातियां रहती थीं. ये सभी Zo समुदाय के अंदर रहती थीं, जिसमें म्यांमार, भारत और बांग्लादेश में फैले चिन-कूकी-मिजो जनजाति के लोग शामिल थे. इसमें कई उप-जनजातियां भी शामिल थीं.

माना जाता है कि इनकी उत्पत्ति चीन में हुई थी. बाद में ये जनजातियों तिब्बत के माध्यम से म्यांमार में बसने चले गए, और तिब्बतो-बर्मन भाषाएं बोलते हैं. लेकिन अलग-अलग जनजातियों और उनके सरदारों के कुलों के बीच लगातार झगड़ों के कारण ये जनजातियां 17वीं शताब्दी में पश्चिम की ओर, मिजोरम और मणिपुर के कुछ हिस्सों में चली गईं. यहां जनजातियों ने नए गांव बसाए, लेकिन अपनी नई पहचान के साथ भी वो म्यांमार की चिन जनजातियों के साथ भावनात्मक रूप से बंधे रहे.

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अब तक कैसे एक-दूसरे से जुड़े रहे मिजोरम और म्यांमार?

भारत-पाकिस्तान या भारत-बांग्लादेश सीमा से अलग, म्यांमार के साथ भारत की सीमा में फेंसिंग (कंटीले तार) काफी कम है. दोनों देश 510 किलोमीटर की बॉर्डर शेयर करते हैं. म्यांमार से 300 से ज्यादा शरणार्थियों के भारत में दाखिल होने की खबरों के बीच, असम राइफल्स को सख्ती बरतने के आदेश दिए गए हैं.

म्यांमार में हाल ही में हुए सैन्य तख्तापलट के बाद से बहुत से पुलिसकर्मियों समेत सैकड़ों शरणार्थी मिजोरम आ चुके हैं. माना जा रहा है कि ये संख्या इससे काफी ज्यादा है.

दोनों देशों के बीच फ्री मूवमेंट रीजिम (FMR) व्यवस्था है, जिससे स्थानीय लोगों को दूसरी तरफ 16 किलोमीटर तक जाने और 14 दिनों तक रहने की अनुमति है. इस व्यवस्था के कारण दोनों तरफ के लोग काम और रिश्तेदारों से मिलने की वजह से दोनों तरफ जाते हैं. दोनों तरफ शादियों का भी आयोजन होता है. मार्च 2020 में कोविड के चलते इस व्यवस्था को रोक दिया गया था.

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मिजोरम और म्यांमार के बीच बिजनेस

बिजनेस की बात करें तो मिजोरम कई चीजों के लिए काफी हद तक म्यांमार पर निर्भर रहता है. इसमें से फल, चावल जैसी रोजाना की जरूरतें भी शामिल हैं. वहीं, मिजोरम दवाई और खाद जैसी चीजों को म्यांमार भेजता है. दोनों देशों के बीच चंपई में एक सड़क का भी निर्माण हो रहा है.

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क्यों शरणार्थियों के साथ खड़ा है मिजोरम?

भले ही चिन समुदाय के लोगों के बीच अब भारत और म्यांमार की सीमा आ गई है, लेकिन इसके बावजूद वो खुद को एक ही समुदाय मानते हैं. इंडो-चिन लोगों के साथ होने की एक वजह धर्म भी है. मिजोरम क्रिश्चियन बहुल है, और म्यांमार में रहने वाले चिन समुदाय के लोग भी.

मिजोरम के अधिकारियों ने शरणार्थियों की स्थिति का उल्लेख एक ईसाई अल्पसंख्यक लोगों के रूप में किया है, जो उनके लिए शरण की मांग कर रहे हैं, और साथ ही जुंटा द्वारा उत्पीड़न का डर भी है.

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शरणार्थियों को लेकर भारत सरकार की पॉलिसी?

भारत के पास शरणार्थियों को लेकर कोई कानून नहीं है, और न ही भारत 1951 के संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन और 1967 के शरणार्थियों की स्थिति से संबंधित प्रोटोकॉल का हिस्सा है.

साल 2011 में, केंद्र ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में शरणार्थियों के होने का दावा करने वाले विदेशी नागरिकों से निपटने के लिए एक SOP शुरू किया था.

इसके तहत, एक अवैध अप्रवासी एक विदेशी नागरिक हो सकता है जो वैध यात्रा दस्तावेजों पर भारत में प्रवेश करता है और उसकी तारीख के बाद भी भारत में रहता है. बिना वैध दस्तावेजों के भारत में घुसने वाला विदेशी नागरिक भी अवैध अप्रवासी है. भारत में शरणार्थियों को लॉन्ग टर्म वीजा (LTV) देने का भी प्रावधान है, लेकिन उसके लिए अलग प्रक्रिया है.

फॉरनर्स एक्टर 1946 के सेक्शन 3(2)(c) के तहत, केंद्र सरकार किसी भी विदेशी नागरिक को डिपोर्ट कर सकती है. नागरिकों को पहचानने और डिपोर्ट करने का अधिकार राज्यों, केंद्र शासित प्रदेशों और गृहमंत्रालय के ब्यूरो ऑफ इमिग्रेशन के पास है. सीमा पर घुसपैठ करने वाले अवैध प्रवासियों को तभी वहीं से वापस भेजा जा सकता है.

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मिजोरम में म्यांमार के समर्थन में प्रदर्शन

मिजोरम में बड़ी संख्या पर म्यांमार से आए शरणार्थियों के लिए समर्थन की आवाजें उठ रही हैं. 3 फरवरी को छात्र संगठन, मिजो जिरलई पॉल ने आईजोल में म्यांमार के लोगों के साथ एकजुटता दिखाते हुए प्रदर्शन किया. गांव में भी कई मिजो ग्राम परिषद अधिकारियों ने चिन शरणार्थियों को शरण देने की इच्छा व्यक्त करते हुए बयान जारी किए हैं. 24 फरवरी को, मुख्यमंत्री ने विधानसभा में आश्वासन दिया कि राज्य सरकार म्यांमार से भागकर आए नागरिकों को सहायता देने के लिए तैयार रहेगी.

वहीं, मणिपुर में भी शरणार्थियों के लिए सपोर्ट देखा जा रहा है. कुछ दिनों पहले, मणिपुर सीएम बीरेन सिंह ने द हिंदू से कहा था कि राज्य सरकार द्वारा “म्यांमार के शरणार्थियों” के लिए स्कूलों की व्यवस्था की जा सकती है, लेकिन क्योंकि ये एक द्विपक्षीय मुद्दा था, इसलिए वो गृह मंत्रालय के निर्देशों का इंतजार कर रहे थे.

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