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मोदी कैबिनेट: एक तीर से कई निशाने साध रही BJP,हर नाम का है खास काम

मंत्रियों के नाम और काम को देख साफ है अब सरकार में भी मोदी-शाह की जोड़ी हिट है

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मोदी की नई कैबिनेट को आप बीजेपी और पीएम का एक और मास्टर स्ट्रोक कह सकते हैं. इसे बहुत बारिकी से गढ़ा गया है. मंत्रियों के चुनाव से लेकर मंत्रालयों के बंटवारे तक में इस बात का ख्याल रखा गया है कि सबकुछ बीजेपी के बड़े एजेंडे के मुताबिक ही हो. दो-तीन बातें एकदम साफ समझ आती हैं. कैबिनेट बनाने में बीजेपी के विजय रथ के लिए रास्ता बनाया गया है, अपने वोट बैंक को संदेश देने की कोशिश की गई है. मेहनत करने वाले काडर को इनाम दिया गया है और टैलेंट की भी कद्र की गई है. मोदी के नाम पर चुनाव लड़ा गया तो सत्ता का केंद्र भी वहीं रखने की कोशिश लगती है.

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बीजेपी का ‘मिशन इंडिया’ यहां भी जारी

मोदी सरकार ने कैबिनेट में बर्थ और विभागों के बंटवारे में इस बात का ख्याल रखा है कि चुनाव कहां होने वाले हैं. साथ ही अपने ‘मिशन इंडिया’ यानी देश में जहां बीजेपी के पैर नहीं फैले हैं, वहां पर भी नजर रखी है. 80 सीटों वाले यूपी को 9 मंत्री मिले हैं लेकिन 48 सीटों वाले महाराष्ट्र को 8 मंत्री मिले हैं. ये अहम है क्योंकि महाराष्ट्र में इसी साल चुनाव हैं. चुनावी राज्यों झारखंड को 2 और हरियाणा को भी 3 मंत्री दिए गए हैं.

तेलंगाना में बीजेपी ने पहली बार चार सीटें जीती हैं. इस लिहाज से कैबिनेट में जी किशन रेड्डी को जगह देना तेलंगाना में बीजेपी की विस्तार योजना का हिस्सा माना जा सकता है.

कर्नाटक बीजेपी के लिए दक्षिण का एंट्री  गेट है. इस बार कर्नाटक में बीजेपी ने 28 में से 25 सीटें जीती हैं. इसका कैबिनेट में साफ असर दिख रहा है. कर्नाटक को चार मंत्री मिले हैं.

अनंत हेगड़े को कैबिनेट से बाहर रखा गया है लेकिन माना जा रहा है कि कर्नाटक में आखिरी कील ठोंकने के लिए अनंत का इस्तेमाल राज्य में किया जाएगा. वैसे भी वहां जेडीएस-कांग्रेस गठबंधन की सरकार डांवाडोल है तो वहां बड़े नेताओं की जरूरत पड़ सकती है.

केरल - कैबिनेट से बाहर रखे गए केजे अल्फोंस का भी यही किस्सा हो सकता है. केरल के बीजेपी अध्यक्ष वी मुरलीधरन को महाराष्ट्र कोटे से राज्यसभा सांसद बनाकर कैबिनेट में जगह दी गई. कहने को केरल से कोई मंत्री नहीं हैं लेकिन मुरलीधरन के रूप में महाराष्ट्र के साथ ही केरल को भी साधने की कोशिश दिख रही हैै. तमिलनाडु और आंध्र से कोई मंत्री नहीं है.

तमिलनाडु AIADMK के अकेले सांसद तमिलनाडु के डिप्टी सीएम रवींद्रनाथ कुमार को सरकार में शामिल न करने के पीछे लॉजिक समझ से परे है क्योंकि राज्य में बीजेपी का सूपड़ा साफ है, ऐसे में कुमार को मौका देकर राज्य में पार्टी खुद के लिए मौके तैयार कर सकती थी.

पंजाब की पतली हालत देख मोदी सरकार ने वहां से तीन मंत्रियों को जगह दी है. एक तो अकाली दल से हरसिमरत हैं और दो हरदीप पुरी और सोम प्रकाश हैं. एनडीए में वहां से सिर्फ चार सांसद जीते हैं.

‘...वसुंधरा तेरी खैर नहीं’

राजस्थान का किला छिन जाने से चिंतित बीजेपी लोकसभा चुनाव में जीतने के बाद वहां जोश में है. राजस्थान की कांग्रेस सरकार में सबकुछ अच्छा नहीं चल रहा. मौका मिले तो तैयारी पूरी लगती है. याद कीजिए चुनाव के वक्त राजस्थान का नारा - 'मोदी तुझसे बैर नहीं, वसुंधरा तेरी खैर नहीं.' राजस्थान के गजेंद्र सिंह शेखावत को राज्यमंत्री से कैबिनेट मंत्री बनाकर राजस्थान में वसुंधरा को साफ संकेत दिए गए हैं. शेखावत को वसुंधरा के विरोधी खेमे का माना जाता है. इसी राज्य से आने वाले राज्यवर्धन सिंह राठौड़ को केंद्र में कोई जिम्मेदारी न देना चौंकाता है. लेकिन ये भी हो सकता है कि उन्हें राजस्थान की कमान सौंपी जाए.

दिल्ली की सल्तनत केजरीवाल से छीनने के लिए बीजेपी ने पूरी गोटी सेट कर ली है. लोकसभा चुनावों में पार्टी ने सभी सात सीटें जीती हैं लेकिन दिल्ली से सिर्फ एक सांसद डॉ. हर्षवर्धन को कैबिनेट में जगह दी गई है.

मनोज तिवारी को शायद कैबिनेट में जाने की उम्मीद होगी लेकिन हो सकता है पार्टी ने उनके लिए कुछ बड़ा सोच रखा हो. एक विकल्प ये हो सकता है कि अगले साल चुनाव में उन्हें मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार बना दिया जाए. दिल्ली से विजय गोयल भी मंत्रिमंडल में नहीं हैं. उन्होंने चुनाव भी नहीं लड़ा था लेकिन इन सबके पीछे प्लान ये हो सकता है कि विधानसभा चुनाव में उनकी अहम भूमिका रखी जाए.

नॉर्थ ईस्ट से सिर्फ दो मंत्री अरुणाचल से किरन रिजिजू और रामेश्वर तेली असम से हैं. हालांकि किरन रिजिजू को राज्यमंत्री के बजाय स्वतंत्र प्रभार देकर प्रमोट किया गया है. 

बंगाल से बेगानापन?

बंगाल से दो मंत्रियों को कैबिनेट में जगह दी गई है. एक हैं पिछली बार भी मंत्री रहे बाबुल सुप्रिय और दूसरी देबोश्री चौधुरी. दोनों राज्यमंत्री बनाए गए हैं. 2016 में गिरफ्तार हो चुकीं बंगाल बीजेपी की महासचिव देबोश्री को कड़ी मेहनत का इनाम दिया गया. बंगाल का मामला जरूर चौंकाने वाला है क्योंकि जिस तरह से बीजेपी ने वहां अपनी टैली 2 से बढ़ाकर 18 की, उससे उम्मीद थी कि वहां के बीजेपी नेताओं को इनाम मिलेगा. लेकिन पीएम मोदी सरप्राइज न दें, हो नहीं सकता. बंगाल के साथ इस बेगानेपन की असल वजह ये हो सकती है कि अगर जमीन पर काम कर रहे नेता दिल्ली में बैठ जाएंगे तो वहां मिशन 2021 के लिए जमीन पर कौन काम करेगा?

नीचे मैप पर क्लिक कर जानें किस राज्य को कितने मंत्री मिले

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सरकार में भी मोदी-शाह की जोड़ी सबपर भारी

राजनाथ सिंह ने दूसरे नंबर पर शपथ जरूर लिया लेकिन गृह मंत्रालय का अहम मंत्रालय उनसे लेकर अमित शाह को दिया गया है. ये जरूर है कि पार्टी में राजनाथ के कद को देखते हुए उनके जिम्मे डिफेंस का काम दिया गया है.

अब तक डिफेंस देख रहीं निर्मला सीतारमण अब वित्त विभाग देखेंगी. जेटली के बाद ये मंत्रालय वो किस तरह संभालती हैं, देश के सामने खड़ी आर्थिक चुनौतियों का किस तरह सामना करती हैं? ये देखना होगा.

-नितिन गडकरी के काम को पिछले पांच साल सराहा गया, वो अपनी जगह पर बने हुए हैं, लेकिन तरक्की नहीं मिली.

- पीयूष गोयल को फिर रेल चलाने का जिम्मा मिला है. ये भी उन मंत्रियों में से हैं जिनके काम की तारीफ होती रही है. जेटली और सुषमा स्वराज के जाने के बाद शायद उन्हें प्रमोशन की आस होगी, जो पूरी न हुई. चर्चा भी थी की जेटली के जाने के बाद उन्हें वित्त मंत्रालय का काम दिया जा सकता है.

अमेठी में राहुल गांधी को हराकर बीजेपी का सीना चौड़ा करने वाली स्मृति ईरानी पिछली सरकार में मानव संसाधन, सूचना प्रसारण जैसे अहम विभाग संभाल चुकी हैं, लेकिन इस बार उन्हें महिला और बाल विकास के साथ ही टेक्सटाइल विभाग का काम दिया गया है.

संतोष गंगवार को सीनियर मोस्ट होने के बावजूद श्रम और रोजगार का राज्यमंत्री बनाया गया है.

सहयोगी पार्टियों को भी दो टूक

महाराष्ट्र में एनडीए को 18 सीटें देने वाली शिवसेना से सिर्फ अरविंद सावंत को कैबिनेट में जगह देना कल बीजेपी-शिवसेना के बीच कलह की वजह हो सकती है. याद कीजिए पिछले पांच साल में शिवसेना लगातार एनडीए सरकार की आलोचना करती रही. लेकिन बीजेपी को इसकी चिंता नहीं. अकेले 303 सीटें जीतने से इतना कॉन्फिडेंस तो आता ही है.

बिहार में 16 सीटें जीतने वाली JDU की भी एक न चली. उसे सरकार से बाहर रहना पड़ा है. यूपी के ‘अपना दल’ को पिछली बार की तरह अपनापन न मिला. अनुप्रिया पटेल कैबिनेट से बाहर हैं. कुल मिलाकर गठबंधन को मैसेज यही दिया गया है कि आपका स्वागत है लेकिन जरूरत नहीं है.

कैबिनेट के नामों और बांटे गए कामों को देख एक बात जरूर लगती है कि अब सरकार में भी मोदी-शाह की जोड़ी ही हिट है.   
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कैबिनेट में कहां है सबका साथ-सबका विकास?

मोदी कैबिनेट में 32 अगड़े, 13 OBC,1 मुस्लिम, 3 महिला और और सिर्फ 6 दलित मंत्री हैं. कम से कम कैबिनेट में जातिगत हिस्सेदारी के लिहाज से ये सबका साथ सबका विकास नहीं है. 57 मंत्रियों की टीम में सिर्फ तीन अल्पसंख्यक हैं. मुख्तार अब्बास नकवी, हरसिमरत कौर बादल और हरदीप पुरी. यानी ज्यादातर मंत्री या तो अगड़े हैं या फिर ओबीसी. आर्थिक रूप से कमजोर अगड़ों को दस फीसदी आरक्षण देने के बाद ये दूसरा बड़ा और साफ संदेश हो सकता है.

भूमिहार जाति से आने वाले गिरिराज को तरक्की देकर बीजेपी ने यूपी-बिहार के अपने वोट बैंक को मैसेज दिया है. प्रभावी जातियों को भी साधने की कोशिश है. नित्यानंद राय उस यादव जाति से हैं जिनका बिहार में अच्छा दबदबा है. विदर्भ से दोत्रो संजय शामराव को मंत्री बनाकर मराठाओं को टारगेट किया गया है.

अहीर जाति से आने वाले राव इंद्रजीत सिंह को राज्यमंत्री से ऊपर स्वतंत्र प्रभार देकर हरियाणा में बीजेपी ने अपने नॉन जॉट पॉलिटिक्स को आगे बढ़ाया है. इसी के तहत हरियाणा से ही किशन पाल गुर्जर को सामाजिक न्याय का राज्यमंत्री बनाया है.

हिंदुत्व का एजेंडा जारी आहे

प्रह्लाद जोशी को संसदीय मामलों और कोयला मंत्रालय देकर हिंदुत्व एजेंडे के वोट बैंक को साफ संदेश देने की कोशिश हुई है. प्रह्लाद RSS में रह चुके हैं. ये कर्नाटक में पकड़ मजबूत बनाने के लिहाज से भी अहम है.  इसी कड़ी में आप साध्वी निरंजन ज्योति को भी जोड़ सकते हैं. पोलराइजेशन की राजनीति के लिए मशहूर हो चुके वेस्टर्न यूपी से संजीव बालियान को पशुपाल राज्यमंत्री बनाया गया है. संजीव बालियान उसी मुजफ्फरनगर से जीतकर आए हैं जहां दंगे भड़के थे और उनपर केस भी हुआ था.

एक दूसरे मंत्री नित्यानंद और वी मुरलीधरन का भी कनेक्शन ABVP से रहा है. आप बिहार के गिरिराज सिंह और नॉर्थ कर्नाटक के बेलगाम से आए सुरेश अंगाड़ी और ओडिशा से आए प्रताप सारंगी को भी आप इसी कैटेगरी में रखकर देख सकते हैं. 

303 को हजारों सलाम

कैबिनेट का कॉम्बिनेशन देख ये तो साफ हो जाता है कि कम से कम तीन राज्यों में प्रदेश अध्यक्ष बदलेंगे. लेकिन ये भी संदेश है किन इन राज्यों में शानदार प्रदर्शन के लिए अध्यक्षों को इनाम दिया गया है. बिहार, महाराष्ट्र और यूपी बीजेपी अध्यक्षों को कैबिनेट में जगह दी गई है. चंदौली से जीत कर आए यूपी बीजेपी चीफ महेंद्र नाथ पांडे को कैबिनेट मंत्री बनाया गया है. बिहार बीजेपी के अध्यक्ष नित्यानंद राय को भी राज्य मंत्री बनाया गया है. पार्टी ने राज्य में 17 सीटों पर चुनाव लड़ा और सारी जीती. खास बात ये है कि नित्यानंद राय ने उजियारपुर से उस उपेंद्र कुशवाला हो हराया जो पिछली सरकार में एनडीए के सहयोगी थे. बीजेपी ने महाराष्ट्र में 48 में से 23 सीटी जीतीं और एनडीए के हिस्से में आईं 41 सीटें. लिहाजा महाराष्ट्र चीफ रावसाहेब पाटिल दानवे को भी राज्यमंत्री बनाया गया है.

प्रताप सारंगी, देबोश्री चौधरी आदि जैसे चेहरे इसी बात की गवाही दे रहे हैं कि पार्टी के लिए काम करने वाले कर्मठ कार्यकर्ताओं का पार्टी ने ख्याल रखा है. ओडिशा के बालासोर सीट से जीतकर आए प्रताप सारंगी इस  कैबिनेट में आर्थिक रूप से सबसे गरीब मंत्री होंगे. इन्हें ‘ओडिशा का मोदी’’ भी कहा जाता है. तो बांस की झोपड़ी में रहने वाले सारंगी को मंत्री बनाकर ‘चाय वाला बना पीएम’ के नेरेटिव ही आगे बढ़ाया गया है.मैसेज साफ है बीजेपी में कोई भी ऊपर पहुंच सकता है.
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कैबिनेट और सरप्राइज

एस जयशंकर और हरदीप पुरी कैबिनेट के सरप्राइज पैकेज हैं. पूर्व विदेश सचिव एस जयशंकर की वाइल्ड कार्ड एंट्री हुई है. उन्हें सीधे विदेश मंत्रालय की जिम्मेदारी दी गई है. उधर चुनाव हारने वाले हरदीप पुरी को नागरिक उड्डयन और शहरी-आवास मंत्रालय का स्वतंत्र प्रभार दिया गया है. साथ ही कॉमर्स मिनिस्ट्री का राज्यमंत्री भी बनाया गया है. तो मोदी जी ने सबको चौंकाते हुए अपनी टीम में दो टक्नोक्रेट भी रखें हैं. यानी टैलेंट की भी कद्र हुई है.

कैबिनेट में सबसे कम उम्र के मंत्री कैलाश चौधरी हैं जिनकी उम्र 35 साल है. स्मृति 43 की हैं तो सबसे उम्रदराज मंत्री हैं राम विलास पासवान, पासवान को छोड़ सारे मंत्री ऐसे हैं जिनका जन्म आजादी के बाद हुआ है.

मेनका गांधी का कैबिनेट से गायब होना पार्टी से उनके मतभेदों का नतीजा हो सकता है. हालांकि मेनका और जेपी नड्डा दोनों को बड़ी जिम्मेदारियां दी जा सकती हैं. मेनका को संसद में तो नड्डा को पार्टी में.

ये हैं मंत्रियों के नाम और उनके विभाग

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