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टेरर फंड,आतंकवाद,उग्रवाद पर भी लगाम न कस सकी मोदी सरकार की नोटबंदी

नोटबंदी के वक्त प्रधानमंत्री ने ये भी कहा था कि इस फैसले के बाद आतंकवाद की तो कमर टूट जाएगी

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भारत
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब 8 नवंबर 2016 को रात 8 बजे नोटबंदी पर देश को संबोधित कर रहे थे. उस वक्त प्रधानमंत्री ने ये भी कहा था कि इस फैसले के बाद आतंकवाद, उग्रवाद की तो कमर टूट जाएगी. इसके बाद भी सरकार और सरकार के कई मंत्री इसी दावे को अलग-अलग जगह दोहराते रहे. लेकिन क्या इन दावों में कोई सच्चाई है? या आतंक की नहीं, इन दावों की कमर टूट चुकी है? ताजा हालात तो नोटबंदी के आतंकवाद और टेरर फंडिंग खत्म करने के मकसद को भी नकारते हैं.

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पुलवामा में बीते 14 फरवरी को सीआरपीएफ के 40 जवानों को शहादत देनी पड़ी. लेकिन अपने अंदर की खामियां ढूंढने के बजाय, हम उन्माद में डूब गए हैं.

नोटबंदी के वक्त ये नैरेटिव भी चलन में था कि 'सीमा पर जवान अपनी जान से देने से नहीं हिचक रहा है और हमें लाइन में खड़े होने में दिक्कत हो रही है'. कहा गया था कि उन जवानों की मदद करने और आतंक को कम करने के मकसद से नोटबंदी लाई गई है. अब वही जवान फिर शहीद हो रहे हैं, और नोटबंदी के वक्त लोगों का दर्द तो वापस लौटाए नहीं जा सकता. ऐसे में न माया मिली न राम वाले हालात में आम आदमी ठगा सा महसूस करने के अलावा और क्या कर सकता है?

टेरर फंडिंग और आतंकी घटनाएं बढ़ी हैं, कम नहीं हुईं

नोटबंदी के वक्त प्रधानमंत्री ने ये भी कहा था कि इस फैसले के बाद आतंकवाद की तो कमर टूट जाएगी
(इंफोग्राफिक्स: कनिष्क दांगी/ क्विंट हिंदी)

लोकसभा में पेश सरकारी आंकड़े बताते हैं, 2016 के नवंबर में हुई नोटबंदी के बाद साल 2017 और साल 2018 में आतंकी घटनाएं बढ़ी हैं. जहां 2016 में 322 आतंकी घटनाएं हुईं थी. ये आंकड़ा 2017 में बढ़कर 342 और 2018 में बढ़कर 614 हो गया. वहीं सुरक्षाबलों की शहादत में भी कोई खास कमी नहीं आई है. साल 2016 में 82 जवान शहीद हुए, 2017 में ये आंकड़ा 80 था और 2018 में ये आंकड़ा बढ़कर 91 हो गया. कुल मिलाकर आतंकी को ज्यादा ढेर हुए हैं लेकिन जवानों की शहादत और नागरिकों की मौत में भी कमी नहीं आई है.

नक्सली घटनाओं में भी कोई कमी नहीं

नोटबंदी के वक्त प्रधानमंत्री ने ये भी कहा था कि इस फैसले के बाद आतंकवाद की तो कमर टूट जाएगी
(इंफोग्राफिक्स: कनिष्क दांगी/ क्विंट हिंदी)

मार्च, 2018 में सुकमा में हुए बड़े नक्सली हमले में 9 सीआरपीएफ जवान शहीद हो गए थे. इससे ठीक एक साल पहले मार्च, 2017 में सीआरपीएफ के ही 12 जवान शहीद हुए थे. अब आंकड़ों में देखें तो जहां साल 2016 में 262 घटनाएं हुईं थी, 2017 में ये आंकड़ा 199 और 2018 में 217 का रहा. 2016 में जहां 60 सुरक्षाबल शहीद हुए थे, 2017 में शहादत का ये आंकड़ा बढ़कर 76 हो गया. 2018 में 73 सुरक्षाबल के जवान शहीद हुए.

नोटबंदी के वक्त प्रधानमंत्री ने ये भी कहा था कि इस फैसले के बाद आतंकवाद की तो कमर टूट जाएगी
सांकेतिक तस्वीर (फोटो: पीटीआई)
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अब इन मौत के आंकड़ों में नया आंकड़ा 2019 का जुड़ गया है, 14 फरवरी को आतंकी हमले में 40 जवान शहीद हो गए. 50 किलो से ज्यादा विस्फोटक से भारी गाड़ी को सीआरपीएफ के काफिले से में घुसा दिया गया. टेरर फंडिंग के बिना ये कैसे संभव है. अब पाकिस्तान की तरफ से बढ़ती टेरर फंडिंग के कारण ही FATF की अगली बैठक में भारत पाकिस्तान को ब्लैकलिस्ट करने के लिए दबाव बनाएगा, जिससे पड़ोसी देश के खिलाफ कार्रवाई की जा सके.

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