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Morbi में अपने परिवार के 4 सदस्यों को खोने के बाद उनके शवों को ढूंढने की कहानी

गुजरात में माच्छू नदी पर पुल गिरने से मरने वालों में अशोक भिंडी के रिश्तेदार भी शामिल थे.

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गुजरात (Gujarat) के मोरबी (Morbi Bridge Collapse) में हुए हादसे के जख्म अब तक भर नहीं पाए हैं. सस्पेंशन ब्रिज टूटने से अब तक 135 लोगों की मौत हो चुकी है. जो उस हादसे में बचे रह गए वह भी उस खौफनाक मंजर को अब तक भूल नहीं पाए हैं.

क्विंट से बातचीत में मोरबी पुल ढहने की त्रासदी में अपने परिवार के चार सदस्यों को खोने वाले अशोक भिंडी ने कहा,

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"डॉक्टर ने हमें बताया कि और भी लाशें आ चुकी हैं, जिनकी अभी पहचान नहीं हो पाई है, और उनमें कई महिलाएं भी हैं. मैं और मेरा बेटा मेरी भाभी की तलाश में गए और कुछ देर ढूंढ़ने के बाद, हमें आखिरकार वो मिल गईं. हमें उनका शव सुबह करीब 2 बजे मिला और 4 बजे घर गया.

उनके चाचा के बेटे, यानी उनके चचेरे भाई भावेश मनसुखभाई भिंडी (40), भावेश मनसुखभाई भिंडी की पत्नी मीता भावेश भिंडी (36), और दो बच्चे निसर्ग (8) भिंडी और ध्रुवी भिंडी (15), उन लोगों में से थे, जिनकी उस वक्त मौत हो गई थी जब मच्छू नदी 30 अक्टूबर को वो हादसा हुआ था.

पुल पिछले महीनों से बंद था और गुजराती नव वर्ष के दिन 26 अक्टूबर को जनता के लिए फिर से खोल दिया गया था. भिंडी उस दिन अपने चचेरे भाई से आखिरी बार मिले थे.

हैंगिंग ब्रिज की मरम्मत करने वाली एजेंसी और उसके प्रबंधन के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई है.अहमदाबाद स्थित ओरेवा समूह के नौ लोगों को अब तक गिरफ्तार किया जा चुका है.

'आसान नहीं था शवों को ढूंढ़ना' 

अशोक भिंडी ने टीवी पर खबर देखते हुए पुल की खबर सुनी. क्विंट से बात करते हुए उन्होंने कहा, "मुझे लगा कि हमारा भाई वहां है, वह मोरबी में रहता है. मैंने उसे फोन किया, लेकिन फोन नहीं लगा. मैंने उसकी पत्नी और फिर उसकी बेटी को भी फोन किया, लेकिन सभी का फोन स्विच ऑफ था. मैं उसके बारे में जानना चाहता था."

भिंडी परिवार के घर के बगल में रहने वाले एक दोस्त ने अशोक भिंडी को बताया कि परिवार पुल देखने गया था और यहां तक ​​कि उन्होंने उनसे भी पूछा था कि क्या वह और उसका परिवार साथ आना चाहता है.

"हमने सुना कि लोगों को सिविल अस्पताल ले जाया जा रहा था. इसलिए, मैं और मेरा बेटा अपनी बाइक लेकर गए और सीधे अस्पताल गए. भारी भीड़ थी, और मैंने अपने चचेरे भाई और उसके परिवार के अपने फोन पर सभी को तस्वीरें दिखाईं"
अशोक भिंडी

अशोक भिंडी को पता था कि अस्पताल में शवों का आना बंद नहीं होगा और ऐसे में उनके और उनके बेटे के लिए परिवार को खोजने का एक कठिन काम था. उन्हें जो पहला शव मिला वह उनके चचेरे भाई का था.

"डॉक्टरों को वास्तव में यह देखकर राहत मिली कि किसी ने शव की पहचान कर ली है. उन्होंने मुझसे पूछा कि क्या इनके साथ कोई और है, और मैंने कहा, हां, उनकी एक पत्नी और दो बच्चे हैं. मुझे उन्हें ढूंढना होगा।"
अशोक भिंडी

आखिर उन्हें दोनों बच्चों के शव मिले, लेकिन मां के बारे में अभी भी कोई खबर नहीं थी.

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मीता भिंडी के शव की तलाश 

अशोक भिंडी कहते हैं कि, "हमने हर जगह खोजा, लेकिन कोई मदद नहीं मिली. फिर एक अन्य डॉक्टर ने मुझसे पूछा कि क्या हुआ. मैंने कहा कि मुझे अपने परिवार के तीन सदस्य मिले हैं, लेकिन मां का कोई पता नहीं है."

उस डॉक्टर ने अशोक भिंडी को सुझाव दिया कि शायद वह किसी और अस्पताल में है, जैसे मोरबी में कृष्णा मल्टीस्पेशलिटी अस्पताल, लेकिन तभी एक और डॉक्टर आया और उसने बताया कि सिविल अस्पताल में अभी-अभी अज्ञात शवों का एक नया सेट आया है.

"डॉक्टर ने हमें बताया कि शवों का एक नया सेट आ गया है, जिनकी पहचान अभी बाकी है, और उनमें से कई महिलाएं थीं. मैं और मेरा बेटा वहां उसकी तलाश करने गए और कुछ देर ढूंढ़ने के बाद, हमने आखिरकार उन्हें मृत पाया. हमें उनका शव सुबह करीब दो बजे मिला और सुबह करीब चार बजे घर चले गए."
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'गुजराती नव वर्ष के लिए बस एक हफ्ते पहले हुई आखिरी मुलाकात'

उन्होंने आगे कहा- "हम एक-दूसरे से फंक्शन के लिए मिलते थे या अक्सर काम पर एक-दूसरे की मदद करते थे. और वह अक्सर हमारे घर पर भी खाना खाते थे. मैं उनसे आखिरी बार सिर्फ एक हफ्ते पहले गुजराती नव वर्ष (बुधवार, 26 अक्टूबर) के लिए मिला था. और हम अपने गांव मानेकवाड़ा में एक साथ प्रार्थना करने गए थे. मैंने उनसे कहा कि यह नया साल है और उन्हें हमारे घर आना चाहिए, लेकिन उन्होंने कहा कि वह रविवार को आएंगे. वह हमेशा रविवार को, करीब 4 बजे आते थे, या शाम के 5 बजे वह खाकर चले जाते. लेकिन किसे पता काश वह इस रविवार हमारे घर आया होता, तो जीवित होता"

भिंडी ने आगे कहा कि उसके भाई की पत्नी ब्यूटी पार्लर या टेलरिंग जैसे छोटे-मोटे काम करती थी.

"बच्चों के साथ भी हमारा बहुत अच्छा रिश्ता था. उसका बेटा, केवल आठ साल का था और यहां आकर हर समय हमारे साथ खेलता था. वह कहता था, 'बाबू मुझे खाना दो,' एक बहुत प्यारा लड़का था, हम उसके साथ खूब मस्ती करते थे. वह और बच्चों की तरह ही खेलता और उछलता-कूदता रहता था"
अशोक भिंडी

भावेश भिंडी की बेटी भी बहुत छोटी थी, जो 15 साल की आठवीं कक्षा की छात्रा थी. "ध्रुवी अपनी पढ़ाई में भी बहुत अच्छी थी. वह पढ़ती थी और घर के कुछ काम करती थी, और घर पर अपनी ,मां की मदद करती थी, खाना बनाती या कपड़े धोती थी. एक बहुत ही शांत लड़की थी. वह मुझे 'अदा' और 'भाजी' कहती थी. वह हमारे लिए चाय भी बनाती थी."

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'बहुत अच्छा सामूहिक प्रयास': अस्पताल में भिंडी का अनुभव

अस्पताल के दृश्यों के बारे में बात करते हुए, अशोक भिंडी ने कहा कि सभी फील्ड के लोग बचाव प्रयासों में शामिल होने के लिए एक साथ आए थे. "वहां पुलिस अधिकारी, डॉक्टर और यहां तक कि स्थानीय युवा भी थे, जो लोगों को बचाने और बचे लोगों की सहायता के लिए एक साथ आए थे. यह एक बहुत अच्छा सामूहिक प्रयास था."

उन्होंने कहा कि अस्पताल में इतने लोग थे कि चलने के लिए भी जगह नहीं थी

"लेकिन सभी वालंटियर्स और डॉक्टरों ने वास्तव में मेरी मदद की. जब मैंने उन्हें बताया कि मुझे अपने चचेरे भाई की पत्नी नहीं मिल रही है, तो उन्होंने मुझे आश्वस्त किया और मुझे चिंता न करने के लिए कहा, और कहा कि वे मेरे लिए सभी को ढूंढ लेंगे. मैं बहुत चिंतित था, सोच रहा था कि वह मर गई या जीवित. फिर भी, सभी ने हमारी बहुत मदद की, वे सभी बेहद दयालु और मददगार थे."

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