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हिजाब विवाद:कैसे दक्षिणपंथी ब्रिगेड ने गंगा जमुना स्कूल को बंद करने की साजिश रची

Hijab Row: दमोह प्रशासन ने नाम क्लियर कर दिया था, इसके बावजूद स्कूल हिंदुत्व की राजनीति में कैसे फंस गया?

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भारत
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यह आर्टिकल हमारे द्वारा मध्य प्रदेश के दमोह में की गई कवरेज का हिस्सा है, जहां हिजाब विवाद के बाद इंग्लिश मीडियम स्कूल गंगा जमुना को बंद करने से एक हजार से अधिक बच्चों का भविष्य खतरे में पड़ गया है. हम आपके लिए दमोह से ग्राउंड रिपोर्ट लाते रहेंगे, लेकिन हमें आपकी सहायता की भी जरूरत होगी. क्विंट के मेंबर बनिए और हमारी पत्रकारिता को सपोर्ट कीजिए.

'हिजाब' विवाद की वजह से मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) के दमोह जिले के फुटेरा क्षेत्र में स्थित गंगा जमुना स्कूल को बंद किए जाने के बाद, भारतीय जनता पार्टी (BJP) के एक स्थानीय नेता ने नाम न छापने की शर्त पर यह स्वीकार किया है कि "हिंदुत्व के झंडे के साथ आगे बढ़ने वालों ने अपने व्यक्तिगत और राजनीतिक लाभ के लिए इस मामले को तूल दिया."

"यह बिल्कुल भी कोई मुद्दा नहीं था, लेकिन हिंदुत्व के इन ध्वजवाहकों (प्रचारकों) ने इसे बना दिया. इसमें स्थानीय लोग हैं जिन्हें मैं जानता हूं लेकिन उनका नाम नहीं बता सकता. उन्होंने पोस्टर की फोटो खींची और उस फोटो को इस झूठे दावे के साथ वायरल किया गया कि वहां (स्कूल में) हिंदू लड़कियों को हिजाब पहनने के लिए मजबूर किया जा रहा है. अगर ऐसा होता, तो माता-पिता अपनी बेटियों का इस स्कूल में एडमिशन क्यों कराते और सालों तक इस पर एक शब्द भी नहीं बोलते?"
एक बीजेपी नेता

बीजेपी नेता ने जिस पोस्टर का जिक्र किया, वह एक बैनर था, जिसे स्कूल द्वारा 27 मई को 10वीं बोर्ड परीक्षा में बेहतरीन प्रदर्शन करने वाली अपनी छात्राओं की सफलता का जश्न मनाने के लिए लगवाया गया था. पोस्टर में जो छात्राएं दिख रही थीं उन्होंने हेडस्कार्फ पहना हुआ था, जो स्कूल यूनिफॉर्म का एक हिस्सा है.

जैसे ही पोस्टर की तस्वीर वायरल हुई, मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा और बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा सहित राज्य के शीर्ष बीजेपी नेता इसमें शामिल हो गए.

30 मई को जिला शिक्षा अधिकारी (DEO) एसके मिश्रा और पुलिस की एक टीम द्वारा स्कूल को क्लीन चिट दिए जाने के बाद भी, दक्षिणपंथी (राइट-विंग) समूहों ने इस मुद्दे को शांत होने नहीं दिया.

हिंदू जागरण मंच, हिंदू जागृति मंच, विश्व हिंदू परिषद और सकल हिंदू समाज सहित अन्य संगठनों ने भी विरोध प्रदर्शन किया, धर्म परिवर्तन के आरोप लगाए, जिला कलेक्टर को बर्खास्त करने की मांग की और यहां तक कि DEO पर स्याही भी फेंकी.

उन्होंने पोस्टर को कथित तौर पर हालिया विवादास्पद फिल्म 'द केरल स्टोरी' के संदर्भ में भी शेयर किया, यह फिल्म उन हिंदू और ईसाई महिलाओं की कहानी बताने का दावा करती है, जिन्हें इस्लामिक स्टेट (IS) समूह में शामिल होने के लिए 'प्रलोभित' किया गया था.

इन विरोध प्रदर्शनों के जवाब में, नरोत्तम मिश्रा ने कहा कि जिला शिक्षा अधिकारी ने "जांच की" और कथित घटना का "कोई सबूत नहीं" पाया. उन्होंने इस तथ्य को भी हाईलाइट किया कि इसमें शामिल बच्चों के माता-पिता ने भी कोई शिकायत दर्ज नहीं कराई है. उन्होंने कहा, फिर भी घटना की आगे की जांच के आदेश दिए गए हैं.

तो यहां पर सवाल यह है कि एक स्कूल, जिसके नाम को स्थानीय प्रशासन ने क्लियर कर दिया था, इसके बावजूद वह हिंदुत्व की राजनीति के केंद्र में कैसे आ गया?

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बीजेपी के लिए एक मौका

जैसे ही पोस्टर की फोटो वायरल हुई वैसे ही दमोह में हिंदूवादी संगठन हरकत में आ गए.

द क्विंट से बात करते हुए, दमोह में हिंदुत्व समूह सकल हिंदू समाज के संयोजक मोंटी रायकवार ने कहा:

"स्कूल कुछ समय से धर्मांतरण और गैरकानूनी गतिविधियों में लगा हुआ है. स्कूल के अंदर क्या चल रहा है, इसकी जानकारी किसी को नहीं है. लेकिन इस बार, उनकी गतिविधियां तब सामने आईं, जब उन्होंने हिजाब पहने हिंदू छात्राओं के पोस्टर लगाए और इस तरह उन्होंने खुद को बेनकाब कर दिया.'
मोंटी रायकवार

1 जून को कलक्ट्रेट में स्कूल के खिलाफ सबसे पहले विरोध प्रदर्शन करने वालों में रायकवार और अन्य दक्षिणपंथी सदस्य थे. इन्होंने स्कूल बंद करने और इस मामले की विस्तृत जांच की मांग की थी.

जैसे ही हिंदुत्व समूहों ने इसको लेकर दबाव बढ़ाया, सत्तारूढ़ बीजेपी नेताओं ने इसे 2023 के विधानसभा चुनावों से पहले मजबूत सत्ता विरोधी लहर को बेअसर करने के अवसर के रूप में देखा.

2 जून को मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री ने स्कूल प्रशासन पर "देश के विभाजन के बारे में बात करने वाले व्यक्ति की कविता पढ़ाने" का आरोप लगाया. वह (एमपी के सीएम) प्रसिद्ध कवि मोहम्मद इकबाल की प्रार्थना, "लब पे आती है दुआ" का जिक्र कर रहे थे.

चौहान ने चेतावनी दी कि "मध्य प्रदेश में इस तरह के कृत्यों की अनुमति नहीं दी जाएगी."

ऊपर हमने जिन बीजेपी नेता के कोट्स का जिक्र किया था, उन्होंने बताया कि "स्टेट लीडरशिप ने हिंदुत्व समूहों द्वारा प्रचारित नैरेटिव को भुनाया और इस मुद्दे को राज्य में चुनाव से पहले महौल बनाने के अवसर के रूप में देखा."

स्थानीय सूत्रों के अनुसार, अगर गंगा जमुना ट्रस्ट और उसके संयोजक के "क्षेत्र के किसी भी प्रभावशाली परिवार की तरह अच्छे राजनीतिक संबंध होते", तो कांग्रेस और बीजेपी स्कूल के मामलों में दखल नहीं देती.

"बीजेपी और कांग्रेस के नेताओं की चुप्पी से आप हिजाब विवाद की उथल-पुथल को समझ सकते हैं. भले ही वे उन्हें बचाने के लिए मैदान पर नहीं कूदे, लेकिन उन्होंने हिंदुत्व समूहों का पक्ष भी नहीं लिया, उन पर हिंदू छात्रों पर हिजाब लागू करने का झूठा आरोप लगाया जा रहा है.”
सूत्र
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टाइमिंग : बीजेपी नेताओं ने इस मामले में धर्मांतरण और आतंकी एंगल को देखा

5 जून को, बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा ने इस मामले में 'लव जिहाद' और आतंक का एक नया नैरेटिव पेश किया. उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि स्कूल के शिक्षकों को इस्लाम में कनवर्ट किया जा रहा था.

शर्मा ने कहा :

"मैंने देखा कि खरे सरनेम वाली दो महिला शिक्षक खान बन गईं. स्कूल प्रशासन के दबाव के कारण हमारी बहनों को अपना धर्म बदलने के लिए मजबूर होना पड़ा. उन्होंने जो जिहादी साम्राज्य बनाया है, उसकी जांच होनी चाहिए."

अगले दिन, 6 जून को मध्य प्रदेश के स्कूल शिक्षा मंत्री इंदर सिंह परमार ने धर्मांतरण और आतंकी लिंक के आरोपों को हवा देते हुए कहा:

"मैं समझता हूं कि अगर वहां वयस्कों का भी धर्म परिवर्तन किया जा रहा है. इसका मतलब है कि वहां धर्म परिवर्तन की गतिविधियां भी संचालित की जा रही हैं. ऐसे में यह स्पष्ट हो जाता है...इसीलिए मैं कहता हूं कि स्कूल के नाम पर वहां सिर्फ धर्म परिवर्तन ही नहीं होता था. यह भी संभव है कि उनके आतंकवादियों से लिंक हों.''

एक ओर, जहां मीडिया और दक्षिणपंथी समूह प्रशासन पर दबाव डाल रहे थे, वहीं बीजेपी की स्टेट लीडरशिप ने कहा कि वे "ऐसी चीजें नहीं होने देंगे." इस बीच, विपक्ष ने मामले से पल्ला झाड़ लिया.

6 जून की शाम को, दमोह जिले के बीजेपी उपाध्यक्ष अमित बजाज, सकल हिंदू समाज के नेता रायकवार और दक्षिणपंथी कार्यकर्ताओं के एक समूह ने डीईओ मिश्रा को रोका और जब वहां मौजूद भीड़ जय श्री राम के नारे लगा रही थी तब कथित तौर पर डीईओ पर स्याही फेंकी गई.

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अनियमितता: स्कूल का निलंबन आरोपों से जुड़ा नहीं है

यह मामला शांत होने का नाम नहीं ले रहा था, ऐसे में दमोह जिला कलेक्टर ने मामले की जांच के लिए एक और टीम गठित की और उसी दिन अनियमितताओं का हवाला देते हुए स्कूल की मान्यता रद्द कर दी गई.

इसके बाद संभागीय शिक्षा विभाग ने अपर्याप्त बुनियादी ढांचे का हवाला देते हुए स्कूल की मान्यता रद्द कर दी.

विभाग की ओर से जो नोटिस जारी किया गया उसमें यह उल्लेख किया गया है कि स्कूल में एक अच्छी तरह से सुसज्जित पुस्तकालय (लाइब्रेरी) का अभाव है, इसके साथ ही फिजिक्स और केमेस्ट्री विषय के लिए प्रैक्टिकल मटेरियल की कमी है. नोटिस में यह भी कहा गया है कि स्कूल में अलग शौचालय की व्यवस्था नहीं है और न ही स्कूल में नामांकित 1,208 लड़के और लड़कियों के लिए स्वच्छ पीने के पानी की व्यवस्था है.

हालांकि, संयुक्त संचालक, लोक शिक्षा, सागर संभाग के कार्यालय द्वारा मान्यता रद्द करने का जो नोटिस जारी किया गया था उसमें कहीं भी यह उल्लेख नहीं किया गया है कि स्कूल को धर्म परिवर्तन, छात्रों को हिजाब पहनने के लिए मजबूर करना या हिंदुत्व समूहों द्वारा लगाए गए आरोपों से दूर-दूर तक किसी भी चीज के लिए दोषी पाया गया है.

जबकि दूसरी ओर, दक्षिणपंथी संगठन स्कूल के खिलाफ आगे की कार्रवाई के लिए प्रशासन पर दबाव बनाते रहे.

4 जून को राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग की मध्य प्रदेश यूनिट ने इस मामले की आगे की जांच के लिए स्कूल का दौरा किया और स्कूल के छात्रों से बात की.

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परिणामस्वरूप: गिरफ्तारियां, FIR और बुलडोजर कार्रवाई की मांग

7 जून को, दमोह कोतवाली पुलिस स्टेशन ने तीन छात्रों की शिकायतों के आधार पर स्कूल के लगभग एक दर्जन अधिकारियों के खिलाफ FIR दर्ज की.

एफआईआर में, स्टूडेंट्स ने आरोप लगाया कि अन्य चीजों के अलावा उन्हें "हिजाब पहनने के लिए मजबूर किया गया, तिलक लगाने पर डांटा गया" और उर्दू को एक अनिवार्य विषय बना दिया गया.

विवाद बढ़ने पर दमोह पुलिस ने 11 जून को तीन लोगों (प्रिंसिपल अफसा शेख, अनस अतहर नाम के शिक्षक और स्कूल के सुरक्षा गार्ड रुस्तम अली) को अरेस्ट कर लिया.

तीन लोगों की गिरफ्तारी के बाद बहुचर्चित 'बुलडोजर जस्टिस' की मांग ने जोर पकड़ लिया.

जैसा कि नरोत्तम मिश्रा ने 12 जून को मीडिया से बात करते हुए एक बार और बुलडोजर चलाने का संकेत दिया, जिला प्रशासन ने स्कूल को बिल्डिंग के रिकॉर्ड और परमिट पेश करने के लिए एक नोटिस जारी किया, और कहा कि ऐसा न करने पर 'अवैध निर्माण' को ध्वस्त कर दिया जाएगा.

हालांकि बुलडोजर का उपयोग नहीं किया गया, लेकिन नगर निगम ने अवैध निर्माण का हवाला देते हुए स्कूल बिल्डिंग की ऊपरी मंजिल पर किए गए निर्माण को हटा दिया.

राज्य सरकार द्वारा स्कूल की मान्यता रद्द करने, उसके शिक्षकों को गिरफ्तार करने और उसके गेट बंद करने के बाद अब 1,200 से अधिक छात्र अधर में हैं.

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