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क्या नेताओं का पहनावा ही उनकी ईमानदारी और चरित्र का सर्टिफिकेट है?

क्या कुर्ता पायजामा या साड़ी पार्लियामेंट या राजनीति की यूनिफार्म है?

Published
भारत
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कहते हैं आजादी और जिम्मेदारी एक ही सिक्के के दो पहलू हैं. समझने वाली बात यह है कि आजादी कितनी हो और जिम्मेदारी कैसी हो. अभी हाल ही में देश में आम चुनाव हुए मोदी सरकार 2.0 को धमाकेदार बहुमत मिला. देश के अलग-अलग रंग लोकतंत्र के बगीचे पार्लियामेंट में इकट्ठे हुए. न्यू इंडिया के थीम पर नया नारा चल पड़ा है "मेरा देश बदल रहा है". पर क्या वाकई ऐसा है?

लगता तो नहीं है. क्योंकि जब तृणमूल कांग्रेस की नई सांसद मिमी चक्रवर्ती और नुसरत जहां संसद भवन में वेस्टर्न ड्रेस अंदाज में मॉडर्न लुक में पहुंचीं तो सोशल मीडिया पर तहलका मच गया.

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हालांकि तस्वीरों से साफ जाहिर है दोनों सांसद जींस टी शर्ट और ट्राउजर सूट में फुल डिग्निटी के साथ देश की संसद में अपने क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने पर खुश नजर आ रही हैं. लेकिन ये बात उन लोगों के गले उतरना मुश्किल है, जो आलोचना करने के लिए बैठे रहते हैं.

क्या कुर्ता पायजामा या साड़ी पार्लियामेंट या राजनीति की यूनिफार्म है?
तस्वीरों से साफ जाहिर है दोनों सांसद जींस टीशर्ट और ट्राउजर सूट में फुल डिग्निटी के साथ देश की संसद में अपने क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने पर खुश नजर आ रही हैं
फोटो:फेसबुक 
किसी ने कहा” आज आपको देखकर स्वतंत्रता सेनानी शर्मिंदा हो गए होते’. तो किसी ने कहा कि यह कोई फोटो शूट की जगह है”. किसे ने ये कहने में भी कसर नहीं छोड़ी कि संसद में क्या करोगी एनी आइडिया? 

हमारा देश दुनिया की 140 सैटेलाइट, अंतरिक्ष में भले ही छोड़ आया हो, लेकिन इस बीमार मानसिकता का इलाज आज भी किसी के पास नहीं है. क्या यही डेमोक्रेसी है, जहां आपको अपने हिसाब से जीने का हक हो ना हो कहने वालों को कुछ भी कहने का हक है.

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क्या कुर्ता पायजामा या साड़ी पार्लियामेंट या राजनीति की यूनिफार्म है?
क्या कुर्ता पायजामा या साड़ी पार्लियामेंट या राजनीति की यूनिफार्म है?
फोटो:फेसबुक 

क्या कुर्ता पायजामा या साड़ी पार्लियामेंट या राजनीति का यूनिफार्म है? क्यों हम नई सोच से साथ भी हमारे नोताओं को साड़ी या सूट में ही स्वीकार कर पाते हैं.

देश की विविध सांस्कृतिक विरासत में अलग-अलग पहनावे हैं जैसे-कश्मीर, दक्षिण ,नॉर्थ ईस्ट की परंपरागत वेशभूषा हैं, तो क्या यह भारत का प्रतिनिधित्व नहीं करते ? सवाल सिर्फ ये उठता है कि क्या पहनावे से किसी की ईमानदारी, टैलेंट या चरित्र का सर्टिफिकेट दिया जा सकता है?

इस बात पर गौर फरमाना जरूरी है कि अगर गौतम गंभीर जींस टीशर्ट में माननीय सांसद हैं, तो मिमी चक्रवर्ती क्यों नहीं?

जानिए क्या है सांसदों का मॉडल कोड आफ कंडक्ट

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क्या कुर्ता पायजामा या साड़ी पार्लियामेंट या राजनीति की यूनिफार्म है?
क्या है सांसदों का मॉडल कोड आफ कंडक्ट
फोटो:Twitter 

संसद की कमेटी ऑन एथिक्स ने 2005 की रिपोर्ट में देश की विशेष आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर सांसदों के लिए मॉडल कोड ऑफ कंडक्ट प्रस्तावित किया है जिसके अनुसार:

1. सभी संसद सदस्यों को पब्लिक ट्रस्ट को मेंटेन करना जरूरी है और जनहित में लोगों की भलाई के लिए अपने मैंडेट के अधिकारों का निर्वहन करना अपेक्षित है.

2. संविधान, कानून, संसदीय परंपरा और देश के नागरिकों का सर्वोच्च सम्मान संसद सदस्यों का कर्तव्य है.

3. संसद सदस्य ऐसा कोई भी कार्य ना करें जैसे संसद और उसकी गरिमा को ठेस पहुंचे.

4. सदस्य संविधान के फंडामेंटल ड्यूटीज मौलिक कर्तव्यों के शेड्यूल का विशेष ध्यान रखें.

5. सदस्यों को मोरैलिटी, डीसेंसी, डिग्निटी को बनाए रखना जरूरी है.

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संसद सदस्यों के मॉडल कोड आफ कंडक्ट वायलेशन की शिकायत कमेटी ऑन एथिक्स को स्पीकर के जरिए की जा सकती है. यहां तक की ऐसा व्यक्ति जो हाउस का मेंबर ना भी हो उसकी शिकायत को सदस्य अपने हस्ताक्षर से स्पीकर को फॉरवर्ड कर सकते हैं. कमेटी ऑन एथिक्स में लोकसभा के 15, और राज्यसभा की कमेटी में 10 मेंबर्स होते हैं.

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क्या कुर्ता पायजामा या साड़ी पार्लियामेंट या राजनीति की यूनिफार्म है?
स्टार्ट अप इंडिया, स्टैंड अप इंडिया, मेक इन इंडिया जैसे कदम उठाने वाली मोदी सरकार को स्वच्छ भारत की ही तरह स्वच्छ मानसिकता की पहल भी करनी होगी
फोटो:फेसबुक 

स्टार्ट अप इंडिया, स्टैंड अप इंडिया, मेक इन इंडिया जैसे कदम उठाने वाली मोदी सरकार को स्वच्छ भारत की ही तरह स्वच्छ मानसिकता की पहल भी करनी होगी. तभी प्रधानमंत्री मोदी का सबका साथ सबका विकास और सबका विश्वास सार्थक सिद्ध हो सकेगा.

सांसद अपनी गरिमा बनाए रखें यह जरूरी है. लेकिन हम भी अपने सांसदों और संसद की गरिमा का ख्याल रखें. मिमी चक्रवर्ती देश की महिला शक्ति का प्रतिनिधित्व करती हैं, लोकतंत्र का चुनाव लड़कर अपने क्षेत्र को रिप्रेजेंट करती हैं. जो एक्सपर्ट्स इत्तेफाक नहीं रखते उन्हें सोशल मीडिया पर नहीं बल्कि शिक्षा की जरूरत है.

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