ADVERTISEMENTREMOVE AD

"हम झुग्गी नहीं आदिवासी पाड़ो के निवासी हैं"- मुंबई के आरे जंगल में पहचान की जंग

आरे जंगल के तीन आदिवासी पाड़ो में रहने वाले 100 -125 परिवार राज्य सरकार की पुनर्वसन योजना का विरोध क्यों कर रहे?

Published
story-hero-img
i
छोटा
मध्यम
बड़ा

"मैं केल्टीपाड़ा आदिवासी गावठान का घर हूं. कोई झुग्गी नहीं. मेरे दरवाजे पर नंबर ना लिखें. सर्वेक्षण का मेरी तरफ से विरोध है"- यह मांग घनी आबादीवाले मुंबई के बीच आरे के जंगल में कई पीढ़ियों से बसे एक घर की है. जिसके दीवारों पर झलक रही आदिवासी वारली पेंटिंग उसके ऐतिहासिक और सांस्कृतिक पहचान का प्रमाण देती है.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

दरअसल, यह आरे के मूलनिवासी और आरे बचाओ मुहिम के एक्टिविस्ट प्रकाश भोईर का पुश्तैनी घर है. प्रकाश भोईर और उनकी तरह ऐसे तीन आदिवासी पाड़ो में रहनेवाले 100 से 125 परिवार हैं जो राज्य सरकार के पुनर्वसन योजना का विरोध कर रहे हैं. जिसमें केल्टी पाड़ा, दामुचा पाड़ा और चाफ्याचा पाड़ा शामिल हैं.

क्या है पूरा मामला?

पिछले एक हफ्ते से आरे कॉलोनी में स्लम रिहैबिलिटेशन अथॉरिटी (SRA), बोरीवली विभाग के आदिवासी प्रोजेक्ट अफसर और पुणे के आदिवासी रिसर्च एंड ट्रेनिंग संस्था के अधिकारियों ने सर्वे का काम शुरू कर दिया है. लेकिन विरोध कर रहे निवासियों का कहना है कि वो किसी झुग्गी झोपड़ियों में नहीं बल्कि आदिवासी पाड़ो के निवासी हैं. इसीलिए उन्हें SRA योजना के तहत पुनर्वासित नहीं किया जा सकता.

अधिकारियों का कहना है कि यहां रहनेवाले सभी को घर खाली करना होगा. उन्हें SRA योजना के तहत दूसरी जगह स्थानांतरित किया जाएगा. क्योंकि मुंबई पुलिस के 'फोर्स वन' यूनिट के हेडक्वार्टर्स, शूटिंग रेंज और ट्रेनिंग सेंटर के लिए आरे की करीब 100 एकड़ जमीनों को 2009 में आरक्षित किया गया था.

बता दें कि मुंबई के गोरेगांव पूर्व में संजय गांधी नेशनल पार्क में 'आरे' का इलाका लगभग तीन हजार एकड़ में फैला अर्बन जंगल है. साल 2020 में उद्धव सरकार ने इसमें से 812 एकड़ जमीन फॉरेस्ट विभाग को वन जमीन के तौर पर आरक्षित करने का निर्णय लिया. लेकिन पिछले कई दशकों से आरे की जमीन केंद्र और राज्य सरकार की विविध संस्थाओं को लीज पर दी गई है. जिस वजह से वहां के आदिवासी और सरकार के बीच विवाद खड़ा हो जाता है.

हालांकि आदिवासी विभाग के रिकॉर्ड के मुताबिक मुंबई में 222 आदिवासी पाड़ो में एक लाख आदिवासी रहते हैं. जिसमें से 10 हजार आदिवासियों की आबादी आरे कॉलोनी की 27 पाड़ो में बसती है. इसमें काटकारी, वारली, महादेव और मल्हार कोली जैसे जनजातियों के आदिवासी कई पीढ़ियों से रहते आ रहे हैं.

प्रकाश भोईर का दावा है कि, "2007 में तहसीलदार ने सर्वे में हमारी जमीनों को आदिवासी पाड़ा करार दिया गया था. हमारे जंगलों से मायानगरी मुंबई की चकाचौंध दिखाई देती है. बावजूद उसके हमारे पाड़ो तक कई सालों से बिजली तक नहीं पहुंच सकी थी. कुछ साल पहले आदिवासी फण्ड के माध्यम से सोलर लाइट के खंभे हमारे पाड़ो पर लगवाए गए और सरकार ने सुर्खियां बटोरी. जिससे साबित होता है कि हम आदिवासी हैं. लेकिन फिर अचानक अब हमें झोपड़पट्टी के श्रेणी में लाते हुए पुनर्वसन के लिए दबाव बनाया जा रहा है. इसी वजह से हम इसका विरोध कर रहे हैं."

ADVERTISEMENTREMOVE AD

झोपड़पट्टी पुनर्वसन योजना का विरोध क्यों ?

प्रकाश भोईर बताते हैं कि हमें झोपड़पट्टी धारक कहना हमारे लिए गाली की तरह है. हमारा पुनर्वसन स्लम रिहैबिलिटेशन अथॉरिटी (SRA) द्वारा करने से हमारी पुश्तैनी जमीन, संस्कृति और खेती सरकारी रिकॉर्ड में विलुप्त हो जाएगी.

भोईर आगे बताते हैं कि, "आज भी आरे में 1 एकड़ 20 गुंटे की जमीन मेरी मां के नाम पर है. जिसमें हम नारियल, आम, कटहल, केला, सीताफल, जामुन, अनानास जैसे फलों और रान (जंगली) सब्जियों की खेती करते हैं. जिसका आरे प्राधिकरण को 1956 से बकायदा 1 रुपये प्रति गुंटा टैक्स भी भरते हैं. रिसीट के तौर पर इसका सबूत हमारे पास हैं. फिर हमें किस आधार पर झोपडी धारक बनाया जा रहा है. यह सवाल हम सरकार से पूछना चाहते हैं."

ADVERTISEMENTREMOVE AD

क्या लग रहे हैं आरोप ?

सामाजिक कार्यकर्ता विठ्ठल लाड़ पिछले तीन दशकों से आरे के आदिवासियों के हक की लड़ाई लड़ रहे हैं. उन्होंने निर्मला निकेतन से मास्टर्स इन सोशल वर्क की डिग्री हासिल करने के बाद मुंबई के आदिवासियों पर रीसर्च शुरू किया. उनका कहना है कि पिछली बीजेपी-शिवसेना सरकार में सीएम देवेंद्र फडणवीस ने आदिवासी पाड़ो और कोलीवाडों को गावठान की मान्यता देने का कानून सदन में पेश किया था.

जबकि आज सरकार इन्हें SRA एक्ट के तहत अधिगृहित करना चाह रही है. इससे साफ तौर पर आदिवासियों को रिहैबिलिटेशन इमारतों में स्थानांतरित कर उनकी जमीनें बिल्डरों के लिए हड़पने की मंशा नजर आती है. ऐसे में हमने 1957 से सभी कानूनी और सरकारी दस्तावेजों को जमा करने का काम शुरू किया हैं. सिर्फ आदिवासी होने का जाति प्रमाणपत्र हमारे आदिवासी होने का सबूत नहीं हो सकता. इसके अलावा कई सबूत हैं, जो हम पेश करेंगे.
ADVERTISEMENTREMOVE AD

सरकार का क्या है कहना ?

गृह निर्माण विभाग के मंत्री जितेंद्र आव्हाड ने क्विंट हिंदी से कहा कि अगर आरे की विवादित जमीन पर रहने वाले आदिवासी हैं तो SRA की तरफ से उन्हें कोई नहीं हटा सकता. वे खुद विभाग के सभी संबंधित अधिकारियों के साथ बैठक कर मसले की जानकारी लेंगे. साथ ही उन आदिवासी पाड़ो पर जाकर स्थिति का जायजा लेने के लिए निवासियों से चर्चा करेंगे.

हालांकि शिवसेना के गोरेगांव पूर्व के विधायक सुनील प्रभु का कहना है कि पिछले कुछ सालों में आरे के मूल आदिवासियों की जमीनों पर बाहर के लोगों ने भी अवैध कब्जा कर लिया है. ऐसे लोगों को आदिवासी कहना और जमीन देना सरकार के साथ धोखाधड़ी होगी. इसलिए सही आदिवासियों की पहचान जरूरी है. फिलहाल SRA सिर्फ सर्वे का काम कर रहा है. पुनर्वसन की जिम्मेदारी गृह निर्माण विभाग पर है. इसीलिए आदिवासियों को झोपड़ी धारक नहीं बनाया जाएगा.

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
×
×