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मुजफ्फरनगर दंगा:संगीत सोम और 2 MLA के खिलाफ केस वापस लेगी UP सरकार

मुजफ्फरनगर दंगे में 60 से ज्यादा लोगों की मौत हुई थी और 50 हजार से ज्यादा लोग बेघर हो गए थे.

Published
भारत
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उत्तर प्रदेश की योगी सरकार एक बार फिर बीजेपी नेताओं पर मेहरबान दिख रही है. उत्तर प्रदेश सरकार ने 2013 में हुए मुजफ्फरनगर दंगे से जुड़े एक केस को वापस लेने के लिए अर्जी दाखिल की है. इस केस में बीजेपी के 3 मौजूदा विधायकों का नाम शामिल है. बीजेपी के विधायकों पर मुजफ्फरनगर के नगला मंदोर गांव में सितंबर 2013 में एक महापंचायत में भड़काऊ भाषण देने का आरोप है.

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सरधना से विधायक संगीत सोम, शामली के थाना भवन से विधायक सुरेश राणा, मुजफ्फरनगर सदर से विधायक कपिल देव अग्रवाल और हिंदूवादी नेता साध्वी प्राची इस मामले में आरोपी हैं.

यही नहीं बीजेपी के नेताओं पर प्रतिबंधात्मक आदेशों का उल्लंघन करने, सरकारी मशीनरी के साथ बहस करने और आगजनी में शामिल होने का भी आरोप है.

द इंडियन एक्स्प्रेस के मुताबिक, सरकारी वकील राजीव शर्मा ने बताया कि इस मामले में केस वापसी के लिए सरकार की तरफ से मुजफ्फरनगर की एडीजे कोर्ट में याचिका दाखिल की गई है. कोर्ट ने फिलहाल इस पर सुनवाई नहीं की है.

कैसे भड़क उठा था मुजफ्फरनगर में दंगा?

बता दें कि 27 अगस्त 2013 को मुजफ्फरनगर के कवाल गांव से ही दंगे की शुरुआत हुई थी. जिसमें सचिन, गौरव और शाहनवाज के बीच हुआ झगड़ा दंगों की आग में बदल गया. आरोप है कि कवाल गांव में सचिन और गौरव से शहनवाज की किसी बात को लेकर कहा सुनी हुई जिसके बाद शाहनवाज कुरैशी की हत्या हो गई. फिर शहनवाज की हत्या को लेकर कवाल गांव के लोगों द्वारा सचिन और गौरव की पीट-पीटकर हत्या कर दी गई. इन तीनों की मौत के बाद 7 सितंबर 2013 को नगला मंदोर गांव इंटर कॉलेज में जाटों द्वारा महापंचायत बुलाई गई थी.

जिसके बाद शीखेड़ा थाना इंचार्ज चरण सिंह यादव द्वारा दर्ज करवाई गई एफआईआर में तीनों बीजेपी विधायकों संगीत सोम, कपिल देव अग्रवाल, सुरेश राणा, साध्वी प्राची और दूसरे लोगों पर भड़काऊ भाषण देकर एक समुदाय विशेष के खिलाफ लोगों को भड़काने का आरोप लगा.

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दंगे में 60 से ज्यादा लोगों की गई जान

इस पंचायत के बाद मुजफ्फरनगर में दंगे शुरू हुए और पूरे मामले को धार्मिक रंग देना शुरू कर दिया गया. मुजफ्फरनगर दंगे में 60 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई थी और 50,000 से ज्यादा लोग बेघर हो गए थे. जिसके बाद इस दंगे के बाद कुल 510 आपराधिक मामले दर्ज किए गए और 175 में आरोप पत्र दायर किए गए. बाकी में, पुलिस ने या तो क्लोजर रिपोर्ट दायर की है या मामले को उजागर किया है.

वहीं महापंचायत से जुड़े केस में 7 सितंबर, 2013 को शीखेड़ा थाना के तत्कालीन इंचार्ज चरण सिंह यादव द्वारा केस दायर किया गया था. जिसमें संगीत सोम, सुरेश राणा, कपिल देव, साध्वी प्राची और पूर्व सांसद हरेंद्र सिंह मलिक सहित चालीस लोगों का नाम शामिल था. इन लोगो पर एक समुदाय के खिलाफ भड़काऊ भाषण देने, निषेधात्मक आदेशों का उल्लंघन करने, जिला प्रशासन से अनुमति प्राप्त किए बिना एक महापंचायत आयोजित करने, लोक सेवकों को उनकी ड्यूटी करने से रोकने के लिए अवरोध पैदा करने, और एक मोटरसाइकिल को आग लगाने का आरोप है.

आरोपियों के खिलाफ आईपीसी धारा 188 (घातक हथियार से लैस गैरकानूनी असेंबली में शामिल होना), 353 (लोक सेवक को हिरासत में लेने के लिए हमला या आपराधिक बल), 153 ए (धर्म के आधार पर शत्रुता को बढ़ावा देना, आदि) के तहत मामला दर्ज किया गया था.

राज्य सरकार द्वारा गठित विशेष जांच दल (SIT) ने सोम, राणा, कपिल देव, प्राची, और मलिक सहित 14 आरोपियों के खिलाफ आरोप पत्र भी दायर किए हैं. फरवरी 2018 में, बीजेपी सांसद संजीव बाल्यान के नेतृत्व में खाप चौधरियों के एक प्रतिनिधिमंडल ने लखनऊ में मुख्यमंत्री आदित्यनाथ से मुलाकात की और उनसे मुजफ्फरनगर दंगों के सिलसिले में हिंदुओं के खिलाफ मामलों को वापस लेने का आग्रह किया था.

जिसके बाद राज्य सरकार ने इस मामले में 13 बिंदुओं के तहत मुजफ्फरनगर और शामली जिला प्रशासन से विवरण मांगकर मामले वापस लेने की प्रक्रिया शुरू की. सरकार ने जिला मजिस्ट्रेट, पुलिस अधीक्षक और वरिष्ठ अभियोजन अधिकारी से मामलों की वापसी पर भी राय मांगी है.

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