महाराष्ट्र (Maharashtra) के नांदेड़ (Nanded) में शंकरराव चव्हाण सरकारी मेडिकल कॉलेज के बाहर लक्ष्मीबाई टोम्पे (40 वर्षीय) रो रही हैं. वो चिल्लाते हुए और अपनी छाती पीटते हुए कहती हैं, "उन्होंने मुझे क्यों नहीं बताया कि मेरी बेटी बीमार थी? मैं उसकी मां हूं. उन्होंने मेरी बेटी की अनदेखी क्यों की? मुझे अपनी बेटी वापस चाहिए."
उनकी बेटी अंजलि वाघमारे (21 वर्षीय) ने एक बच्ची को जन्म दिया था, लेकिन इसके चार दिन बाद ही लक्ष्मीबाई ने दोनों को खो दिया.
अंजलि और उनका बच्चा उन 31 मरीजों में से थे जिनकी कथित तौर पर चिकित्सा सुविधाओं, दवाओं और कर्मचारियों की कमी के कारण 1 से 4 अक्टूबर के बीच इस अस्पताल में मौत हो गई.
30 सितंबर को काफी परेशानी के बाद अस्पताल में भर्ती अंजलि ने 1 अक्टूबर की सुबह बच्ची को जन्म दिया. हालांकि, टोम्पे और वाघमारे परिवारों के लिए जो हफ्ता उत्सव का होना था, वह अब शोक में बदल गया है.
'डीन ने हमारे साथ दुर्व्यवहार किया, हमें बाहर निकाल दिया'
कुरुला गांव की रहने वाली अंजलि की शादी 2021 में हुई थी और वह तब से अपने ससुराल वालों और पति मंचक वाघमारे के साथ मुराम्बी गांव में रह रही थी.
अपनी प्रेगनेंसी के आखिरी कुछ महीनों से वह कुरुला में अपने माता-पिता के साथ रह रही थी. दोनों परिवार अपने पहले बच्चे के आने का इंतजार कर रहे थे.
मंचक ने द क्विंट को फोन पर बताया कि, "आखिरी बार मैं उससे डिलीवरी के बाद मिला था. वह डरी हुई थी. वह शिकायत कर रही थी कि उसके पेट में दर्द हो रहा है. डॉक्टरों ने बाद में बताया खून की कमी हो रही है." उन्होंने कहा कि:
"बच्चा दूसरे वार्ड के इनक्यूबेटर में था. मैंने बच्चे को एक बार देखा था. लेकिन किसी कारण से, उन्होंने उसके बाद हममें से किसी को भी अंजलि या बच्चे को देखने की अनुमति नहीं दी. हम उनसे विनती करते रहे. हर बार जब हमने पूछा, वे हमें यह कहते हुए आशा देते रहे कि वे दोनों ठीक हैं. फिर अचानक, उन्होंने मेरे मृत बच्चे को हमें सौंप दिया."
2 अक्टूबर की सुबह 6:00 बजे बच्चे का शव परिवार को सौंप दिया गया.
मंचक ने कहा, "अंजलि अस्वस्थ थी, इसलिए हमने उसे नहीं बताया कि बच्चा अब नहीं रहा. उसकी यह सोचते हुए ही मौत हो गई कि हमारा बच्चा अभी भी जिंदा है."
परिवार ने आरोप लगाया कि अस्पताल में कोई बुनियादी दवाएं या पर्याप्त अस्पताल कर्मचारी नहीं थे.
नांदेड़ पुलिस में दर्ज शिकायत में अंजलि के पिता कामाजी ने अपने संघर्षों के बारे में विस्तार से बताया.
"डिलीवरी के बाद, उन्होंने कहा कि बच्चा और अंजलि स्वस्थ हैं. हालांकि, सुबह तक, उन्होंने कहा कि अंजलि को खून की कमी हो रही है और बच्चे का स्वास्थ्य भी बिगड़ रहा है. फिर उन्होंने हमें बाहर से खून और अन्य दवाएं लाने के लिए कहा. जैसे ही हमारी व्यवस्था हुई तो हमें कोई डॉक्टर नहीं मिला इसलिए मैं अस्पताल के डीन डॉ एसएस वाकोडे के पास गया. उन्होंने मुझे वहां काफी देर तक इंतजार कराया. उन्होंने काफी समय तक मदद के लिए कोई डॉक्टर या नर्स नहीं भेजा."कामाजी
उन्होंने आरोप लगाया, "जब मैं उन्हें परेशान करता रहा, तो डीन ने मेरे साथ दुर्व्यवहार किया और मुझे बाहर निकाल दिया. उन्होंने मुझे मेरी बेटी या बच्चे से भी नहीं मिलने दिया."
मंचक ने कहा कि परिवार ने वह सब कुछ खरीदा जो अस्पताल ने उनसे मांगा था, लेकिन "यह नहीं पता कि उनमें से कोई दवा अंजलि या बच्चे को दी गई थी या नहीं."
4 अक्टूबर की सुबह 10.30 बजे परिवार को अंजलि की मौत की खबर दी गई.
'खून, दवाइयां और यहां तक कि आईवी ड्रिप भी बाहर से खरीदी'
द क्विंट से बात करते हुए, अंजलि के पिता कामाजी ने अस्पताल में भर्ती होने के दौरान उनके सामने आने वाले वित्तीय संघर्षों के बारे में बताया और कहा कि, "हमारे जैसे गरीब लोग सरकारी अस्पताल नहीं तो कहां जाएं? हम हर चीज की व्यवस्था करने के लिए लिए दर-दर भटक रहे थे. हम खून की व्यवस्था करने के लिए नांदेड़ शहर की एक लैब में गए. हम खेतों पर काम करने वाले गरीब मजदूर हैं. डिलीवरी हमें बहुत महंगी पड़ी, इसलिए हमें अचानक पैसे की व्यवस्था करने के लिए संघर्ष करना पड़ा. जिस आदमी के खेत में मैं काम करता हूं, उन्होंने मुझे इलाज के लिए पैसे दिए. मेरी पत्नी ने अपनी सोने की बालियां बेच दीं. लेकिन हमने अपनी बेटी और पोते दोनों को खो दिया."
ईंट भट्टे पर काम करने वाले अंजलि के भाई राजेश ने कहा कि उन्हें नांदेड़ शहर की एक प्राइवेट लैब से खून के 14 पैकेट मिले.
राजेश ने कहा कि, "यहां न तो खून, आईवी ड्रिप या दवाएं किसी की भी व्यवस्था नहीं हैं. हमने खून और अन्य चिकित्सा चीजों पर 45,000 रुपये खर्च किए. कल, उन्होंने 5,000 रुपये खून की जांच के लिए हमसे लिए और भी कई टेस्ट करने के लिए कहा. हमने तुरंत पैसे की व्यवस्था की. लेकिन इससे क्या फायदा अगर किसी चीज से मरीज को मदद नहीं मिली तो?"
उन्होंने कहा, "आप इसे सरकारी अस्पताल कहते हैं? यह पैसे ऐंठने की फैक्ट्री है. उन्हें पहले यहां अनुभवी डॉक्टरों को लाना चाहिए और युवाओं को इसे चलाने नहीं देना चाहिए. हम अपनी बहन की मौत के लिए डॉक्टरों को दोषी मानते हैं."
परिवार शोक मना रहे हैं, अस्पताल, सरकार के खिलाफ रोष
अंजलि के मामले में डॉ वाकोडे और मुख्य चिकित्सक पर भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 304 (गैर इरादतन हत्या के लिए सजा) और धारा 34 (सामान्य इरादे को आगे बढ़ाने में कई व्यक्तियों द्वारा किए गए कार्य) के तहत मामला दर्ज किया गया है.
जहां 1-2 अक्टूबर के बीच 24 घंटों की अवधि में 24 मरीजों की जान चली गई, वहीं 4 अक्टूबर को अंजलि समेत सात और मरीजों की मौत हो गई. 24 मृतकों में से कम से कम 12 नवजात शिशु थे.
इस बीच, एकनाथ शिंदे सरकार को राज्य में विपक्ष के गुस्से का सामना करना पड़ रहा है. कांग्रेस नेता और महाराष्ट्र के पूर्व सीएम अशोक चव्हाण ने अस्पताल का दौरा किया और अंजलि सहित मृतकों के परिवारों से बातचीत की. चव्हाण ने एक्स पर एक पोस्ट में कहा, युवा कांग्रेस ने भी धन एकत्र किया और अस्पताल को बुनियादी दवाएं और उपकरण उपलब्ध कराए हैं.
कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने कहा: "मैं सभी शोक संतप्त परिवारों के प्रति अपनी गहरी संवेदना व्यक्त करता हूं. बीजेपी सरकार अपने प्रचार-प्रसार पर हजारों करोड़ रुपये खर्च करती है, लेकिन बच्चों की दवाओं के लिए पैसे नहीं हैं? बीजेपी की नजर में लोगों की जान की कोई कीमत नहीं है."
इस बीच, सीएम शिंदे ने अस्पताल में दवाओं की कमी के दावों का खंडन किया. उन्होंने कहा कि, "अस्पताल में 127 प्रकार की दवाओं का स्टोरेज था. अस्पताल में दवाओं की कोई कमी नहीं थी. इसके विपरीत, वहां दवा खरीद के लिए 12 करोड़ रुपये का फंड भी स्वीकृत किया गया है. अस्पताल में पर्याप्त दवाएं थीं. वास्तव में अस्पताल में जरूरत से ज्यादा स्टॉक था."
उन्होंने आगे कहा कि, "हमने पूछा है कि क्या पर्याप्त डॉक्टर और कर्मचारी हैं. वहां हुई मौतों की जांच की जाएगी. जांच के बाद आगे की कार्रवाई की जाएगी. अगर कोई दोषी पाया गया, तो उसके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी. राज्य सरकार ने इस मामले को बहुत गंभीरता से लिया है."
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