कोरोना की दूसरी लहर के कुप्रबंधन के बीच भारत की जनता के बीच प्रधानमंत्री मोदी की लोकप्रियता घटी है. मॉर्निंग कंसल्ट के 'ग्लोबल अप्रूवल रेटिंग' के मुताबिक ऐसा ही लग रहा है. एक दूसरे सर्वे में मोदी की लोकप्रियता का ग्राफ पहली बार 50% के नीचे चला गया है.
नोटबंदी, नागरिकता कानून के खिलाफ देशव्यापी आंदोलन, पिछले साल के कठोर लॉकडाउन और तीन कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन तक को झेल जाने वाले प्रधानमंत्री मोदी की इमेज को सबसे बड़ा झटका लगा है.
अप्रूवल रेटिंग का स्लोप हर दिन जा रहा नीचे
13 देशों के राष्ट्राध्यक्षों (ऑस्ट्रेलिया, ब्राजील, कनाडा, फ्रांस, जर्मनी ,भारत, इटली, जापान, मेक्सिको ,साउथ-कोरिया ,स्पेन, UK और अमेरिका) के अप्रूवल रेटिंग और डिसएप्रूवल रेटिंग को ट्रैक करने वाली मॉर्निंग कंसल्ट के 'ग्लोबल अप्रूवल रेटिंग' के हालिया आंकड़े दिखाते हैं कि अभी भी इन 13 देशों के नेताओं में सबसे ज्यादा लोकप्रिय होने के बावजूद प्रधानमंत्री मोदी की अप्रूवल रेटिंग में 1 अप्रैल से 11 मई के बीच 10% की कमी आई है .जहां 1 अप्रैल को उनकी अप्रूवल रेटिंग 73% थी वहीं 11 मई को यह लुढ़क कर 63% पर आ चुकी है.मोदी की अप्रूवल रेटिंग में 1 अप्रैल से 11 मई के बीच 10% की कमी आई है .मॉर्निंग कंसल्ट
उसी तरह उनके डिसएप्रूवल रेटिंग में 1 अप्रैल से 11 मई के बीच 10% का उछाल देखा गया है इसके बीच वह 21% से 31% तक पहुंच चुकी है.
प्रधानमंत्री मोदी की घटती लोकप्रियता के संकेत और भी हैं
सिर्फ मॉर्निंग कंसल्ट के अप्रूवल रेटिंग में ही नहीं भारतीय पॉलस्टर Ormax Media के द्वारा 23 राज्यों के शहरी मतदाताओं के बीच कराए जाने वाले सर्वे के आंकड़े दिखाते हैं कि प्रधानमंत्री मोदी की अप्रूवल रेटिंग दूसरी लहर के पहले जहां 57% थी वही 11 मई तक यह 9% कम होकर 48% पर आ चुकी है .यह पहली दफा है जब प्रधानमंत्री मोदी की अप्रूवल रेटिंग ने 50% के नीचे डुबकी मारी है .
Ormax Media का यह अप्रूवल रेटिंग ग्राफ बताता है कि भारत चीन टकराव और चीनी ऐप बैन करते समय जहां प्रधानमंत्री मोदी 69% अप्रूवल रेटिंग के साथ लोकप्रियता के शिखर पर थे ,आज उनकी सरकार द्वारा कोरोना के कुप्रबंधन और हर रोज 4000 से ज्यादा मौतों के बीच अब उनकी अप्रूवल रेटिंग 48% तक आ पहुंची है.
आंकड़ों का मतलब क्या है?
मतलब साफ है कि आप ऑक्सीजन की भीख मांगते भारतवासी को 'स्टे पॉजिटिव' का लॉलीपॉप नहीं पकड़ा सकते .
चाहे नोटबंदी के कुप्रबंधन को लोगों ने 'अच्छी नीयत' के कारण माफ कर दिया हो, नागरिकता कानून से भारत के बहुसंख्यकों को कोई फर्क महसूस ना हो रहा हो या कृषि कानूनों पर आंदोलन को आपने खालिस्तानी और विदेशी एजेंट का 'नैरेटिव' बनाकर दबा दिया हो, लेकिन कोरोना की दूसरी लहर में ये सारे नैरेटिव उड़े हैं. लगातार दुनिया में सबसे ज्यादा नए केस भारत में आ रहे हैं और इलाज मिल नहीं रहा. ऐसे में लोकप्रियता का ग्राफ नीचे जाना लाजिमी है.
असम तथा पुडुचेरी में जीत के बावजूद बंगाल चुनाव से लेकर उत्तर प्रदेश पंचायत चुनाव हो या देश के विभिन्न राज्यों में हुए उपचुनाव, बीजेपी का खराब प्रदर्शन लोगों के बीच प्रधानमंत्री मोदी की लोकप्रियता पहले से कम होने का सबूत है?
यकीनन इन अप्रूवल रेटिंग एजेंसियों के आंकड़े लोकप्रियता को लेकर स्पष्ट जमीनी हालात बयां नहीं करते लेकिन लोगों का 'मूड' क्या है, यह जरूर बता देते हैं. करोना महामारी के बीच अपनों को लेकर अस्पतालों और श्मशानों के बाहर खड़ी भीड़ ने प्रधानमंत्री मोदी के 'पर्सनालिटी कल्ट' को कहीं इंकार करना तो शुरू नहीं कर दिया? वैसे ये अभी का मूड है. इसका भविष्य में कोई सियासी नतीजा होगा या नहीं, कह नहीं सकते.
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