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नसीरुद्दीन, मीरा नायर समेत 300 हस्तियों का CAA के खिलाफ खुला बयान 

बयान में कहा गया है कि CAA और NRC भारत के लिए खतरा हैं.

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भारत
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अभिनेता नसीरुद्दीन शाह, फिल्म निर्माता मीरा नायर, गायक टीएम कृष्णा, लेखक अमिताव घोष, इतिहासकार रोमिला थापर समेत 300 से ज्यादा हस्तियों ने नागरिकता संशोधन कानून (CAA) और राष्ट्रीय नागरिक पंजी (NRC) का विरोध करने वाले छात्रों और अन्य के साथ अपना समर्थन जताया है.

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‘इंडियन कल्चरल फोरम’ में प्रकाशित हुए बयान में इन हस्तियों ने कहा कि CAA और NRC भारत के लिए खतरा हैं.

बयान में कहा गया है, ‘‘हम CAA और NRC के खिलाफ प्रदर्शन करने वाले और बोलने वालों के साथ खड़े हैं. संविधान के बहुलवाद और विविध समाज के वादे के साथ भारतीय संविधान के सिद्धांतों को बनाए रखने के लिए उनके सामूहिक विरोध को सलाम करते हैं.’’ इसमें कहा गया है, ‘‘हम इस बात से अवगत हैं कि हम हमेशा उस वादे पर खरे नहीं उतरे हैं, और हममें से कई लोग अक्सर अन्याय को लेकर चुप रहते हैं. वक्त का तकाजा है कि हम सब अपने सिद्धांत के लिए खड़े हों.’’

बयान पर हस्ताक्षर करने वालों में लेखिका अनीता देसाई, किरण देसाई, अभिनेत्री रत्ना पाठक शाह, जावेद जाफरी, नंदिता दास, लिलेट दुबे, समाजशास्त्री आशीष नंदी, कार्यकर्ता सोहेल हाशमी और शबनम हाशमी शामिल हैं. इसमें कहा गया है कि मौजूदा सरकार की नीतियां और कदम धर्मनिरपेक्ष और समावेशी राष्ट्र के सिद्धांत के खिलाफ हैं, इन नीतियों को लोगों को असहमति जताने का मौका दिए बिना और खुली चर्चा कराए बिना संसद के जरिए जल्दबाजी में पास कराया गया है.

बयान के मुताबिक, “ भारत की आत्मा खतरे में है. हमारे लाखों भारतीयों की जीविका और नागरिकता खतरे में है. NRC के तहत, जो कोई भी अपनी वंशावली (जो कई के पास है भी नहीं) साबित करने में नाकाम रहेगा, उसकी नागरिकता जा सकती है.” बयान में कहा गया है कि NRC में जिसे भी “अवैध” माना जाएगा, उसमें मुस्लिमों को छोड़कर सभी को CAA के तहत भारत की नागरिकता दे दी जाएगी.

शख्सियतों ने कहा कि सरकार के घोषित उद्देश्य के विपरीत, CAA से लगता नहीं है कि इस कानून का मतलब केवल उत्पीड़ित अल्पसंख्यकों को शरण देना है. उन्होंने श्रीलंका, चीन और म्यांमार जैसे पड़ोसी देशों को CAA से बहार रखने पर सवाल किया है.

बयान में कहा गया है, “क्या ऐसा इसलिए है कि इन देशों में सत्तारूढ़ मुस्लिम नहीं हैं? ऐसा लगता है कि कानून का मानना है कि केवल मुस्लिम सरकारें धार्मिक उत्पीड़न की अपराधी हो सकती हैं. इस क्षेत्र में सबसे अधिक उत्पीड़ित अल्पसंख्यकों, म्यांमार के रोहिंग्या या चीन के उइगरों को बाहर क्यों रखा गया है? यह कानून केवल मुस्लिमों को अपराधी मानता है, मुस्लिमों को पीड़ित नहीं मानता है.” उन्होंने कहा कि लक्ष्य साफ है कि मुसलमानों का स्वागत नहीं है. बयान में कहा गया है कि नया कानून न केवल सत्ता की ओर से धार्मिक उत्पीड़न को लेकर नहीं है, बल्कि असम, पूर्वोत्तर और कश्मीर में “मूल निवासियों की पहचान और आजीविका” के लिए भी खतरा है. उन्होंने कहा है कि वे इसे माफ नहीं करेंगे.

बयान में जामिया मिल्लिया इस्लामिया और अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी जैसे देशभर की यूनिवर्सिटीज के छात्रों पर पुलिस की कार्रवाई की भी आलोचना की गई है.

शख्सियतों ने कहा, ‘‘पुलिस की बर्बरता ने सैकड़ों लोगों को घायल कर दिया है, जिसमें जामिया मिल्लिया इस्लामिया और अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के कई छात्र शामिल हैं. विरोध करते हुए कई नागरिक मारे गए हैं. कई और लोगों को अस्थायी रूप से हिरासत में रखा गया है. विरोध को रोकने के लिए कई राज्यों में धारा 144 लगाई गई.’’

उन्होंने कहा कि बहुत हो चुका और वे भारत के धर्मनिरपेक्ष और समावेशी विजन के लिए खड़े हैं. बयान में कहा गया है, “हम उन लोगों के साथ खड़े हैं जो मुस्लिम विरोधी और विभाजनकारी नीतियों का बहादुरी से विरोध करते हैं. हम उन लोगों के साथ खड़े हैं जो लोकतंत्र के लिए खड़े हैं. हम सड़कों पर और सभी प्लेटफॉर्मों पर आपके साथ रहेंगे. हम एकजुट हैं.”

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