ADVERTISEMENTREMOVE AD

Civil Services Day: सरकार के खिलाफ जब-जब खड़े हुए अफसर

साल 2006 से 21 अप्रैल को नेशनल सिविल सर्विस डे के रूप में मनाया जाता है.

Updated
story-hero-img
छोटा
मध्यम
बड़ा

21 अप्रैल 1947 को गृहमंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल ने अखिल भारतीय सेवाओं का उद्घाटन किया था. दिल्ली के मेटकॉफ हाउस में अखिल भारतीय प्रशासनिक सेवा प्रशिक्षण स्कूल में भावी अधिकारियों को संबोधित करते हुए उन्होंने सिविल सेवकों को भारत का “स्टील फ्रेम” कहा था. इसके बाद से साल 2006 से 21 अप्रैल को नेशनल सिविल सर्विस डे के रूप में मनाया जाता है.

सिविल सर्विसेज अफसरों की जिम्मेदारी सरकार के नीति निर्माण में सहयोग तथा उसको जमीन पर लागू करने की होती है. आज लोकतंत्र में राजनीति के सामने घुटने टेक देना आम और व्यापक बीमारी का रूप लेती जा रहा है. लेकिन इसी देश में कुछ ऐसे अफसर भी रहे जिन्होंने नेताओं को नहीं, नियम कानून को अपना माना. जानते हैं ऐसे ही कुछ अफसरों से.
ADVERTISEMENTREMOVE AD

अशोक खेमका

हरियाणा कैडर के IAS ऑफिसर अशोक खेमका को 27 साल के सिविल सेवा करियर में 53 दफे तबादला झेलना पड़ा. उनकी गलती सिर्फ यह थी कि राजनीतिक आकाओं के सामने उन्होंने समझौता करने से इंकार कर दिया.

खड़कपुर IIT से 1988 में टॉप करके 1991 में सिविल सेवा पास करने वाले खेमका पहली बार सुर्खियों में तब आए, जब उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के दामाद रॉबर्ट वाड्रा और रियल स्टेट जायंट DLF के बीच जमीन सौदे को अवैध घोषित कर दिया. कांग्रेस के शासन में होने के बावजूद उनके इस कदम को लोगों ने ‘सुसाइडल मूव’ कहा लेकिन खेमका ने समझौता नहीं किया.

“अशोक खेमका जैसे कुछ ही लोग होते हैं जो कभी भी अपनी नैतिकता और ईमानदारी से कर्तव्यों को पूरा करने में समझौता नहीं करते.”
जी एस सिंघवी ,पूर्व SC जज

हर्ष मंदर

“कर्मचारियों ने मेरा आर्डर मानने से इनकार कर दिया था. मैं रिलीफ कैंप गया और वहां दंगे की वो कहानियां सुनी जो भयावह थी. बच्चों ,महिलाओं तक को नहीं छोड़ा गया था. मैं तभी जान गया था कि यह सरकार प्रायोजित कत्लेआम था.”

हर्ष मंदर ने टाइम्स ऑफ इंडिया में ‘क्राई, द विलवेड कंट्री’ (Cry, The Beloved country) नामक लेख लिखकर IAS से त्यागपत्र दे दिया. बाद से इन 17 सालों में उन्होंने भोजन के अधिकार, आदिवासी, दलित औरतों की सुरक्षा और भीड़ द्वारा मारे गए लोगों के लिए इंसाफ की लड़ाई लड़ी है. CAA को लेकर विरोध प्रदर्शन और दिल्ली दंगों को उकसाने का आरोप लगाते हुए उन पर मामले दर्ज कर सरकार उन्हें चुप कराने की कोशिश अभी भी कर रही है.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

रूपा दिवाकर मौदगिल

रूपा दिवाकर कर्नाटक की पहली महिला IPS अफसर है. अपने 18 साल के करियर में इनका 41 बार ट्रांसफर हुआ है. रूपा राजनेताओं और अपने सीनियर अफसरों के खिलाफ स्टैंड लेने के लिए जानी जाती है. उन्होंने उस समय AIDMK की अंतरिम जनरल सेक्रेटरी शशिकला को जेल में दिए जा रहे विशेष सुविधाओं का खुलासा किया था.

2004 में मध्य प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती के गिरफ्तारी की वजह भी रूपा दिवाकर ही थी. साथ ही उन्होंने कर्नाटक सीएम येदुरप्पा के गाड़ी के काफिले को भी हटाया था.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

यू सागायुम

तमिलनाडु में लोग अक्सर इन्हें U Sagayum: IAS ही बुलाते हैं. हाल के वर्षों में तो लोग ‘सागायुम फॉर सीएम’ और ‘सागायुम फॉर प्रेसिडेंट’ तक के नारे लगाते हैं.

55 वर्ष के सागायुम की पहचान उनके भ्रष्टाचार विरोधी और ईमानदार तेवर के लिए है. 27 साल के करियर में 25 बार ट्रांसफर झेलने वाले सागायुम ने 1989 में UPSC परीक्षा पास की. पहली बार ये सुर्खियों में तब आए जब उन्होंने 1999 में डिस्ट्रिक्ट रेवेन्यू ऑफिसर के रूप में गंदगी पाए जानी के बाद पेप्सी जैसे मल्टीनेशनल कंपनी के प्रोडक्शन यूनिट को बंद कर दिया.

2011 में मदुरै में कलेक्टर के रूप में चुनाव आयोग द्वारा पोस्ट किए जाने के बाद 2 आईपीएस ऑफिसरों के साथ मिलकर मदुरै के ग्रामीण हिस्सों में वोटरों को पैसा देने की कई घटनाओं को रोका तथा उस समय के मुख्यमंत्री करुणानिधि के पुत्र और केंद्रीय मंत्री एमके अलागिरी के खिलाफ मामला भी दर्ज किया.

जब सब चुप रहने को आसान और बुद्धिमत्ता पूर्ण मानते हों तब सगायुम लोगों के हक के लिए बोल रहे थे.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

चित्रा टेरेसा जॉन

2015 बैच की केरल कैडर की IPS अफसर चित्रा टेरेसा जॉन ने 24 जनवरी 2019 को पुलिस स्टेशन पर हमले में कथित तौर पर शामिल पार्टी कार्यकर्ताओं को पकड़ने के लिए सत्तारूढ़ सीपीआईएम के दफ्तर की तलाशी ली थी. चित्रा के इस एक्शन के बाद राज्य सरकार ने उनसे तिरुवंतपुरम डीसीपी (कानून व्यवस्था)का अतिरिक्त भार तत्काल प्रभाव से ले लिया. गृह मंत्रालय का कार्यभार देखने वाले मुख्यमंत्री विजयन ने उन पर जांच के आदेश दे दिए. इसके बाद भी वह अपने फैसले पर डटी रही.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

कनन गोपीनाथन

2012 बैच के आईएएस ऑफिसर कनन गोपीनाथन ने आर्टिकल 370 के हटाने जाने के बाद जम्मू कश्मीर में मानवाधिकार के उल्लंघन के विरोध स्वरूप इस्तीफा दे दिया. उनके मुताबिक उनका यह इस्तीफा सरकार की तानाशाही रवैए के खिलाफ था.

सरकार ने अभी भी उनका इस्तीफा स्वीकार नहीं किया है और पिछले साल अप्रैल में आपदा प्रबंधन एक्ट के तहत इन पर सेवा में लौटने का दबाव बनाया गया. साथ ही इन पर FIR भी दर्ज किया गया.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

शैलेंद्र सिंह

जनवरी 2004 में यूपी स्पेशल टास्क फोर्स की वाराणसी यूनिट के प्रभारी डिप्टी एसपी शैलेंद्र सिंह ने बीजेपी विधायक कृष्णानंद राय की हत्या के लिए मुख्तार अंसारी के द्वारा एलएमजी खरीदे जाने का खुलासा किया था. साथ ही उन्होंने एलएमजी बरामद कर मुख्तार पर पोटा एक्ट भी लगाया था .

तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम के भारी राजनीतिक दबाव और उच्च अफसरों के कहने पर भी उन्होंने मुख्तार पर से पोंटा हटाने से इनकार कर दिया. बढ़ते दबाव के बाद शैलेंद्र सिंह ने यूपी पुलिस की नौकरी से इस्तीफा दे दिया. बाद में सरकार ने उन पर डीएम दफ्तर में तोड़फोड़ और मारपीट का मामला दर्ज करते हुए उन्हें जेल भी भेजा और पुलिस ने चार्जशीट तक कोर्ट में दाखिल कर दिया. यह मुकदमा योगी सरकार ने हाल ही में वापस लिया है.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

संजय चतुर्वेदी

2002 बैच के IFS ऑफिसर संजय चतुर्वेदी का 2005 से 2010 के बीच 12 बार तबादला हुआ. 2009 में संजय चतुर्वेदी ने झज्जर, हरियाणा के डिविजनल फॉरेस्ट ऑफिसर के रूप में राज्य सरकार और अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों के करोड़ों के फंड का पौधारोपण के नाम पर घोटाले करने का खुलासा किया .

बाद में एम्स दिल्ली के चीफ विजिलेंस ऑफिसर के रूप में उन्होंने 200 से ज्यादा मामले भ्रष्ट डॉक्टरों और फार्मा कंपनियों पर दर्ज किए. इसके बाद 2014 में मोदी सरकार ने उन्हें उस पद से हटा दिया था.

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

Published: 
सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
×
×