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शिक्षा नीति: 5वीं तक मातृभाषा में पढ़ाई, phD-UG-PG में बड़े बदलाव

भारत सरकार ने 34 साल बाद नई शिक्षा नीति को मंजूरी दे दी है

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भारत सरकार ने 34 साल बाद नई शिक्षा नीति को मंजूरी दे दी है. कई बड़े बदलाव किए गए हैं. अब रिसर्च के लिए उच्च शिक्षा में अलग व्यवस्था की गई है. साथ ही प्रोफेशनल कोर्सेज के छात्र अपनी पसंद के मुताबिक माइनर सब्जेक्ट का चयन कर सकेंगे. तीन साल डिग्री के साथ एक साल एमए करके एमफील करने की जरूरत नहीं होगी.मल्टीपल एंट्री और एग्जिट सिस्टम में पहले साल के बाद सर्टिफिकेट, दूसरे साल के बाद डिप्लोमा और तीन-चार साल बाद डिग्री दी जाएगी. प्राइमरी एजुकेशन के बारे में बात करें तो 5वीं तक की पढ़ाई क्षेत्रीय भाषा या मातृभाषा में ही कराई जाएगी. बोर्ड एग्जाम को नॉलेज बेस्ड बनाया जाएगा. हालांकि नॉलेज बेस्ड से क्या मतलब है इस पर अभी सफाई की जरूरत है.

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शिक्षा नीति में बदलाव को लेकर इस प्रेस कॉन्फ्रेंस में बताया गया कि 1986 में नेशनल पॉलिसी ऑन एजुकेशन (एनपीई) को लाया गया था. जिसके बाद 1992 में इसमें थोड़ा संशोधन किया गया. इसके बाद सरकार ने दो कमेटी बनाईं, जिसमें साल 2016 में टीएसआर सुब्रमण्यम कमेटी ने अपनी रिपोर्ट सौंपी. इसके बाद इसरो के वैज्ञानिक रह चुके डॉक्टर के कस्तूरीरंगन कमेटी की रिपोर्ट 31 मई 2019 में मिली. अब आखिरकार शिक्षा नीति में बदलाव किया जा रहा है.

अब जीडीपी का कुल 6 फीसदी शिक्षा पर खर्च करने का लक्ष्य तैयार किया गया है. फिलहाल भारत की जीडीपी का 4.43% हिस्सा शिक्षा पर खर्च होता है. 
भारत सरकार ने 34 साल बाद नई शिक्षा नीति को मंजूरी दे दी है

बीच में पढ़ाई छोड़ने वालों का नहीं होगा नुकसान

2035 तक 50 फीसदी ग्रॉस इनरॉल्मेंट रेशियो तक पहुंचने के लिए नई होलिस्टिक एजुकेशन की नई व्यवस्था लाई जा रही है. जिसका सबसे बड़ा अंग है मल्टीपल एंट्री और एग्जिट.

आज अगर 4 सेमेस्टर या 6 सेमेस्टर पढ़ने के बाद मैं किसी कारणवश आगे नहीं पढ़ सकता हूं तो मैं आउट ऑफ द सिस्टम हो जाता हूं. लेकिन अब मल्टीपल एंट्री और एग्जिट सिस्टम में अब एक साल के बाद सर्टिफिकेट, दो साल के बाद डिप्लोमा और तीन या चार साल के बाद डिग्री दी जाएगी.

आधी पढ़ाई नहीं जाएगी बेकार

इसके अलावा मल्टीपल एंट्री में जैसे बैंक का सेविंग अकाउंट होता है, वैसे ही डिजी लॉकर की मदद से फर्स्ट एयर और सेकेंड एयर के क्रेडिट जमा रहेंगे. यानी अगर तीसरे साल में आप किसी कारण से ब्रेक लेना चाहते हैं और एक तय समयसीमा पर वापस आते हैं तो आपको फर्स्ट ईयर की बजाय सीधे थर्ड ईयर में एडमिशन मिलेगा. क्योंकि अकेडमिक क्रेडिट बैंक में पहले से ही आपके क्रेडिट मौजूद होंगे.

जो लोग अगर 4 साल डिग्री प्रोग्राम करेंगे उनके लिए सीधे पीएचडी में जाने की सुविधा दी गई है. जो रिसर्च में जाना चाहते हैं उनके लिए ये व्यवस्था है. यानी तीन साल डिग्री के साथ एक साल एमए करके एम फिल की जरूरत नहीं होगी.

इंजीनियरिंग के साथ सीख सकते हैं म्यूजिक

मल्टीपल डिसिप्लनरी एजुकेशन में अब आप किसी एक स्ट्रीम के अलावा दूसरा सब्जेक्ट भी ले सकते हैं. यानी अगर आप फिजिक्स ऑनर्स करते हैं तो आप सिर्फ केमिस्ट्री, मैथेमेटिक्स, जूलॉजी या बॉटनी ले सकते हैं, उसके साथ फैशन डिजाइनिंग नहीं ली जा सकती थी. लेकिन अब मेजर प्रोग्राम के अलावा माइनर प्रोग्राम भी लिए जा सकते हैं. इससे उन्हें फायदा होगा, जो ड्रॉपआउट हो जाते हैं. वहीं कई दूसरे विषयों में रुचि रखने वालों के लिए भी ये फायदेमंद होगा.

ग्रेडेड ऑटोनमी

देश में एफिलिएटेड कॉलेजों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है. किसी-किसी यूनिवर्सिटी में तो ये संख्या 800 तक पहुंच चुकी है. जिससे शिक्षा की गुणवत्ता में गिरावट आती है. अब ग्रेडेड ऑटोनमी की व्यवस्था से ग्रेडिंग सिस्टम के हिसाब से होगी. यानी जिसकी ग्रेड A+ होगी उन्हें ज्यादा कॉलेज मिलेंगे. वहीं इसी तरह बाकी ग्रेड्स को भी ऑटोनमी मिलेगी.

स्कूली शिक्षा में अहम बदलाव

  • अब स्कूली शिक्षा के लिए नया पाठ्यक्रम लाया जाएगा. इसके अलावा टीचर्स एजुकेशन जिसे 11 साल पहले बनाया गया था उसे भी अब हाथ में लिया जाएगा. वहीं अर्ली चाइल्डहुड एजुकेशन के लिए भी ऐसा फ्रेमवर्क बनेगा, जिसमें पेरेंट्स को बताया जाएगा कि आप घर पर क्या कर सकते हैं.
  • बोर्ड एग्जाम के लिए हर सब्जेक्ट को दो लेवल पर ऑफर किया जा सकता है. इसके अलावा बोर्ड एग्जाम के महत्व को कम करने के लिए इसे साल में एक बार होना जारूरी नहीं है, ये दो बार हो सकते हैं. बोर्ड एग्जाम को दो भागों में बांटा जाएगा जिसमें एक एग्जेक्टिव और दूसरा डिस्क्रिप्टिव.
  • बोर्ड एग्जाम के लिए कहा गया है कि ये सिर्फ नॉलेज को टेस्ट करे. जो रटकर याद किया गया है उसे टेस्ट नहीं किया जाए. जबकि उन चीजों को इस एग्जाम में टेस्ट करें जो रोजमर्रा की चीजों में आप इस्तेमाल करेंगे.

पांचवी कक्षा तक क्षेत्रीय भाषा में पढ़ाई

  • पांचवी कक्षा तक मातृभाषा या क्षेत्रीय भाषा में पढ़ाया जाए. हो सके तो इसे 8वीं तक पढ़ाया जाए. इसके अलावा रिपोर्ट कार्ड में तीन तरह के मूल्यांकन होंगे. जिसमें पहला मूल्यांकन बच्चा खुद करेगा, दूसरा उसके सहपाठी करेंगे और तीसरा टीचर्स करेंगे. इस रिपोर्ट कार्ड में बच्चे की लाइफ स्किल पर भी चर्चा होगी.
  • हर बच्चे के लर्निंग आउटकम को ट्रैक करना होगा. इसके अलावा नेशनल एसेसमेंट सेंटर जिसका नाम परख रखा गया है. उसमें बताया जाएगा कि बच्चों को परखने के लिए क्या करना चाहिए.
  • नेशनल टेस्टिंग एजेंसी हर कॉलेज और यूनिवर्सिटी को एक एंट्रेंस एग्जामिनेशन ऑफर करेगी, ताकि बच्चे एक कॉमन एग्जाम से यूनिवर्सिटी में एडमिशन ले सकें.
  • टीचर्स के लिए एक नेशनल प्रोफेशनल स्टैंडर्ड तैयार किया जाएगा. जिससे टीचर्स का रोल क्या है और उन्हें किस बेंचमार्क तक पहुंचना है इसे तय किया जाएगा. ये पूरे देश में लागू होगा.
  • स्कूल पॉलिसी में लिखा गया है कि जब भी बच्चा 12वीं पास करके निकलेगा तो वो अपनी एक स्किल में माहिर होकर जाएगा. यानी जिसमें वो सबसे सफल है, वो स्किल उसे पता होगी.

केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने कहा कि ये नई शिक्षा नीति नए भारत के निर्माण में मील का पत्थर साबित होगी. निशंक ने कहा कि पूरी दुनिया में किसी भी नीति पर इतनी रिसर्च नहीं हुई होगी. उन्होंने बताया कि अब मानव संसाधन मंत्रालय को शिक्षा मंत्रालय के नाम से जाना जाएगा.

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