ADVERTISEMENTREMOVE AD

National Statistics Day: किसान, क्रिप्टो से बिन ऑक्सीजन मौत तक, डेटा क्यों नहीं?

national statistics day 2022 : सरकार ने कई मौकों और सवालों पर कहा है कि उसेके पास कोई डाटा नहीं है.

Updated
story-hero-img
i
छोटा
मध्यम
बड़ा

आज नेशनल स्टैटिस्टिक्स डे (National Statistics Day 2022) है. इस समय डाटा का दौर चल रहा है. आंकड़ों के इस युग में हर जगह आंकड़ेबाजी देखने को मिल रही है. सरकार भी अपनी पीढ़ थपथपाने के लिए मनचाहा आंकड़ा मनचाहे समय और मनचाहे तरीके से जारी करती है.

वहीं जब सदन के अंदर या सदन के बाहर सरकार से कोई और आंकड़े से जुड़ा सवाल करता है तो सरकार का एक जवाब होता 'हमारे पास आकंड़े उपलब्ध नहीं है.' पिछले कुछ वर्षों में जहां दुनिया डाटा युग में तेजी से नंबर पर बात करने लगी है वहीं हमारी सरकार आंकड़ों को छिपाने में लगा है.

ADVERTISEMENTREMOVE AD
इसे देखकर ऐसा लगता है जैसे सरकार "नो डाटा कंट्री" की तरफ आगे बढ़ रही है. सोशल मीडिया में तो सरकार पर तंज कसते हुए NDA को 'नो डाटा अवेलेबल' तक कहा जा रहा है. आइए सांख्यिकी दिवस पर कुछ ऐसे मामलों पर नजर दौड़ाते हैं, जब सरकार ने कई मौकों और सवालों पर यह कहा है कि उनके पास कोई डाटा ही नहीं है, वहीं अगर कोई आंकड़ा या रिपोर्ट सरकार के खिलाफ है तो उसे नकार दिया.

पर्यावरण प्रदर्शन सूचकांक (EPI) को मोदी सरकार ने नकारा

हालिया मामले पर नजर दौड़ाएं तो पर्यावरण प्रदर्शन सूचकांक (EPI) 2022 को मोदी सरकार ने खारिज कर दिया है. दरअसल पर्यावरण को लेकर जारी किए गए इस सूचकांक में भारत को 180 देशों की सूची में सबसे निचले पायदान पर रखा गया है. इस वजह से केंद्र सरकार ने पर्यावरण प्रदर्शन सूचकांक 2022 की रिपोर्ट का पूरी तरह से खंडन किया है. यह रिपोर्ट येल सेंटर फॉर एनवायर्नमेंटल लॉ एंड पॉलिसी और कोलंबिया यूनिवर्सिटी के ‘सेंटर फॉर इंटरनेशनल अर्थ साइंस इंफॉर्मेशन नेटवर्क’ की ओर प्रकाशित की गई थी. भारत को म्यांमार, वियतनाम, बांग्लादेश और पाकिस्तान से भी बदतर बताया गया है.

केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने कहा कि सूचकांक में इस्तेमाल किए गए सूचक अनुमानों और अवैज्ञानिक तरीकों पर आधारित है.

ग्लोबल हंगर इंडेक्स को भी केंद्र सरकार ने किया था खारिज 

पिछले साल जब वैश्विक भुखमरी सूचकांक यानी ग्लोबल हंगर इंडेक्स 2021 जारी किया गया था तब भी सरकार ने हंगर इंडेक्स की मैथडोलॉजी और आंकड़ों पर सवाल उठाए थे और इस रिपोर्ट को खारिज किया था. ग्लोबल हंगर इंडेक्स लिस्ट में शामिल 116 देशों में से भारत को 101वें पायदान पर रखा गया था. इस इंडेक्स के डाटा के मुताबिक भारत भुखमरी के मामले में अपने पड़ोसी देश पाकिस्तान, नेपाल और बांग्लादेश से भी अच्छी स्थिति में नहीं है.

महिला और बाल विकास मंत्रालय ने तीखी टिप्पणी करते हुए हंगर इंडेक्स में भारत की स्थिति के बारे में कहा था कि रिपोर्ट जमीनी वास्तविकता और तथ्यों से परे है. इसके साथ ही मंत्रालय ने यह भी कहा था कि इंडेक्स को बनाने के लिए जिस मैथड को अपनाया गया है वो साइंटिफिक नहीं है.

WHO के डाटा पर सरकार ने उठाई थी आपत्ति 

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की ओर से मई 2022 में जारी एक रिपोर्ट में यह अनुमान जताया गया था कि भारत में कोरोना वायरस संक्रमण से पिछले दो वर्षों (2020-21) में लगभग 47 लाख लोगों की मौत हुई है. मोदी सरकार के आधिकारिक आंकड़ों की तुलना में यह डाटा (संख्या) करीब 10 गुना बड़ा था. डब्ल्यूएचओ ने भारत में मृतकों की जो संख्या बताई थी वह संख्या दुनियाभर में हुई मौतों की एक तिहाई थी. ऐसे में सरकार ने WHO की रिपोर्ट पर ही सवाल उठा दिए.

WHO के आंकड़ों पर सवाल हुए केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने एक बयान में कहा था कि भारत डब्ल्यूएचओ द्वारा गणितीय मॉडल के आधार पर अधिक मृत्यु दर का अनुमान लगाने के लिए अपनाई गई कार्यप्रणाली पर लगातार आपत्ति जताता रहा है. इन आंकड़ों पर भारत का कहना था कि कोरोना से हुई मौतों के आंकड़े बहुत बढ़ा चढ़ाकर पेश किए गए हैं. आंकड़े तैयार करने के लिए इस्तेमाल किए गए माॅडल और कार्यप्रणाली की वैधता संदिग्ध है.

लॉकडाउन के दौरान कितने प्रवासियों की जान गई? सरकार ने कहा हमारे पास कोई आंकड़े नहीं

लॉकडाउन की घोषणा होने के तुरंत बाद ही लाखों की संख्या में प्रवासी मजदूर सड़कों पर आ गए थे और पैदल ही घर जाने लगे थे. इस दौरान कई मजदूरों की एक्सीडेंट, भूख-प्यास और तबीयत खराब होने वजह से मौत की खबर भी आई थीं. इस पर विपक्ष ने मोदी सरकार से सवाल किए थे.

2020 में मॉनसून सत्र के दौरान लोकसभा में विपक्ष की ओर से कई सांसदों ने सरकार से यह सवाल पूछा था कि लॉकडाउन दौरान देश में कितने प्रवासी मजदूरों की जान गई? इसके जवाब में सरकार की ओर से कहा गया था कि हमारे पास ऐसा कोई डाटा नहीं है. केंद्र सरकार की ओर से सवालों का जवाब मंत्री संतोष कुमार गंगवार ने लिखित में दिया था.

इस जवाब के उलट अगर कुछ अहम घटनाओं पर ही नजर दाैड़ाएं तो सच्चाई अलग ही होगी.

  • 8 मई 2020 को औरंगाबाद में एक बड़ा हादसा हुआ था. औरंगाबाद में रेल हादसे में 16 प्रवासी मजदूर मारे गए हैं. ये सभी मध्य प्रदेश के रहने वाले थे. इनमें 10 शहडोल और 5 उमरिया के रहने वाले थे.

  • 16 मई को उत्तर प्रदेश के औरैया जिले में हाईवे पर खड़ी एक ट्रक कंटेनर को पीछे से आ रही एक गाड़ी ने टक्कर मार दी थी. इस कंटेनर में पश्चिम बंगाल, झारखंड, बिहार, पूर्वी उत्तर प्रदेश और बुंदेलखंड के 80 प्रवासी मजदूर सवार थे, जो राजस्थान, हरियाणा और दिल्ली से अपने घरों की तरफ आ रहे थे. इस भीषण टक्कर में 25 प्रवासी मजदूरों की मौत हो गई थी जबकि 35 गंभीर रूप से घायल हो गए थे.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

ऑक्सीजन की कमी से हुई मौतों का भी आंकड़ा नहीं

राज्यसभा में मॉनसून सत्र (2021) के दौरान विपक्ष ने सरकार से कोरोना को लेकर कई सवाल पूछे थे. इनमें कोरोना के आंकड़े छिपाने के आरोपों से लेकर ऑक्सीजन की कमी जैसे सवाल भी शामिल थे. केसी वेणुगोपाल ने ऑक्सीजन की कमी से हुई मौतों और ऑक्सीजन सप्लाई को लेकर सवाल पूछा था.

इस सवाल के लिखित जवाब में केंद्रीय स्वास्थ्य राज्य मंत्री डॉक्टर भारती प्रवीण पवार ने कहा था कि, ''स्वास्थ्य राज्य का मसला है. मौत की रिपोर्टिंग को लेकर केंद्र ने राज्य सरकारों के लिए दिशा-निर्देश जारी किए थे. इसी के अनुसार राज्य केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय को केस और मौतों के बारे में जानकारी देते थे. हालांकि, किसी भी केंद्र शासित प्रदेश या राज्य ने ऑक्सीजन की कमी से हुई मौतों के बारे में कोई जानकारी नहीं दी.''

कुल मिलाकर राज्यसभा में सरकार ने कहा कि ''ऑक्सीजन की कमी से किसी की मौत हुई, राज्यों से ऐसी कोई सूचना नहीं मिली.'' सरकार के इस जवाब की आलोचना भी हुई.

दूसरी लहर के दौरान गंगा में तैरती लाशों का डाटा भी नहीं है

टीमएमसी TMC सांसद डेरेक ओ ब्रायन ने मोदी सरकार से गंगा में कोरोना की दूसरी महामारी के दौरान तैरती मिली लाशों का डेटा मांगा था. इसके जवाब में केंद्रीय जल शक्ति राज्यमंत्री बिश्वेश्वर टुडू ने राज्य सभा को बताया था कि सरकार के पास ऐसा कोई भी डेटा मौजूद नहीं है.

कोई हाथ से मैला नहीं ढो रहा न ही मौत हुई : सरकारी आंकड़ा

मोदी सरकार के सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री वीरेंद्र कुमार ने राज्यसभा में यह जानकारी दी है कि हाथ से मैला ढोने यानि मैनुअल स्केवेंजिंग के कारण किसी व्यक्ति की मौत होने की कोई रिपोर्ट नहीं है. ये दावा सही नहीं लगता है.

  • इंडियन एक्सप्रेस की खबर के मुताबिक मार्च में मुंबई के एक इलाके में सीवर की सफाई के लिए टैंक में उतरे तीन मजदूरों की मौत हो गई थी.

  • द हिंदू की एक रिपोर्ट के मुताबिक, सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय ने फरवरी 2021 में लोकसभा में खुद बताया था कि पिछले पांच सालों में सीवर और सेप्टिक टैंक साफ करने के दौरान 340 लोगों की मौत हो गई है. 31 दिसंबर 2020 तक, मैला ढोने से कुल 340 लोगों की मौत हुई थी और 19 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में ये मौतें दर्ज की गई थीं. इसमें सबसे ज्यादा उत्तर प्रदेश (52), फिर तमिलनाडु (43), दिल्ली (36), महाराष्ट्र (34), हरियाणा (31) और गुजरात (31) में थीं.

  • जनवरी 2019 में मीरा रोड पर ऐसे ही वाकये में तीन मजदूरों की मौत हो गई थी. नालासोपारा में भी तीन मजदूर तब मारे गए जब वो प्राइवेट सोसायटी के सेप्टिक टैंक में सफाई के लिए उतरे थे. ऐसी ही घटना थाने में हुई थी, वहां भी तीन युवक मारे गए थे. मुंबई के ही मालवानी में 2017 में तीन मजदूर सेप्टिक टैंक में उतरने के बाद दम तोड़ गए तो डोंबीवली में पिता-पुत्र की जान से हाथ धोना पड़ा था.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

उच्च बेरोजगारी वाली रिपोर्ट को सरकार ने बताया फाइनल नहीं

2019 में भारत सरकार की एक रिपोर्ट लीक हुई थी जिसको लेकर दावा किया जा रहा था कि उस समय बेरोजगारी की दर 1970 के दशक के बाद से सबसे ज्यादा है. इस रिपोर्ट के सार्वजनिक होने के बाद नीति आयोग के अध्यक्ष राजीव कुमार ने प्रेस कॉन्फ्रेंस करके बताया था कि ये फाइनल रिपोर्ट नहीं थी.

दरअसल जनवरी 2019 में बिजनेस स्टैंडर्ड अखबार ने दावा किया था कि एनएसएसओ (NSSO) की एक अप्रकाशित रिपोर्ट से पता चला है कि 2017-18 में भारत में बेरोजगारी 45 साल में सबसे ऊंचे स्तर पर थी. ऐसा माना जाता है कि इस रिपोर्ट को दबा कर रखने की ही वजह से राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग के कार्यकारी अध्यक्ष पीसी मोहनन और गैर सरकारी सदस्य जेवी मीनाक्षी ने आयोग से इस्तीफा दे दिया था.

टुकड़े-टुकड़े गैंग का हल्ला खूब हुआ, लेकिन सरकार को जानकारी नहीं

आरटीआई कार्यकर्ता साकेत गोखले ने एक आरटीआई आवेदन दायर कर गृह मंत्रालय से पूछा था कि टुकड़े-टुकड़े गैंग कैसे और कब बना? इसके सदस्य कौन-कौन हैं? इस सवाल पर गृह मंत्रालय ने अपने जवाब में कहा था कि ‘गृह मंत्रालय के पास टुकड़े-टुकड़े गैंग से संबंध कोई जानकारी नहीं है.’

जान गंवाने वाले फ्रंट लाइन वर्कर की जानकारी नहीं

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के पास कोरोना वायरस से संक्रमित होने वाले और जान गंवाने वाले फ्रंट लाइन हेल्थ वर्कर जैसे डॉक्टर, नर्स और आशा वर्कर आदि का डेटा नहीं है. केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण राज्यमंत्री अश्विनी कुमार चौबे ने राज्यसभा में दिए अपने लिखित बयान में कहा, 'स्वास्थ्य राज्य का विषय है. इस तरह का डाटा केंद्रीय स्तर पर स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय नहीं रखता है.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

इस पर भी NDA सरकार ने कहा 'नो डाटा अवलेबल'

काला धन :

लोकसभा में कांग्रेस सांसद विन्सेंट एच पाला के सवाल के लिखित जवाब में वित्त राज्य मंत्री पंकज चौधरी ने कहा था कि पिछले दस साल में स्विस बैंकों में कितना काला धन छिपाया गया है उसे इस बारे में कोई आधिकारिक अनुमान नहीं है.

क्रिप्टो एक्सचेंज :

निजी क्रिप्टो करेंसी एक्सचेंजों की संख्या के बारे में जब सरकार से सवाल किया गया था तब वित्त मंत्री ने संसद में एक लिखित जवाब में कहा था कि "यह जानकारी सरकार द्वारा एकत्र नहीं की जाती है."

कोविड से पुलिसकर्मियों की मौत :

लाइवलॉ रिपोर्ट के अनुसार लोकसभा में गृह मंत्रालय ने कहा था कि "केंद्र सरकार उन पुलिसकर्मियों का डाटा मेंटेन नहीं करती है जिनकी मौत कोविड 19 से हुई है."

किसानों की मौत :

किसान आंदोलन के दौरान किसानों की मौत और उनको मुआवजा देने से संबंधित भी सरकार से किया गया था. लोकसभा में मोदी सरकार से सवाल किया गया था कि जिन किसानों की मौत हुई है, उनके परिजनों को मुआवजा देने के लिए सरकार की तरफ से कोई प्रस्ताव तैयार किया गया है या नहीं?

इस सवाल पर कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर ने एक लिखित उत्तर में संसद को बताया था कि सरकार के पास किसानों की मौतों का कोई रिकॉर्ड उपलब्ध नहीं है. ऐसे में उन्हें मुआवजा दिए जाने या फिर इस संबंध में कोई सवाल ही नहीं उठता है.

किसानों की आमदनी :

मोदी सरकार ने 2013 के बाद से राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) ने किसानों की आय को लेकर अपनी रिपोर्ट प्रकाशित नहीं की है. तब से किसानों की आमदनी को लेकर कोई सर्वेक्षण नहीं किया गया है. 2021 में कई सांसदों ने सामूहिक रूप से किसानों की आमदनी को लेकर कई सवाल पूछे थे जिसमें एक सवाल यह भी था कि देश में किसानों की आय पर अंतिम सर्वेक्षण कब किया गया. तब पता चला था कि एनएसओ की आखिरी रिपोर्ट 2013 में आयी थी.

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

Published: 
सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
×
×