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जंतर मंतर पर जख्मी लोकतंत्र, भीड़ क्यों रिपोर्टर से बोली - बोल जय श्री राम?

नेशनल दस्तक के जिस पत्रकार अनमोल प्रीतम से जोर जबरदस्ती की गई, उनसे क्विंट की खास बातचीत

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वीडियो प्रोड्यूसर / एडिटर: कनिष्क दांगी

वेबसाइट नेशनल दस्तक के पत्रकार अनमोल प्रीतम (Anmol Pritam) से जबरन 'जय श्री राम' का नारा लगाने को कहा गया. उन्हें धमकी दी गई. उन्हें बेइज्जत किया गया. ये सब उस जंतर मंतर पर हुआ जो हाई सिक्योरिटी जोन है. जहां पुलिस का पूरा पहरा रहता है. लेकिन फिर ये भीड़ अनमोल को काफी देर तक प्रताड़ित करती रही. अनमोल यहां 8 अगस्त को बीजेपी नेता अश्विनी उपाध्याय (Ashwini Upadhyay) के बुलाए प्रदर्शन को कवर करने आए थे. मौका-ए-वारदात पर कैसे सूरत बिगड़ी ये क्विंट ने अनमोल से विस्तार पूर्वक पूछा.

द क्विंट से अनमोल ने बताया -''जैसे ही मैं उनसे बातचीत करना शुरू किया, उन्हीं लोगों में से सवाल आया कि देश की सबसे बड़ी समस्या रोहिंग्या मुसलमान हैं. इसके बाद मैंने उनसे कहा कि सात साल से देश में बीजेपी की सरकार है, नरेन्द्र मोदी देश के प्रधानमंत्री हैं तो आप लोग उनसे क्यों नहीं पूछते. अगर रोहिंग्या मुसलमान देश में इतनी बड़ी समस्या हैं तो उनसे पूछिए कि हल क्या निकाला जा रहा है, और अब तक समाधान क्यों नहीं निकाला गया.

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जय श्रीराम का नारा लगवाने के लिए जोर-जबरदस्ती

जय श्री राम का नारे की नौबत क्यों आई इसके बारे में अनमोल ने बताया- ''उसमें से अचानक एक लड़का चिल्लाकर आया और मुझे प्वाइंट आउट करके बोला कि यह एक जिहादी चैनल है. इस चैनल के लोग राम से नफरत करते हैं, हिन्दुओं से नफरत करते हैं और ये लोग वंदे मातरम से नफरत करते हैं, ये लोग भारत माता की जय से नफरत करते हैं और लोग मोदी-योगी से नफरत करते हैं...इस तरह की चीजें बोल रहा था. उसके बाद वहां पर मेरे आस-पास खड़े 8-10 लोग जोर देने लगे कि तुम जय श्रीराम का नारा लगाओ. मैंने उन लोगों को समझाना चाहा कि हम लोग बातचीत कर सकते हैं इस तरह से हिंसक होना ठीक नहीं है.''

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गरीबी और बेरोजगारी के सवाल पर ज्यादा भड़की भीड़

इसके आगे अनमोल प्रीतम बताते हैं कि स्थिति कुछ संभली. लेकिन फिर उनके एक सवाल से भीड़ एकदम से उखड़ गई.

''उसके बाद मैंने एक छोटा सा सवाल कर दिया कि देश में प्रधानमंत्री मोदी खुद लोगों को अनाज बांट रहे हैं जिससे यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि देश में गरीबी और भुखमरी है. ऐसे वक्त में आप लोग गरीबी और बेरोजगारी से लड़ने के बजाय इन सभी मुद्दों पर क्यों बात कर रहे हैं जो खाए-अघाए और भरे हुए पेट के मुद्दे हैं. ये सवाल पूरा होने से पहले ही भीड़ से एक 50-55 साल के व्यक्ति आए और चिल्लाना शुरू कर दिया कि तुम लोग जिहादी हो...तुम पहले जय श्रीराम बोलो. इसके बाद वहां इकट्ठा तमाम लोग जय श्रीराम बोलने के लिए जोर-जबरदस्ती करने लगे.''

उसके बाद ही उसमें से एक आदमी आया, उसने मेरे कंधे पर हांथ रखते हुए घूरा और एक अलग अंदाज मुझसे कहा कि तुम्हारे मुंह में दही जमा है क्या...वो एक ऐसा पल था जब मुझे लगा कि अब ये लोग आउट ऑफ कंट्रोल हो गए हैं, शायद अब ये मेरी नहीं सुनेंगे और मुझ पर आक्रमण कर देंगे.
अनमोल प्रीतम
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''उस वक्त मुझे ये चुनना था कि शरीर पर चोट खाऊं या आत्मा पर''

''मैंने सोचा कि अगर मैंने समझौता नहीं किया तो ये लोग मुझ पर आक्रमण करेंगे, मेरे शरीर की हड्डियां तोड़ देंगे और सारी चोटें मेरे शरीर पर लगेंगी. ये चोटें महीने, साल दो-साल में रिकवर हो जाएंगी. लेकिन अगर मैं इनकी बात मान लेता हूं तो जो चोट मेरे उसूलों पर, मेरी आत्मा पर, मेरे एथिक्स पर लगेगी...ये चोट शायद मैं पूरी ज़िंदगी रिकवर न कर पाऊं और किसी भी रात चैन से सो न पाऊं कि मैं ऐसे लोगों के सामने सरेंडर कर दिया जो लोग इस देश में बोलने की आज़ादी की कद्र नहीं करते. इसलिए मैंने खुद को और अपने विचार को बचाने का फैसला लिया और उनसे बोला कि मेरा मन होगा तो बोलूंगा अन्यथा मैं नहीं बोलूंगा, और अगर आप लोग ऐसे घेरकर मुझसे कहेंगे तब तो बिल्कुल भी नहीं बोलूंगा.''

ऐसे हमलों का कोई पैटर्न दिखता है?

''एक ग्राउंड रिपोर्टर के तौर पर अगर पैटर्न की बात करें तो ऐसा मैं पहली बार फेस कर रहा था. इसके पहले मैं दिल्ली दंगों के दौरान रिपोर्टिंग करते हुए भीड़ से घिर गया था तो पुलिस की सहायता से बचा था लेकिन इस बार जो हुआ ये मेरे लिए बिल्कुल नया था. मैंने बहुत सारे प्रोटेस्ट को कवर किया है. लोग बात करते हैं, मुद्दों पर सवाल-जवाब होता है और जो सवाल उनको अच्छा नहीं लगता उस पर भी वो बोल देते हैं कि ये सवाल आपका ठीक नहीं है. लेकिन ये वाला अनुभव बिल्कुल नया था कि लोग आपसे जबरदस्ती नारा लगाने के लिए बोलें और नोच खाएं. ये जो भी था बहुत खतरनाक था. लोकतंत्र में ऐसी चीजें नहीं होनी चाहिए, हम सबको लोकतांत्रिक तरीके से अपनी बात रखने का अधिकार है.''

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