ADVERTISEMENTREMOVE AD

NCPCR ने पूछा- क्या समलैंगिक संबंधों वाली फिल्में बच्चों को दिखाई जा सकती हैं?

यूनिसेफ के सहयोग से पश्चिम बंगाल के स्कूलों के लिए स्क्रीनिंग का आयोजन किया गया था.

Updated
भारत
2 min read
story-hero-img
i
छोटा
मध्यम
बड़ा
Hindi Female

राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) ने बुधवार, 10 नवंबर को केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (CBFC) को चिट्ठी लिखकर पूछा कि क्या समलैंगिंक सेक्स संबंधों को दर्शाने वाली आठ फिल्मों ने बच्चों को दिखाए जाने के लिए सर्टिफिकेट प्राप्त किया था?

यूनिसेफ पार्टनर प्रयासम की मदद से पश्चिम बंगाल के स्कूलों के लिए स्क्रीनिंग का आयोजन किया गया था. कुछ दिनों पहले एनसीपीसीआर ने ट्रांसजेंडर और लिंग-गैर-अनुरूप बच्चों पर ध्यान देने के साथ स्कूली शिक्षा को और बेहतर बनाने के लिए ट्रेनिंग मैन्युअल में 'कमियों को ठीक करने' के लिए राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (NCERT) को लिखा था.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

विवाद क्या है?

समाचार रिपोर्टों और एक शिकायत का हवाला देते हुए, एनसीपीसीआर के अध्यक्ष प्रियांक कानूनगो ने कहा कि, कमीशन ये सुनिश्चित करना चाहता है कि सामग्री 'बोर्ड से ऊपर नहीं' है.

कानूनगो ने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया,

“हमें नाबालिग दर्शकों के लिए समलैंगिक संबंधों से संबंधित फिल्मों की स्क्रीनिंग के संबंध में एक शिकायत मिली है. हमने इस बारे में विवरण मांगा है कि क्या उन्हें आवश्यक प्रमाणीकरण प्राप्त हुआ है."
प्रियांक कानूनगो

पत्र में प्रशांत रॉय को भी चिह्नित किया गया है, जो प्रयासम के निदेशक हैं. प्रशांत रॉय ने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया, "हम एनसीपीसीआर के दिशा-निर्देशों को जानते हैं और हम उनका उल्लंघन नहीं कर सकते. लेकिन हमारा मानना ​​है कि इस तरह की फिल्में युवाओ को धमकाने से रोकने के लिए दिखाई जानी चाहिए."

0

एनसीपीसीआर का एनसीईआरटी को पत्र

2 नवंबर को एनसीपीसीआर ने एनसीईआरटी को पत्र लिखकर कहा कि, उसे मैनुअल को लेकर कई शिकायतें मिली हैं. शिकायतकर्ताओं में से एक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के पूर्व सदस्य विनय जोशी थे, जिन्होंने आरोप लगाया कि मैनुअल "जेंडर सेंसिटाइजेशन के नाम पर स्कूली छात्रों को मानसिक रूप से परेशान करने के लिए आपराधिक साजिश हैं "

कानूनगो के पत्र में कहा गया है, "मैनुअल का पाठ बच्चों के लिए जेंडर न्यूट्रल इंफ्रास्ट्रक्चर का सुझाव देता है जो उनकी लिंग वास्तविकताओं और बुनियादी जरूरतों के मुताबिक नहीं है. इसके अलावा, लैंगिक बाइनरी बनाने और हटाने का विचार अलग अलग बायोलॉजिकल आवश्यकताओं के बच्चों के समान अधिकारों से उन्हें दूर करेगा. दूसरा, यह नजरिया बच्चों को घर और स्कूल में उलट माहौल के कारण बेजरूरत मनोवैज्ञानिक ट्रामा देगा.

(इंडियन एक्सप्रेस से इनपुट्स के साथ)

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

Published: 
सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
अधिक पढ़ें
×
×