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रेलवे में छूटे सामान को यात्रियों तक पहुंचाने को इन्होंने बना लिया मिशन

"हम पहले ट्रेन और सीट नंबर पूछते हैं, ताकि पता चल सके कि पैसेंजर कहां से बैठा है. इसके बाद आगे ढूंढते हैं."

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भारत
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ट्रेन या रेलवे स्टेशन पर छूटे सामान का मिलना मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन था. लेकिन नई दिल्ली के स्टेशन सुपरीटेंडेंट राकेश शर्मा इस नजरिये को बदल रहे हैं. राकेश शर्मा लोगों को उनका सामान पहुंचाने के लिए एक कदम आगे जा कर मदद करते हैं. उन्होंने भारत के कई शहरों में तो सामान पहुंचाया ही है, साथ-साथ ऑस्ट्रेलिया से लेकर केन्या तक उन्होंने खोया हुआ सामान पैसेंजर को वापस भेजा है.

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2016 से कर रहे लोगों की मदद

रेलवे में स्टेशन मास्टर के तौर पर भर्ती हुए राकेश शर्मा 2016 से नई दिल्ली रेलवे स्टेशन के स्टेशन सुपरीटेंडेंट हैं. तभी से वो लगातार लोगों को उनका खोया हुआ सामान लौटाने में मदद कर रहे हैं. क्विंट हिंदी से बातचीत में राकेश शर्मा ने इसका क्रेडिट अपनी टीम को दिया और कहा कि बिना टीमवर्क ये काम करना काफी मुश्किल है.

"स्टाफ हेल्प करता है. ये अकेले आदमी का काम नहीं है, एक टीमवर्क है."
राकेश शर्मा
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सामान लौटाने की क्या होती है पूरी प्रक्रिया?

राकेश शर्मा ने बताया कि पहले वो ये सामान ऑफिस में जमा करा देते थे, लेकिन पीएनआर पर फोन नंबर के साथ उन्हें पैसेंजर ढूंढने में मदद मिली. उन्होंने बताया कि सामान ज्यादातर रेलवे केटरिंग वाले या रेलवे स्टाफ ही जमा कराते हैं. उन्होंने बताया कि पहले वो पता करते हैं कि पैसेंजर का सामान कहां से मिला, ट्रेन नंबर और सीट नंबर क्या है, ताकि पता चल सके कि पैसेंजर कहां से बैठा है. इसके बाद वो पीएनआर नंबर से पैसेंजर का फोन नंबर निकलवाते हैं.

"हम पहले ट्रेन और सीट नंबर पूछते हैं, ताकि पता चल सके कि पैसेंजर कहां से बैठा है. इसके बाद आगे ढूंढते हैं."

NDLS रेलवे स्टेशन पर अपने ऑफिस में राकेश शर्मा

(फोटो: क्विंट हिंदी)

राकेश शर्मा ने बताया कि अगर ऑनलाइन टिकट है, तो वो IRCTC से मदद लेते हैं, और अगर सिस्टम टिकट है तो CRIS (सेंटर रेलवे इंफॉर्मेशन सिस्टम) की मदद लेते हैं. इसके जरिये वो पैसेंजर से कॉन्टैक्ट करते हैं और उन्हें उनका सामान लौटाते हैं.

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'सबसे ज्यादा लैपटॉप-फोन मिलता है'

राकेश शर्मा ने क्विंट हिंदी को बताया कि सबसे ज्यादा लैपटॉप-फोन बरामद होता है. और एक लैपटॉप तो उन्होंने ऑस्ट्रेलिया तक डिलीवर किया है.

  • पैसेंजर के साथ राकेश शर्मा

    (फोटो: फेसबुक/राकेश शर्मा)

मार्च 2019 में, केटरिंग स्टाफ ने चंडीगढ़-नई दिल्ली शताब्दी ट्रेन से उन्हें एक एपल कंपनी का मैकबुक ला कर दिया. राकेश शर्मा ने सीट नंबर से पैसेंजर की डीटेल निकाली और इसके बाद उन्हें फेसबुक पर ढूंढा. उनकी ये कोशिश कामयाब रही और उन्होंने ऑस्ट्रेलिया में पैसेंजर को ढूंढ कर उन्हें ये लैपटॉप पहुंचाया.

पैसेंजर के विदेश में रहने पर सामान कैसे भेजा जाता है, इस सवाल पर राकेश शर्मा ने बताया कि पैसेंजर इसके लिए एजेंटस अरेंज कराते हैं.

भारत में सामान वापस भेजने के लिए राकेश भारतीय रेलवे का सहारा लेते हैं. वो अक्सर सामान लौटाने के लिए ट्रेन के टीटी या ट्रेन गार्ड की मदद लेते हैं. हालांकि, कई बार स्पीड पोस्ट के पैसे वो अपनी जेब से भी दे देते हैं.

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600 से ज्यादा लोगों को लौटा चुके सामान

सबसे पहला पैसेंजर याद करते हुए राकेश शर्मा बताते हैं कि साल 2016 में उन्हें कूली से एक बैग मिला था. पैसेंजर को ट्रैक कर उन्होंने कानपुर में उस तक ये बैग पहुंचाया था.

राकेश शर्मा बैग से लेकर लैपटॉप और गिटार तक उनके ओनर तक पहुंचा चुके हैं. इसके लिए उन्हें रेलवे से लेकर मैगजीन तक सम्मानित कर चुकी हैं.

"हम पहले ट्रेन और सीट नंबर पूछते हैं, ताकि पता चल सके कि पैसेंजर कहां से बैठा है. इसके बाद आगे ढूंढते हैं."

लोगों की मदद करने के लिए मैगजीन ने किया सम्मानित

(फोटो: क्विंट हिंदी)

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'केवल लोगों की मदद करना चाहते हैं'

अक्सर सरकारी मामलों में लोगों को सामान लेने में अक्सर दस चक्कर लगाने पड़ते हैं, लेकिन राकेश का कहना है, "हमारा मकसद पैसेंजर को परेशान करना नहीं है. हम बस वेरिफाई करते हैं. हम पैसेंजर की मदद करना चाहते हैं."

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