जाने-माने जर्नलिस्ट, लेखक और कहानीकार नीलेश मिसरा के नाम से आप भी जरूर वाकिफ होंगे. उनकी रचनाएं अक्सर आम लोगों से कहीं न कहीं जुड़ी होती हैं. रेडियो पर किस्सागोई का उनका अंदाज तो एकदम ही जुदा होता है.
नीलेश मिसरा की ही मंडली की सदस्या हैं सीमा शर्मा, जिनकी लिखी एक कहानी है साइकिल की विदाई. कहानी कुछ इस तरह है:
हरिद्वार की तंग गलियों वाला कादिमपुरा. गली नंबर तीन के आखिरी में, जहां घरों की कतार खत्म हो जाती है, उसी के बगल में है खेल का मैदान. इसी मैदान से सटा हुआ है मदन लाल काका का घर. पूरे हरिद्वार में मशहूर काका का नाम शायद ही कोई लेता हो. साइकिल वाले काका बोलिए, बहुत हुआ. ये नाम काका ने सालों की मेहनत से कमाया था. अजी कमाया क्या, यूं कहिए कि मेहनत, ईमानदारी और प्यार लुटाकर बदले में पाया था. वरना कौन है, जो रोजी-रोटी में इंसानियत बचाए रखे हो.
लेकिन काका तो हमारे कुछ अलग ही प्राणी थे. जिंदगी में साइकिल ऐसे बसी थी, जैसे हवा में ऑक्सीजन. साइकिल की छोटी सी दुकान में सारे मौसम बिता दिए. दुकान के बाजू में ही था उनका घर. घर में सुशील और धैर्य की मूर्ति उनकी बीबी सविता. धैर्य यूं कि कौन औरत होगी, जो बरसों से अपनी आंखों के सामने पति को किसी और से इश्क फरमाते देख पाएगी...
इसके बाद आगे क्या होता है, ये जानने के लिए सुनिए ये पूरी कहानी...
(ये कहानी Neelesh Misra के यूट्यूब चैनल से ली गई है)
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