जाने-माने जर्नलिस्ट, लेखक और कहानीकार नीलेश मिसरा के नाम से आप भी जरूर वाकिफ होंगे. उनकी रचनाएं अक्सर आम लोगों से कहीं न कहीं जुड़ी होती हैं. रेडियो पर किस्सागोई का उनका अंदाज तो एकदम ही जुदा होता है.
नीलेश मिसरा की मंडली की ही एक सदस्य हैं छवि निगम, जिनकी लिखी एक कहानी है एक और कुरुक्षेत्र.
दोस्तों कुछ रास्ते ऐसे होते हैं, जिन पर कदम आगे बढ़ते ही नहीं. पर समय का चक्कर जो लगा है पैरों में. जो आज ले आया है मुझे हरियाणा की ऐसी जगह, जहां महाभारत के युग में सबसे महत्वपूर्ण घटना हुई थी. यानी कि कुरुक्षेत्र का युद्ध. आज यहां सबकुछ बदल चुका है. लेकिन जब मैं यहां बैठा हूं, तो समय के उस पार वही विशाल युद्ध भूमि दिख रही है. दोनों सिरों पर दो सेनाओं के शिविर दिख रहे हैं. सगे संबंधियों के बीच राजनीति दिख रही है. सूरज डूब चुका है. नियमों में बंधी ये लड़ाई कल सुबह शुरू होगी.
इस वक्त जब मैं अपनी मुठ्ठी खोलता हूं, तो जो मिट्टी इससे झड़ती है, उसमें अब कुरुक्षेत्र की लड़ाई में बहे खून का एक कतरा भी नहीं है. लेकिन इतना सारा दर्द है, इतनी पीड़ा है कि आज भी मेरा दिल कांप जाता है. ये मेरे बाएं ओर पांडवो और कौरवों का सुंदर शिविर है, उसका पर्दा खुल रहा है.
इसके बाद आगे क्या होता है, ये जानने के लिए सुनिए ये पूरी कहानी...
(ये कहानी Neelesh Misra के यूट्यूब चैनल से ली गई है)
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